सुप्रीम कोर्ट ने बिना लाइसेंस के धन उधार देने के कारोबार पर अंकुश लगाने के लिए कानून स्थापित का निर्णय लिया, ताकि बेबस कर्जदारों को बचाया जा सके

  • शीर्ष अदालत ने कहा- हम ऐसी घटनाओं से नाराज और दुखी।
  • फिल्म निर्माता राजकुमार संतोषी से जुड़ा चेक बाउंस का मामला।
  • सुप्रीम कोर्ट ने द मर्चेंट ऑफ वेनिस के शाइलाक का किया जिक्र।

सुप्रीम कोर्ट ने भारत में बिना लाइसेंस के धन उधार देने के कारोबार पर विचार करने और उस पर अंकुश लगाने के लिए कानून स्थापित का निर्णय लिया है, ताकि उन बेबस कर्जदारों को बचाया जा सके जो ”शाइलाकियन रवैये” वाले साहूकारों के कर्ज के जाल में फंस जाते हैं। विलियम शेक्सपीयर के नाटक ‘द मर्चेंट ऑफ वेनिस’ में शाइलाक एक साहूकार का किरदार था जो ऋण वसूली के निर्मम तरीकों के लिए कुख्यात था।

चेक बाउंस मामले में सुनवाई

जस्टिस सीटी रविकुमार और जस्टिस संजय कुमार की पीठ ने फिल्म निर्माता एवं निर्देशक राजकुमार संतोषी से जुड़े चेक बाउंस विवाद पर सुनवाई करते हुए कहा कि उन्होंने समाज के लिए बढ़ते इस खतरे पर संज्ञान लिया है। संतोषी ने कथित तौर पर फिल्म ”सारागढ़ी” के निर्माण के लिए प्रशांत मलिक नामक व्यक्ति से पैसे उधार लिए थे। संतोषी प्रशांत मलिक के साथ एक वित्तीय विवाद में उलझे हुए हैं, जो कथित तौर पर संतोषी की फिल्म “सारागढ़ी” में 2 करोड़ रुपये का।

अदालत ने आगे कहा की “हम यह जोड़ सकते हैं कि शर्म के बिना शाइलॉकियन रवैया ऐसे मामलों में जारी रहता है। अक्सर ऐसा होता है कि वास्तव में अग्रिम राशि चुकाने के बावजूद, उधारकर्ता को ब्याज के रूप में कभी-कभी दोगुनी राशि या उससे अधिक का भुगतान करने के लिए बाध्य किया जाता है। धन उधार देने के व्यवसाय कानूनों के दायरे से बाहर निकलने के लिए विवेकपूर्ण तरीके से (या चालाकी से?) कुछ ऐसे ऋणदाता निरंतर लेन-देन से बचते हैं और बीच-बीच में केवल ब्याज के लिए भारी ऋण देते हैं।

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आत्महत्या करने को मजबूर होता आम आदमी

पीठ ने कहा, ”हमारे सामने ऐसे मामले आ रहे हैं, जहां इस तरह की तथाकथित दोस्ताना अग्रिम राशि करोड़ों रुपये में हैं। हम ऐसी घटनाओं से नाराज और दुखी हैं, जहां आम आदमी इस तरह के ऋण लेता है और अंत में कर्जदाताओं के शाइलाकियन रवैये के कारण सड़कों पर आ जाता है या आत्महत्या करने पर मजबूर हो जाता है।

सारागढ़ी फिल्म से जुड़ा विवाद

”संतोषी ने अधिवक्ता दुर्गा दत्त के जरिये दायर याचिका में दावा किया कि जब वह ”सारागढ़ी” बनाने की तैयारी कर रहे थे, तो उनके परिचित मलिक ने फिल्म में दो करोड़ रुपये निवेश करने की पेशकश की थी, लेकिन मलिक ने केवल 35 लाख रुपये का भुगतान किया और बाद में दुर्भावनापूर्ण इरादे से अपनी वित्तीय स्थिति का हवाला देते हुए और निवेश करने से इन्कार कर दिया। हालांकि, मलिक ने संतोषी के दावे का खंडन किया और अदालत को बताया कि उन्होंने अलग-अलग तिथियों और अलग-अलग तरीकों से संतोषी को 85 लाख रुपये का ऋण दिया था।

केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार से मांगा जवाब

पीठ ने केंद्र और दिल्ली सरकार को मामले में पक्षकार बनाया और उनसे जवाब मांगा। मामले की सुनवाई 23 अगस्त को तय करते हुए पीठ ने दिल्ली की निचली अदालत को तब तक उस मामले में कोई भी अंतिम आदेश पारित करने से रोक दिया जिसमें मलिक ने संतोषी के विरुद्ध नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट के तहत चेक बाउंस होने का आरोप लगाते हुए मामला दर्ज कराया था।

संतोषी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मनन कुमार मिश्रा ने कहा कि फिल्म निर्माता ने मलिक को चार लाख रुपये लौटा दिए हैं। अपनी याचिका में संतोषी ने मलिक से कोई भी नकद राशि प्राप्त करने से इन्कार किया है।

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न्यायालय ने कहा कि धन उधार देना वाणिज्यिक गतिविधियों का समर्थन तो कर सकता है, लेकिन इससे अक्सर उधारकर्ताओं का शोषण होता है, जिसके परिणामस्वरूप आर्थिक स्थिरता आती है और उधार लेने वाले समुदाय पर गंभीर परिणाम होते हैं। इन चिंताओं के कारण सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए भारत संघ और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीटी) दिल्ली सरकार, जिसका प्रतिनिधित्व उसके मुख्य सचिव कर रहे हैं, को कार्यवाही में पक्षकार बनाया।

अदालत ने नोटिस जारी किया, जिसका जवाब 23 अगस्त, 2024 को दिया जाना है। अदालत ने निर्देश दिया कि उसका अंतरिम आदेश, जिसने ट्रायल कोर्ट को मुकदमे में अंतिम आदेश पारित करने से रोका था, अगली सुनवाई तक जारी रहेगा।

वाद शीर्षक – राज कुमार संतोषी बनाम प्रशांत मलिक

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