“Supreme Court Clarifies Bail Consideration Not Dependent on Serving Half of Sentence”
हाल ही में, भारत का सर्वोच्च न्यायालय Supreme Court मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा सजा निलंबित करने से इनकार करने को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रहा था। पीठ ने स्पष्ट किया कि उसने ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं रखा है कि दोषी द्वारा आधी सजा काट लेने के बाद ही जमानत के मामले पर विचार किया जा सकता है।
पीठ ने कहा, “…उच्च न्यायालय ने अतुल उर्फ आशुतोष बनाम मध्य प्रदेश राज्य के मामले में इस न्यायालय के आदेश को सही ढंग से नहीं पढ़ा है। मामले के तथ्यों के अनुसार, अभियुक्त ने आधी सजा काट ली थी। हालांकि, इस न्यायालय ने यह निर्धारित नहीं किया है कि आधी सजा काटने के बाद ही जमानत के मामले पर विचार किया जा सकता है।”
यह आदेश न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की दो न्यायाधीशों वाली पीठ ने पारित किया।
पीठ ने कहा कि इस मामले में अपीलकर्ता की अधिकतम सजा 4 साल है और अपीलकर्ता द्वारा दायर की गई सजा के खिलाफ अपील वर्ष 2024 की है।
पीठ ने कहा, “पुराने मामलों की बड़ी संख्या को देखते हुए, यह स्पष्ट है कि अपीलकर्ता द्वारा पूरी सजा काटने से पहले अपील पर सुनवाई होने की संभावना नहीं है।”
इसलिए, सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने आदेश दिया, “अपीलकर्ता आपराधिक अपील के अंतिम निपटान तक सजा के निलंबन और जमानत की राहत का हकदार है। उस उद्देश्य के लिए, अपीलकर्ता को आज (25 नवंबर 2024) से एक सप्ताह की अधिकतम अवधि के भीतर विशेष अदालत के समक्ष पेश किया जाएगा। विशेष अदालत अपील के निपटान तक अपीलकर्ता को उचित नियमों और शर्तों पर जमानत पर रिहा करेगी।”
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