‘सीमा अधिनियम के अनुच्छेद 127 के तहत सीमा अवधि आदेश 34 नियम 5 सीपीसी के तहत आवेदनों पर लागू होती है’
विशाखापट्टनम: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने मुनगा वेंकटेश्वरलु बनाम यारवा तिरुपति रेड्डी मामले में दायर पुनरीक्षण याचिका को खारिज कर दिया। यह याचिका प्रिंसिपल जूनियर सिविल जज द्वारा 02.12.2023 को पारित आदेश को चुनौती देने के लिए दायर की गई थी।
न्यायालय का निष्कर्ष
हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि किसी बिक्री की पुष्टि (Confirmation of Sale) हमेशा अलग आदेश के रूप में आवश्यक नहीं होती। यदि निर्धारित समय सीमा में कोई आवेदन दायर नहीं किया जाता, तो बिक्री की पुष्टि आपरिहार्य रूप से मानी जा सकती है।
मामले की संक्षिप्त पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता, जो इस मुकदमे में प्रतिवादी था, के खिलाफ 14.05.2009 को निष्पादित एक पंजीकृत बंधक विलेख (Mortgage Deed) के तहत धन की वसूली के लिए वाद दायर किया गया था।
- 07.05.2022 को अंतिम डिक्री पारित हुई, जिसके तहत बंधक संपत्ति की नीलामी का आदेश दिया गया।
- 17.04.2023 को नीलामी आयोजित की गई, जिसमें उत्तरदायी (Respondent) ने उच्चतम बोली लगाई और समयसीमा के भीतर बोली राशि जमा की।
- याचिकाकर्ता ने डिक्रीगत राशि जमा करने का प्रयास किया, लेकिन न्यायालय ने इसे भारतीय परिसीमा अधिनियम (Limitation Act) की धारा 127 के तहत समयसीमा समाप्त होने के कारण खारिज कर दिया।
- इसके बाद, याचिकाकर्ता ने सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) के आदेश 34 नियम 5 के तहत बंधक संपत्ति को पुनः प्राप्त करने (Redeem) का प्रयास किया। इस आवेदन को पहले ट्रायल कोर्ट द्वारा वापस किया गया, फिर हाईकोर्ट के निर्देश पर पुनः प्रस्तुत किया गया, लेकिन इसे फिर से खारिज कर दिया गया।
- इसके खिलाफ, वर्तमान पुनरीक्षण याचिका दायर की गई।
याचिकाकर्ता की दलीलें
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि आदेश 34 नियम 5 CPC के तहत, नीलामी की पुष्टि से पहले बंधक संपत्ति को पुनः प्राप्त करने का अधिकार मौजूद है।
- याचिकाकर्ता ने 04.08.2023 को नीलामी की पुष्टि से पहले भुगतान करने का आवेदन दायर किया, जिसे स्वीकार किया जाना चाहिए था।
- परिसीमा अधिनियम की धारा 127 (जिसमें नीलामी को निरस्त करने हेतु 60 दिनों की सीमा निर्धारित है) का आदेश 34 नियम 5 CPC पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
प्रतिवादी की दलीलें
प्रतिवादी के अधिवक्ता ने याचिका का विरोध किया और तर्क दिया कि:
- याचिकाकर्ता ने पहले आदेश 21 नियम 89 CPC के तहत नीलामी को निरस्त करने हेतु एक आवेदन दायर किया था, जिसे 21.08.2023 को पूरी सुनवाई के बाद खारिज कर दिया गया।
- इसके बाद ही याचिकाकर्ता ने आदेश 34 नियम 5 CPC के तहत पुनः आवेदन प्रस्तुत किया, लेकिन तब तक नीलामी की पुष्टि हो चुकी थी।
- नीलामी की पुष्टि के लिए अलग से आदेश आवश्यक नहीं होता, यदि निर्धारित समय में कोई आपत्ति दायर नहीं की जाती।
हाईकोर्ट की टिप्पणियां
न्यायमूर्ति न्यापति विजय ने अपने निर्णय में निम्नलिखित महत्वपूर्ण बिंदुओं पर जोर दिया-
- नीलामी की पुष्टि और परिसीमा अधिनियम की धारा 127:
- आदेश 34 नियम 5 CPC के तहत, बंधक संपत्ति को पुनः प्राप्त करने का अधिकार नीलामी की पुष्टि से पहले ही समाप्त हो जाता है।
- परिसीमा अधिनियम की धारा 127 इस प्रकार के मामलों में भी लागू होती है, और इसका उद्देश्य अदालती नीलामी में स्थिरता बनाए रखना है।
- अनिश्चितकालीन विलंब को अनुमति देना अदालती बिक्री की प्रक्रिया को अस्थिर कर देगा।
- नीलामी की पुष्टि के लिए अलग आदेश की आवश्यकता नहीं:
- आदेश 21 नियम 92 CPC के अनुसार, यदि निर्धारित अवधि में कोई आवेदन दायर नहीं किया जाता, तो नीलामी की पुष्टि स्वतः मानी जाएगी।
अदालत का निर्णय
आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने पुनरीक्षण याचिका को खारिज करते हुए यह माना कि:
- 17.04.2023 को संपन्न नीलामी, 21.08.2023 को उसकी पुष्टि, और विक्रय प्रमाणपत्र (Sale Certificate) का निर्गमन, सभी विधि-सम्मत हैं।
निष्कर्ष
हाईकोर्ट के इस निर्णय से स्पष्ट होता है कि बंधक संपत्ति को पुनः प्राप्त करने का अधिकार नीलामी की पुष्टि से पहले ही समाप्त हो जाता है। यदि निर्धारित समय सीमा के भीतर कोई आवेदन प्रस्तुत नहीं किया जाता, तो नीलामी की पुष्टि के लिए अलग आदेश की आवश्यकता नहीं होती।
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