“हम कानून बनाने का निर्देश नहीं दे सकते”: SC ने डॉक्टरों के खिलाफ हिंसा को रोकने के लिए निर्देश देने की दि. मेडि. एसो. की याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया

उच्चतम न्यायालय SUPREME COURT ने आज दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन DELHI MEDICAL ASSOCIATION द्वारा संविधान के अनुच्छेद 32 ARTICLE 32 OF INDIAN CONSTITUTION के तहत दायर याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया, जिसमें डॉक्टरों के खिलाफ हिंसा के मामलों में निर्देश और राहत की मांग की गई थी।

न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने आदेश दिया, “हम भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत वर्तमान रिट याचिका पर विचार करने के लिए इच्छुक नहीं हैं। यदि इस विशेष मामले में कोई कठिनाई या मुद्दा है, तो डॉक्टरों का संघ सक्षम क्षेत्राधिकार के समक्ष इस मुद्दे को उठा सकता है।”

न्यायमूर्ति खन्ना ने टिप्पणी की, “मैं हाल ही में अस्पताल गया था और वहां तख्तियां देखीं, जिन पर लिखा था कि डॉक्टरों के खिलाफ हिंसा एक गंभीर अपराध है।”

एसोसिएशन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसारिया ने कहा, “मैं आपके विचार के लिए यह प्रस्तुत कर रहा हूं कि किसी भी घटना के होने के बाद, व्यक्तिगत मामले दर्ज किए जाते हैं और कार्रवाई की जाती है। सवाल यह है कि क्या निवारक उपाय और एहतियाती उपाय किए जा रहे हैं…”

न्यायमूर्ति खन्ना ने कहा, “हम कानून बनाने का निर्देश नहीं दे सकते।”

हंसारिया ने कहा, “यदि कानून है, तो माननीय सदस्य कमियों को पूरा कर सकते हैं।”

न्यायमूर्ति खन्ना ने जवाब दिया, “नहीं, नहीं, क्षमा करें।”

हंसारिया ने कहा, “कानून आवश्यकता को पूरा नहीं करता…मुझे पता है कि लॉरशिप कानून बनाने का निर्देश नहीं देंगे, दोषसिद्धि के लिए कानून मौजूद है।”

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न्यायमूर्ति खन्ना ने जवाब दिया, “कानून पहले से ही मौजूद है क्योंकि जो कोई भी हिंसा में लिप्त होगा, उसके साथ आईपीसी के प्रावधानों के अनुसार व्यवहार किया जाएगा…केवल कार्यान्वयन का सवाल है। न्यायालय आदेश जारी नहीं कर सकता।”

हंसारिया ने न्यायालय को गुरु तेग बहादुर अस्पताल में इसी तरह की हिंसा की घटनाओं के बारे में भी बताया।

न्यायमूर्ति खन्ना ने टिप्पणी की, “हर अस्पताल और दुर्घटना में एक पुलिस अधिकारी होता है।”

तदनुसार, याचिका खारिज कर दी गई।

वाद शीर्षक – दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन बनाम भारत संघ
वाद संख्या – डब्ल्यू.पी.(सी) संख्या 725/2021

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