“साक्षी” “न्याय प्रणाली की आंख और कान हैं”, अतः गवाहों की सुरक्षा के लिए ‘गवाह सुरक्षा योजना, 2018’-

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जघन्य अपराधों के मामले में साक्षी अपनी जान माल के खतरे के कारण मुकर जाते हैं –

सुप्रीम कोर्ट ने महेन्द्र चावला व अन्य बनाम भारत संघ व अन्य रिट पेटीशन( क्रिमिनल) नं. 156 सन 2016 में फैसला देते हुए गवाहों की सुरक्षा के लिए गवाह सुरक्षा योजना, 2018 को मंज़ूरी दे दी है।

जेरेमी बेंथम ने कहा है कि “साक्षी” “न्याय प्रणाली की आंख और कान हैं” जघन्य अपराधों के मामले में साक्षी अपनी जान माल के खतरे के कारण मुकर जाते हैं साक्षी यह महसूस करते हैं कि उन्हें किसी प्रकार का संरक्षण प्रदान करने के लिए राज्य की कोई संवैधानिक कानूनी जिम्मेदारी नहीं है ।

भारत के माननीय उच्चतम न्यायालय ने गुजरात राज्य बनाम अनिरुद्ध सिंह में निर्मित किया है कि प्रत्येक उस गवाह जिसे अपराध के घटित होने की जानकारी है का यह महत्वपूर्ण कर्तव्य है कि वह गवाही देकर राज्य का सहयोग करें।

दांडी न्याय प्रणाली में सुधार संबंधी 2003 की मलिमथ समिति ने अपनी रिपोर्ट में यह कहा है कि किसी अपराध की घटना के बारे में गवाह गवाही देकर वह सच्चाई की खोज में न्यायालय को सहयोग देने के पावन कर्तव्य को निभाता है।

जहीरा हबीबुल्लाह शेख और अन्य बनाम गुजरात राज्य में उचित विचारण की परिभाषा देते हुए भारत के उच्चतम न्यायालय ने यह कहा है कि यदि साक्षियो को धमकी मिलती है अथवा उन्हें झूठी गवाही देने के लिए मजबूर किया जाता है तो इससे निष्पक्ष विचारण भी नहीं हो पायेगा ।

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बेस्ट बेकरी कांड गुजरात के वडोदरा जिले के हनुमान टेकरी इलाके में बेस्ट बेकरी की इमारत में 14 लोगों को जान से मार दिए जाने से जुड़ा है। यह घटना 1 मार्च की आधी रात को हुई। इस मामले में ट्रायल कोर्ट ने सभी 21 अभियुक्तों को बरी कर दिया। अदालत का फैसला था कि मामले के मुख्य गवाह कोर्ट में अपने उस बयान से मुकर गए जो उन्होंने पुलिस को दिए थे। बाद में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने सुप्रीम कोर्ट से निवेदन किया कि वह ट्रायल कोर्ट के इस आदेश को खारिज करे।

मानवाधिकार आयोग के वकील एस. मुरलीधर ए टी. आर. अन्ध्यारुजिना (वरिष्ठ वकील) और पी.आर. राव ने इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में उठाया।

सुप्रीम कोर्ट ने महेन्द्र चावला व अन्य बनाम भारत संघ व अन्य रिट पेटीशन( क्रिमिनल) नं. 156 सन 2016 में फैसला देते हुए गवाहों की सुरक्षा के लिए गवाह सुरक्षा योजना, 2018 को मंज़ूरी दे दी है।

यह योजना केंद्र सरकार ने तैयार की है। कोर्ट ने अब केंद्र, राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों से इसे पूरी तरह लागू करने को कहा है।

न्यायमूर्ति एके सीकरी और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नज़ीर की पीठ ने कहा कि यह योजना अनुच्छेद 141/142 के तहत तब तक क़ानून होगा जब तक कि संसद इस मुद्दे पर कोई क़ानून नहीं पास करती। पीठ ने देश के सभी राज्यों को निर्देश दिया कि वे वर्ष 2019 के अंत तक कमज़ोर गवाहों की सुरक्षा के लिए कॉम्प्लेक्स की स्थापना करें।

गवाह सुरक्षा योजना, 2018

पीठ ने कहा कि इस योजना की महत्त्वपूर्ण बातें हैं गवाहों को होने वाले ख़तरों की पहचान करना, पुलिस प्रमुखों द्वारा ख़तरों का विश्लेषण रिपोर्ट तैयार करना, इस तरह का क़दम उठाना कि गवाह और आरोपी जाँच के दौरान आमने-सामने ना हो पाएँ, पहचान की सुरक्षा, पहचान को बदलना, गवाहों को अन्यत्र ले जाना, गवाहों को योजनाओं के बारे में बताना, गोपनीयता, रिकॉर्ड की सुरक्षा और ख़र्च की वसूली शामिल है।

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केंद्रीय गृह मंत्रालय ने जो योजना बनाई है उसमें गवाहों की तीन श्रेणियाँ बनाई गई हैं – ऐसा मामला जिसमें मामले की सुनवाई या उसके बाद गवाह या उसके परिवार के सदस्यों को जान का ख़तरा ऐसा मामला जिसमें गवाह या उसके परिवार के सदस्यों की सुरक्षा, उसकी प्रतिष्ठा और उसकी परिसंपत्ति को ख़तरा। ऐसी स्थिति जिसमें मामले की सुनवाई या उसके बाद गवाह या उसके परिवार के लोगों को उत्पीड़ित करने या डराने धमकाने तक सीमित है।

नई योजना में गवाह अपनी सुरक्षा के लिए उचित अधिकारी या उस ज़िला में आवेदन कर सकता है जहाँ अपराध हुआ है। इस अथॉरिटी का अध्यक्ष ज़िला या सत्र जज होगा और ज़िला के पुलिस प्रमुख इसके सदस्य और अभियोजन का प्रमुख इसका सदस्य सचिव होगा। किसी गवाह से सुरक्षा का आवेदन मिलने के बाद उसकी सुरक्षा के ख़तरे का आकलन होगा।

योजना में इस बात का भी उल्लेख है कि किस तरह की सुरक्षा का आदेश दिया जा सकता है। अथॉरिटी को पहचान सुरक्षा, पहचान को बदलने और गवाह को कहीं और ले जाने का भी अधिकार दिया गया है। इस पूरी योजना का फ़ैसले में ज़िक्र ( विधि व्यवस्था के पृष्ठ संख्या 23-26) किया गया है। कोर्ट ने इस योजना के बारे में कहा : “चूँकि यह लाभकारी और कल्याणकारी योजना है और इसका उद्देश्य देश में आपराधिक न्याय प्रणाली को मज़बूत बनाना है”

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