प्रधानमंत्री महाराजा सुहेलदेव स्मारक और चित्तौरा झील के विकास कार्यों की आधारशिला रखेंगे-

यह कार्यक्रम महाराजा सुहेलदेव की जयंती के उपलक्ष में उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले में आयोजित किया जा रहा है-

प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी 16 फरवरी 2021 को प्रात: 11:00 बजे उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले में महाराजा सुहेलदेव स्मारक और चित्तौरा झील के विकास कार्य की वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से आधारशिला रखेंगे। यह कार्यक्रम महाराजा सुहेलदेव की जयंती के उपलक्ष में उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले में आयोजित किया जा रहा है। उत्‍तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ भी इस अवसर पर मौजूद रहेंगे।

इस पूरी परियोजना में महाराजा सुहेलदेव की एक अश्‍वरोही प्रतिमा की स्थापना करना और कैफेटेरिया, गेस्ट हाउस तथा बच्चों के पार्क जैसी विभिन्न पर्यटक सुविधाओं का विकास करना शामिल है।

महाराजा सुहेलदेव का देश के लिए समर्पण और सेवा सभी के लिए एक प्रेरणा का स्रोत है। इस स्मारक स्थल के विकास से देश महाराजा सुहेलदेव की वीर गाथाओं से बेहतर ढंग से परिचित हो जाएगा। इन विकास कार्यों से इस स्‍थल की पर्यटक क्षमताओं में बढोतरी होगी।’

कौन थे महाराजा सुहेलदेव-

महाराजा सुहेलदेव

महाराजा सुहेलदेव आज से करीब हजार वर्ष पूर्व के ऐसे महानायक हैं जिनका इतिहास में स्थान खोजना दुष्कर ही नहीं लगभग असाध्य है, किंतु उत्तर प्रदेश में अवध व तराई क्षेत्र से लेकर पूर्वाचल तक मिथकों व किंवदंतियों में उनकी वीरता के किस्से कुछ इस तरह से जीवित हैं, मानो कल की ही बात हो। बहराइच के इतिहासकार डॉ राजकिशोर बताते हैं, ‘एक बार प्रसिद्ध इतिहासकार रघुवीर सिंह बुलावे पर दो दिनी प्रवास पर बहराइच आये थे। मैंने उन्हें सैय्यद सालार मसऊद गाजी की दरगाह दिखाई थी। सुहेलदेव पर चर्चा की और शोध की इच्छा जाहिर की तो उनकी सलाह थी कि शोध तो तब करोगे जब कहीं कुछ उल्लेख व प्रमाण होगा।’ राजकिशोर बताते हैं, उसके बाद यह इच्छा छोड़ दी। बाद में उन्होंने 1907 में प्रकाशित बहराइच गजेटियर के कुछ संपादित अंश भेजे थे जिसमें भी कुछ स्पष्ट नहीं था। गजेटियर में सुहेलदेव के आगे राजपूत, भर, पासी, जैन, बौद्ध जैसे शब्द भी जुड़े थे। यानी स्पष्ट नहीं था कि सुहेलदेव किस जाति या पंथ से जुड़े राजा थे।

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इतिहास में अच्छा ज्ञान रखने वालेरुचि रखने वाले पूर्व विधायक रामसागर राव भी इससे कुछ-कुछ सहमति जताते हुए बताते हैं कि सुहेलदेव भर जाति से ताल्लुक रखते थे। भर पासी जाति की चौदह उपजातियों में से एक है। सुहेलदेव एक प्रतापी राजा थे और उनके अधीन चौदह अन्य राजा थे। किंतु, उन्होंने जैन धर्म अपना लिया था। राव इसके पीछे तर्क देते हैं कि चूंकि उस वक्त ब्राह्मण मुनि नीची मानी जाने वाली जातियों के राजा का अभिषेक नहीं करते थे, जैन मुनि कर देते थे, संभवत: इसीलिए उन्होंने जैन धर्म स्वीकार कर लिया। विधानसभा पुस्तकालय में रखी पुस्तक ‘जैन धर्म के शासक’ में सुहेलदेव का विशेष वर्णन मिलता है। मिथकों व लोककथाओं में सुहेलदेव को जिस बात के लिए सर्वाधिक याद किया जाता है वह 18वीं और 19वीं रज्जब हिजरी 424 वर्ष 1033 में कौडिय़ाला नदी के तट पर लड़ा गया युद्ध है। यह युद्ध सुहेलदेव और महमूद गजनवी के भाजे सैय्यद सालार मसऊद गाजी के बीच लड़ा गया। सालार मसऊद जब पूरे उत्तर भारत को कुचलता हुआ बहराइच पहुंचा तो यहा भयानक युद्ध हुआ। सुहेलदेव की तरफ से उस समय के न केवल थारू, बंजारा सहित अन्य जातियों के अधीनस्थ राजाओं ने युद्ध लड़ा बल्कि आमजन भी हथियार ले निकल पड़ा। परिणाम यह हुआ कि सालार मसऊद की भारी भरकम सेना के केवल छह लोग ही जिंदा बचे। सालार मसऊद सहित सभी मारे गए। अमीश की पुस्तक में भी इसी युद्ध की कल्पना को विस्तार दिया गया है। केवी इंटर कॉलेज पयागपुर के पूर्व प्रवक्ता परमेश्वर सिंह बताते हैं, बहराइच शहर से लगभग तीन किलोमीटर उत्तर की ओर एक विशाल सूर्यकुंड व भव्य सूर्य मंदिर था। वहीं पर बालार्क ऋषि नाम के महात्मा रहते थे, जो महाराजा सुहेलदेव के गुरु थे। सुहेलदेव को धनुष विद्या, शब्दभेदी बाण चलाना, तलवार चलाना, गदा युद्ध व भाला फेंकने में विशेष दक्षता प्राप्त थी। नदी में तैरने का भी शौक था। शेरों का शिकार तीर एवं तलवार से करना उनके लिए एक साधारण सी बात थी। गुरु के आदेशानुसार 25 वर्ष की आयु तक इनकी माता के अतिरिक्त कोई महिला समक्ष नहीं पड़ सकी थी। वह उच्च कोटि के शासक थे। इनके समय में लोग घरों में ताला लगाने की आवश्यकता नहीं समझते थे। कई सड़कें उन्होंने बनवाईं, पोखरे खोदवाए, बगीचे लगवाए, पाठशालाएं खोलवाई, मंदिरों की स्थापना की, श्रावस्ती नगर को सुंदर रूप दिया। सुहेलदेव राजभर को भार शिव व नागवंशी शासकों के साथ भी जोड़ा जाता है। उनके बारे में जो कुछ थोड़ी-बहुत जानकारी मिलती है, वह बहराइच गजेटियर, अंधकारयुगीन भारत, आइने मसऊदी और जैनधर्म के शासक जैसी पुस्तकों तक सीमित है। 

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