इलाहाबाद हाईकोर्ट : बार एसोसिएशन के किसी सदस्य वकील के खिलाफ आपराधिक मामलों में पैरवी नहीं करने का प्रस्ताव असंवैधानिक, पेशेवर वकालत की नैतिकता के खिलाफ है-

Estimated read time 1 min read

प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि बार एसोसिएशनों द्वारा पारित एक प्रस्ताव कि उसका कोई भी सदस्य किसी सदस्य अधिवक्ता या उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ किसी भी आपराधिक मामले में पैरवी नहीं करेगा, न केवल असंवैधानिक है, बल्कि पेशेवर वकालत की नैतिकता के खिलाफ भी है और इसके साथ ही भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 21 और 22(1) की अवधारणा के खिलाफ है।

जस्टिस मो. फैज आलम खान ने कहा कि, “ऐसे प्रस्ताव न केवल असंवैधानिक हैं, पेशेवर वकालत की नैतिकता के साथ-साथ भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 21 और 22 (1) की अवधारणा के खिलाफ हैं। इस न्यायालय की राय में न्याय सुरक्षित करने का समान अवसर से इस देश के किसी भी नागरिक को वंचित नहीं किया जाएगा।”

अदालत एक आवेदक मोहम्मद अहमद खान द्वारा सिविल जज (जेडी) / न्यायिक मजिस्ट्रेट, उतरौला, जिला बलरामपुर की अदालत में लंबित एक आपराधिक मामले की कार्यवाही को सत्र डिवीजन जिला बहराइच या अंबेडकर नगर या अयोध्या को स्थानांतरित करने की प्रार्थना के साथ दायर एक आवेदन पर सुनवाई कर रही थी।

यह आवेदन इस आधार पर दायर किया गया कि विरोधी पक्षकार संख्या 2 के तीन भाई और साथ ही उनके पिता अधिवक्ता हैं और बाहरी अदालत उतरौला और बलरामपुर जजशिप में प्रैक्टिस कर रहे हैं।

गौरतलब है कि यह तर्क दिया गया कि बार एसोसिएशन उतरौला के अधिवक्ताओं ने दो प्रस्ताव पारित किए हैं (अब वापस ले लिया गया) जिसमें यह संकल्प किया गया है कि कोई भी अधिवक्ता उस बार के सदस्य या उनके परिवारों के खिलाफ आपराधिक प्रकृति की कोई कार्यवाही नहीं करेगा या दायर नहीं करेगा।

ALSO READ -  इलाहाबाद उच्च न्यायलय ने पत्नी से दुष्कर्म के आरोपी सिपाही को राहत देते हुए लगाई उसकी गिरफ्तारी पर रोक

यह तर्क दिया गया कि इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि विरोधी पक्षकार संख्या 2 के करीबी रिश्तेदार सिविल जज (जे.डी.)/न्यायिक मजिस्ट्रेट, उतरौला की अदालत में वकालत कर रहे हैं, तत्काल मामले को अन्य जिलों में स्थानांतरित किया जाए।

उच्च न्यायलय ने मांगी रिपोर्ट-

अदालत ने वर्तमान मामले की सुनवाई करते हुए 29 जून को जिला एवं सत्र न्यायाधीश, बलरामपुर को बार एसोसिएशन, उतरौला द्वारा पारित दो प्रस्तावों के संबंध में एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था। जिला न्यायाधीश, बलरामपुर ने इसके अनुसरण में यह निष्कर्ष निकालते हुए एक रिपोर्ट भेजी कि इस तरह के प्रस्ताव पहले बार एसोसिएशन, उतरौला द्वारा 6 अप्रैल, 2016 और 11 सितंबर, 2018 को पारित किए गए थे, हालांकि बाद में बार एसोसिएशन की आम सभा की बैठक आयोजित की गई और 2 नवंबर 2018 को इन दोनों प्रस्तावों को रद्द कर दिया गया था।

पत्र में यह भी कहा गया है कि बार एसोसिएशन के तत्कालीन अध्यक्ष ने भी इस तरह के प्रस्तावों को पारित करने के लिए माफी मांगी है।

कोर्ट का आदेश और अवलोकन-

कोर्ट ने देखा कि प्रस्तावों को वापस ले लिया गया है / रद्द कर दिया गया है। इस पर उच्च न्यायालय ने कहा कि वह इस तथ्य की अनदेखी नहीं कर सकता है कि पहले दो प्रस्तावों को बार एसोसिएशन, उतरौला द्वारा पारित किया गया था, जिसमें कहा गया था कि बार एसोसिएशन का कोई भी सदस्य किसी सदस्य अधिवक्ता या उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ किसी आपराधिक मामले में पैरवी नहीं करेगा।

न्यायालय ने कहा कि यदि मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, बलरामपुर की अदालत में स्थानांतरित किया जाता है, जो स्वाभाविक रूप से जिला जजशिप में सबसे वरिष्ठ मजिस्ट्रेट हैं, तो कोई नुकसान नहीं है।

ALSO READ -  उच्च न्यायलय का दूरगामी फैसला, मुस्लिम पति का पत्नियों के साथ बराबरी का व्यवहार न करना तलाक का आधार-

कोर्ट ने यह भी कहा कि इस प्रक्रिया में किसी भी पक्ष को कोई नुकसान नहीं होगा क्योंकि दोनों पक्षकार उतरौला में रह रहे हैं, जो बलरामपुर से मुश्किल से 50 किलोमीटर दूर है। कोर्ट ने आवेदन का निस्तारण इस निर्देश के साथ किया गया कि आपराधिक केस को मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी बलरामपुर के न्यायालय में ट्रांसफर किया जाए। कोर्ट द्वारा सीजेएम, बलरामपुर को कानून के अनुसार किसी भी पक्षकार को स्थगन प्रदान किए बिना मामले को तेजी से आगे बढ़ाने और निपटाने का निर्देश दिया गया है।

केस का विवरण – मोहम्मद अहमद खान बनाम स्टेट ऑफ यू.पी. एंड एक अन्य

You May Also Like