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माता-पिता नाजायज हो सकते हैं, मगर बच्चे नहीं, क्योंकि अपने जन्म में बच्चे की कोई भूमिका नहीं होती है। यह अहम टिप्पणी कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक मामले में एकल जज की पीठ के आदेश को खारिज करते हुए की।
हाईकोर्ट ने कर्नाटक पावर ट्रांसमिशन कॉरपोरेशन लिमिटेड के 2011 के सर्कुलर के उस प्रावधान के खिलाफ दायर याचिका पर यह ऐतिहासिक फैसला दिया, जिसमें पहली पत्नी और समाज से छिपाकर हुई दूसरी शादी से हुए बच्चे को अनुकंपा के आधार पर नौकरी से वंचित कर दिया गया था।
जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस एच संजीव कुमार की पीठ ने कहा, बिना माता-पिता के दुनिया में कोई भी बच्चा जन्म नहीं लेता है।
ऐसे में कानून को इस तथ्य को ध्यान में रखना चाहिए कि माता-पिता नाजायज हो सकते हैं, मगर बच्चे नहीं।
यह संसद का काम है कि वह बच्चों के वैध होने को लेकर कानून में एकरूपता लाए। ऐसे में यह संसद को निर्धारित करना है कि वैध विवाह से इतर पैदा हुए बच्चों को किस तरह सुरक्षा प्रदान की जा सकती है।
पीठ ने कहा, इस मामले में सीमित मकसद के लिए हम पाते हैं कि निजी कानूनों के तहत वैध शादी से इतर पैदा हुए बच्चे को वैधता देने का कोई प्रावधान नहीं है। हालांकि इसके बावजूद हिंदू विवाह अधिनियम या विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के तहत ऐसे बच्चे कानूनी संरक्षण के हकदार हैं।
खास तौर पर उन मामलों में जहां अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति का मामला हो। इसके बाद कोर्ट ने कंपनी को याचिकाकर्ता के नौकरी के आवेदन पर कानून और उसके द्वारा किए गए अवलोकन के अनुसार विचार करने का निर्देश दिया।
दूसरी शादी से पैदा हुए बच्चों की नियुक्ति के संबंध में प्रावधान रद्द–
अदालत ने 23 सितंबर, 2011 को बिजली विभाग द्वारा जारी परिपत्र में दूसरी शादी से पैदा हुए बच्चों की नियुक्ति के संबंध में एक प्रावधान को रद्द भी कर दिया। इस प्रावधान के अनुसार, अगर पहली शादी के रहते दूसरी शादी हुई है तो दूसरी पत्नी या उसके बच्चे अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति के लिए पात्र नहीं हैं।
पहली शादी के रहते पिता ने किया था दूसरा विवाह–
हाईकोर्ट की एकल पीठ ने के संतोष नामक व्यक्ति की याचिका खारिज कर दी थी, जिसने अपने पिता की 2014 में मृत्यु के बाद अनुकंपा के आधार पर सरकारी बंगलूरू इलेक्ट्रिीसिटी सप्लाई कंपनी (बीईएससीओएम) में नौकरी के लिए आवेदन किया था। उसके पिता कंपनी में लाइनमैन ग्रेड-2 के पद पर कार्यरत थे।
चूंकि याचिकाकर्ता का जन्म पिता की पहली शादी के रहते हुए दूसरी शादी से हुआ था, लिहाजा कंपनी ने इसे अपनी नीति के खिलाफ बताते हुए उसका आवेदन ठुकरा दिया था। इसके बाद याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट में अपील की थी, जिसे कोर्ट की एकल पीठ ने खारिज कर दिया था। इसके बाद याची ने दोहरी पीठ के समक्ष अपील की।
दो महीने के भीतर करनी होगी कार्रवाई–
कोर्ट ने मामले की सुनवाई के बाद कर्नाटक पावर ट्रांसमिशन कॉरपोरेशन लिमिटेड को दो महीने के भीतर उचित कदम उठाने को कहा। कोर्ट ने बचाव पक्ष को निर्देश दिया गया है कि वे याचिकाकर्ता द्वारा किए गए आवेदन पर कानून के अनुसार विचार करें।
अदालत ने कहा, आदेश की प्रमाणित प्रति प्राप्त होने की तारीख से दो महीने की अवधि के भीतर विचार किया जाएगा, क्योंकि कर्मचारी की मृत्यु लगभग सात साल पहले हुई थी।