अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के बढ़ते क़दमों से सरकार सेना कई शहरों में हारती जा रही है. इसका असर अफ़ग़ानिस्तान में भारतीय मौजूदगी पर भी पड़ना शुरु हो चुका है.
अफ़ग़ानिस्तान के पुनर्निमाण के लिए भारत वहां कई बड़ी परियोजनाओं को अंजाम दे रहा था लेकिन अब उन सब पर धीरे-धीरे विराम लगता दिख रहा है.
ताज़ा घटनाक्रम में अफ़ग़ानिस्तान में मज़ार-ए-शरीफ़ स्थित भारतीय वाणिज्य दूतावास ने जानकारी दी है कि मंगलवार शाम को एक विशेष विमान नई दिल्ली रवाना हो रहा है. मज़ार-ए-शरीफ़ में और आसपास मौजूद भारतीय नागरिकों से आग्रह किया गया है कि वे विशेष विमान से दिल्ली रवाना हो जाएँ.
मज़ार-ए-शरीफ़ स्थित भारतीय वाणिज्य दूतावास ने अपने ट्वीट में ये भी कहा है कि विशेष विमान से नई दिल्ली जाने वाले भारतीय नागरिक दो वॉट्सऐप whatsapp नंबरों 0785891303 और 0785891301 पर अपना पूरा नाम, पासपोर्ट नंबर और एक्सपायरी डेट की जानकारी फ़ौरन दें.
साथ ही साथ दूतावास ने अफगानिस्तान में रह रहे भारतीयों को वेबसाइट https://eoi.gov.in/kabul/ पर रजिस्टर करने और किसी भी कठिनाई पर ईमेल e-mail paw.kabul@mea.gov.in करने का निर्देश जारी किया है.
सुरक्षा कारणों से बंद हुआ वाणिज्य दूतावास–
अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान और सरकारी सुरक्षाबलों के बीच लड़ाई तेज़ होती जा रही है और कुछ बड़े शहरों पर कब्ज़े के बाद अब तालिबान की नज़र अब मज़ार-ए-शरीफ़ की ओर है.
यही वजह है कि भारतीय वाणिज्य दूतावास दूतावास के अधिकारी-कर्मचारी समेत बाक़ी भारतीयों के लिए ख़तरा बढ़ता जा रहा है. इससे पहले तालिबान अफ़ग़ानिस्तान में कम से कम छह प्रांतीय राजधानियों पर नियंत्रण कर चुका है.
वर्ष 2017 में तालिबान ने मज़ार-ए-शरीफ़ में सेना के एक ठिकाने पर हमला किया था जिसमें 100 से अधिक सैनिक मारे गए थे.
इस साल अमेरिका के नेतृत्व वाली विदेशी सेना के अफ़ग़ानिस्तान से वापसी शुरू होने के बाद से ही तालिबान ने दोबारा अपने पैर मज़बूती से जमाने की कोशिश की है, हालाँकि अफ़ग़ान सुरक्षाबल उन्हें रोकने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन तालिबान अफ़ग़ान सुरक्षाबलों पर भारी पड़ते नज़र आए हैं.
मज़ार-ए-शरीफ़ स्थित भारतीय वाणिज्य दूतावास की ओर से 10 अगस्त को विशेष विमान की व्यवस्था वाले संदेश से एक दिन पहले ही कांग्रेस नेता जयवीर शेरगिल ने भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर को एक पत्र लिखकर अफ़ग़ानिस्तान में फँसे भारतीयों को जल्द स्वदेश लाने की माँग की थी.
कांग्रेस नेता जयवीर शेरगिल ने अपने पत्र में दावा किया था कि अफ़ग़ानिस्तान में फँसे सिख और हिंदू तालिबान के निशाने पर हैं.
अफ़ग़ानिस्तान में भारत–
भारत और अफ़ग़ानिस्तान के रिश्ते बहुत मज़बूत रहे हैं. भारत ने कई विकास परियोजनाओं में अरबों डॉलर का निवेश किया है.
जब तत्कालीन सोवियत संघ ने अफ़ग़ानिस्तान पर हमला किया था और अमेरिका ने अफ़ग़ान लड़ाकुओं का समर्थन किया था, तो उस वक़्त भारत ने अपने लिए तटस्थ रहने का रास्ता चुना था.
लेकिन जब साल 2001 में अमेरिकी फौज ने तालिबान के ठिकानों पर हमला करना शुरू किया था, तो भारत ने इस कार्रवाई का स्वागत किया था.
बाद में भारत ने अफ़ग़ानिस्तान के पुनर्निर्माण में काफ़ी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया और वहाँ कई महत्वपूर्ण परियोजनाओं पर काफ़ी बड़ी रक़म भी ख़र्च की.
लेकिन तालिबान के बढ़ते प्रभाव के बीच अब भारत ख़ुद को एक अजीब स्थिति में पा रहा है. शायद यही वजह है कि तालिबान को आधिकारिक तौर पर कभी मान्यता नहीं देने वाला भारत अब अपनी बरसों पुरानी नीति को छोड़कर तालिबान के साथ बैक-चैनल से वार्ता कर रहा है.
इसी वर्ष जून में जब भारत के विदेश मंत्रालय से पूछा गया कि क्या भारत सरकार तालिबान के साथ सीधी बातचीत कर रही है तो विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि भारत अफ़ग़ानिस्तान में “अलग-अलग स्टेकहोल्डरों” के संपर्क में है.
अफ़ग़ानिस्तान में कितने भारतीय?
पिछले महीने ही भारत ने कंधार से लगभग 50 राजनयिकों को अधिकारियों-कर्मचारियों और सुरक्षाकर्मियों के साथ स्वदेश बुला लिया था.
तब कंधार शहर के आसपास तालिबान और अफ़ग़ान सुरक्षाबलों के बीच भीषण लड़ाई हो रही थी.
सरकारी आँकड़ों के मुताबिक़, अफ़ग़ानिस्तान में अभी भी लगभग 1500 भारतीय नागरिक मौजूद हैं.
पिछले ही हफ्ते भारतीय विदेश मंत्रालय ने लोकसभा में जानकारी दी थी कि अफ़ग़ानिस्तान के हालत पर भारत की पैनी नज़र है और वहाँ भारतीयों की सुरक्षा के मद्देनज़र सभी ज़रूरी उपाय किए जा रहे हैं.
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