सोमवार (Monday) का दिन भगवान शिव (Lord Shiva) को समर्पित है. ऐसे में कहा जाता है कि अगर सोमवार को भगवान शिव की सच्चे मन से पूजा की जाए तो सारे कष्टों (Pains) से मुक्ति मिलती है और सभी मनोकामना पूरी होती है.
मान्यता है कि भगवान शिव को खुश करने के लिए सोमवार को सुबह उठकर स्नान करके भगवान शिव की आराधना करनी चाहिए. ऐसी मान्यता है कि इस दिन सच्चे मन से भोले भगवान की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. आइए आज आपको बताते हैं
भगवान शिव और माता पार्वती के बेटे और बेटियों के बारे में. भगवान शिव के कई पुत्र और पुत्रियों का जन्म किसी न किसी तरह से उनके निर्माण के कारण हुआ था.
कार्तिकेय
कार्तिकेय को सुब्रमण्यम, मुरुगन और स्कंद भी कहा जाता है. पुराणों के अनुसार षष्ठी तिथि को कार्तिकेय भगवान का जन्म हुआ था इसलिए इस दिन उनकी पूजा का विशेष महत्व है.
अरब में यजीदी जाति के लोग भी इन्हें पूजते हैं, ये उनके प्रमुख देवता हैं. उत्तरी ध्रुव के निकटवर्ती प्रदेश उत्तर कुरु के क्षेत्र विशेष में ही इन्होंने स्कंद नाम से शासन किया था। इनके नाम पर ही स्कंद पुराण है.
गणेश
पुराणों में गणेशजी की उत्पत्ति की विरोधाभासी कथाएं मिलती हैं. भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को मध्याह्न के समय गणेशजी का जन्म हुआ था. भगवान गणेश की उत्पत्ति माता पार्वती ने चंदन के उबटन मिश्रण से की थी.
सुकेश
सुकेश भगवान शिव के तीसरे पुत्र थे. पौराणिक कथा के अनुसार दो राक्षस भाई थे- ‘हेति’ और ‘प्रहेति’. प्रहेति धर्मात्मा हो गया और हेति ने राजपाट संभालकर अपने साम्राज्य विस्तार हेतु ‘काल’ की पुत्री ‘भया’ से विवाह किया. भया से उसके विद्युत्केश नामक एक पुत्र का जन्म हुआ. विद्युत्केश का विवाह संध्या की पुत्री ‘सालकटंकटा’ से हुआ. माना जाता है कि ‘सालकटंकटा’ व्यभिचारिणी थी. इस कारण जब उसका पुत्र जन्मा तो उसे लावारिस छोड़ दिया गया. विद्युत्केश ने भी उस पुत्र की यह जानकर कोई परवाह नहीं की कि यह न मालूम किसका पुत्र है.
पुराणों के अनुसार भगवान शिव और मां पार्वती की उस अनाथ बालक पर नजर पड़ी और उन्होंने उसको सुरक्षा प्रदान की. इसका नाम उन्होंने सुकेश रखा. इस सुकेश से ही राक्षसों का कुल आगे बढ़ा.सुकेश ने गंधर्व कन्या देववती से विवाह किया. देववती से सुकेश के 3 पुत्र हुए- 1. माल्यवान, 2. सुमाली और 3. माली। इन तीनों के कारण राक्षस जाति को विस्तार और प्रसिद्धि प्राप्त हुई.
जलंधर
भगवान शिव का एक चौथा पुत्र था जिसका नाम था जलंधर. श्रीमद् भागवत पुराण के अनुसार एक बार भगवान शिव ने अपना तेज समुद्र में फेंक दिया इससे जलंधर उत्पन्न हुआ. माना जाता है कि जलंधर में अपार शक्ति थी और उसकी शक्ति का कारण थी उसकी पत्नी वृंदा. वृंदा के पतिव्रत धर्म के कारण सभी देवी-देवता मिलकर भी जलंधर को पराजित नहीं कर पा रहे थे. जलंधर ने विष्णु को परास्त कर देवी लक्ष्मी को विष्णु से छीन लेने की योजना बनाई थी. तब विष्णु ने वृंदा का पतिव्रत धर्म खंडित कर दिया. वृंदा का पतिव्रत धर्म टूट गया और भगवान शिव ने खुद जलंधर का वध कर दिया.
भारत के पंजाब प्रांत में वर्तमान जालंधर नगर जलंधर के नाम पर ही है. जालंधर में आज भी असुरराज जलंधर की पत्नी देवी वृंदा का मंदिर मोहल्ला कोट किशनचंद में स्थित है. मान्यता है कि यहां एक प्राचीन गुफा थी, जो सीधी हरिद्वार तक जाती थी. माना जाता है कि प्राचीनकाल में इस नगर के आसपास 12 तालाब हुआ करते थे. नगर में जाने के लिए नाव का सहारा लेना पड़ता था.
अयप्पा
भगवान अयप्पा के पिता शिव और माता मोहिनी(विष्णु का मोहिनी रूप) हैं. शिव और विष्णु से उत्पन सस्तव नामक पुत्र का जन्म का हुआ जिन्हें दक्षिण भारत में अयप्पा कहा जाता है. शिव और विष्णु से उत्पन होने के कारण उनको ‘हरिहरपुत्र’ भी कहा जाता है.
भारतीय राज्य केरल में शबरीमाला में अयप्पा स्वामी का प्रसिद्ध मंदिर है, जहां विश्वभर से लोग शिव के इस पुत्र के मंदिर में दर्शन करने के लिए आते हैं.
भूमा
एक समय जब कैलाश पर्वत पर भगवान शिव समाधि में ध्यान लगाए बैठे थे, उस समय उनके ललाट से तीन पसीने की बूंदें पृथ्वी पर गिरीं. इन बूंदों से पृथ्वी ने एक सुंदर और प्यारे बालक को जन्म दिया, जिसकी चार भुजाएं थीं और वय रक्त वर्ण का था.
इस पुत्र का पृथ्वी ने पालन पोषण करना शुरू किया. तभी भूमि का पुत्र होने के कारण यह भौम कहलाया. बड़ा होने पर मंगल काशी पहुंचा और भगवान शिव की कड़ी तपस्या की. तब भगवान शिव ने प्रसन्न होकर उसे मंगल लोक प्रदान किया.
खुजा
पौराणिक वर्णन के अनुसार खुजा धरती से तेज किरणों की तरह निकले थे और सीधा आकाश की ओर निकल गए थे. उनके बारे में पुराणों में कम उल्लेख मिलता है.