उत्तराखंड HC: गंगा नदी के तट से 500 मीटर के भीतर मांस की दुकानों पर प्रतिबंध लगाना संवैधानिक है-

उत्तराखंड HC: गंगा नदी के तट से 500 मीटर के भीतर मांस की दुकानों पर प्रतिबंध लगाना संवैधानिक है-

नैनीताल उच्च न्यायालय ने उत्तराखंड में गंगा किनारे मांस बिक्री के मामले में अहम निर्णय सुनाया है। कोर्ट ने उत्तरकाशी में गंगा तट से 500 मीटर दायरे में मांस की दुकानें खोलने व मांस बेचने पर प्रतिबंध को सही ठहराया है।

जिला पंचायत के अपर मुख्य अधिकारी ने दुकानदार को नोटिस देकर दुकान शिफ्ट करने को कहा था। इसी मामले में दुकानदार कोर्ट में याचिका दायर की थी। कोर्ट ने फैसले के दौरान इस मामले में यह भी कहा है कि जिला पंचायत व निकायों को नियम बनाने का अधिकार है।

न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि मामले में मटन की दुकान चलाने के लिए जिला पंचायत या जिला मजिस्ट्रेट से अनापत्ति प्रमाण पत्र प्राप्त करना अनिवार्य है।

मामला इस प्रकार से है-

अदालत गंगा नदी के किनारे 105 मीटर की दूरी पर स्थित अपने घर से मटन की दुकान संचालित करने के लिए याचिकाकर्ता को अनापत्ति प्रमाण पत्र देने से इनकार करने वाले एक जिला मजिस्ट्रेट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर विचार कर रही थी।

उत्तरकाशी निवासी नावीद कुरैशी ने याचिका दायर कर कहा है कि वह हिना गांव, थाना मनेरी का निवासी है। जिला पंचायत से लाइसेंस लेकर 2006 से 2015 तक किराए के मकान में मटन की दुकान चला रहा है। फिर 2016 में भूमिधरी होने की वजह से अपनी दुकान बनाकर मटन का कारोबार किया।

याचिकाकर्ता ने दावा किया कि वह 2006 से दुकान चला रहा था, लेकिन 2016 में उसे जिला पंचायत, उत्तरकाशी से 7 दिनों के भीतर अपनी दुकान को स्थानांतरित करने का नोटिस मिला।

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ये आधार बना चुनौती-

नावेद का कहना था कि खाद्य सुरक्षा मानक अधिनियम 2006 के तहत उसे लाइसेंस प्राप्त है। जिला पंचायत इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकती।

जिला पंचायत की ओर से उप-नियम बनाकर यह निर्णय लिया गया है कि गंगा नदी के किनारे से 500 मीटर के भीतर जानवरों को काटने और मांस बेचने की कोई दुकान नहीं संचालित की जाएगी।

उच्च न्यायलय का निर्णय-

न्यायमूर्ति संजय कुमार मिश्रा की एकलपीठ ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि जिला पंचायत को उप नियम बनाने का अधिकार है।

न्यायालय का मत है कि जिला मजिस्ट्रेट उत्तरकाशी ने गंगा नदी के किनारे से 500 मीटर के भीतर मटन की दुकान चलाने के लिए याचिकाकर्ता को अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी नहीं करके कोई गलती नहीं की है।

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