50वें CJI बने जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, दो साल का होगा कार्यकाल, उदार फैसलों के कारण है काफी प्रसिद्ध

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Justice DY Chandrachud जस्टिस धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ देश के नए मुख्य न्यायाधीश बन गए हैं. राष्ट्रपति भवन में हुए कार्यक्रम में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें पद की शपथ दिलाई. कार्यक्रम में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, सुप्रीम कोर्ट के जज, केंद्रीय मंत्री समेत तमाम गणमान्य लोग उपस्थित रहे. चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ का कार्यकाल 10 नवंबर 2024 तक होगा.

11 नवंबर 1959 को जन्मे जस्टिस चंद्रचूड़ के पिता भी भारत के मुख्य न्यायाधीश रह चुके हैं. उनके पिता यशवंत विष्णु चंद्रचूड़ सबसे लंबे समय के लिए इस अहम पद पर रहे. वह 1978 से 1985 यानी 7 साल तक सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रहे. जस्टिस चंद्रचूड़ की एक खास बात यह है कि उनके चेहरे पर हर समय एक सहज मुस्कान होती है. वह जूनियर वकीलों से भी उसी सम्मान से पेश आते हैं, जितना जाने-माने वकीलों से. यहां तक कि किसी केस को खारिज करते समय भी वह वकील को विनम्र लहज़े में विस्तार से उसकी वजह बताते हैं.

कई मामलों में अहम भूमिका में रहे चंद्रचूड़ के फैसले-

हाल ही में उन्होंने अविवाहित महिलाओं को भी 20 से 24 हफ्ते के गर्भ को गिराने की अनुमति दी. इस ऐतिहासिक फैसले में उन्होंने यह भी कहा कि अगर पति ने ज़बरन संबंध बना कर पत्नी को गर्भवती किया है, तो उसे भी 24 हफ्ते तक गर्भपात का अधिकार होगा. इस तरह गर्भपात के मामले ने ही सही, कानून में पहली बार वैवाहिक बलात्कार यानी मैरिटल रेप को मान्यता मिली.

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अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता समेत तमाम मौलिक अधिकारों को लेकर जस्टिस चंद्रचूड़ सजग रहे हैं. उन्होंने राजनीतिक और वैचारिक रूप से अलग-अलग छोर पर खड़े लोगों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर एक जैसा आदेश दिया. वह यह कि सिर्फ अपने विचार व्यक्त करने के लिए किसी को जेल में डाल देना सही नहीं है. लंबे समय से सेना में स्थायी कमीशन के लिए लड़ाई लड़ रही महिला अधिकारियों को भी उन्होंने राहत दी. अयोध्या मामले का फैसला देने वाली 5 जजों की बेंच के जस्टिस चंद्रचूड़ भी सदस्य थे. आधार मामले ओर फैसला देते हुए उन्होंने निजता को मौलिक अधिकार घोषित करवाने में अहम भूमिका निभाई.

विवाहेतर संबंधों पर पलट दिया पिता का ही फैसला-

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के फैसले चर्चित रहे हैं. इनमें वर्ष 2018 में विवाहेतर संबंधों (व्याभिचार कानून) को खारिज करने वाला फैसला शामिल है. 1985 में तत्कालीन सीजेआई वाईवी चंद्रचूड़ की पीठ ने सौमित्र विष्णु मामले में भादंवि की धारा 497 को कायम रखते हुए कहा था कि संबंध बनाने के लिए फुसलाने वाला पुरुष होता है न कि महिला. वहीं, डीवाई चंद्रचूड ने 2018 के फैसले में 497 को खारिज करते हुए कहा था ‘व्याभिचार कानून महिलाओं का पक्षधर लगता है लेकिन असल में यह महिला विरोधी है. शादीशुदा संबंध में पति-पत्नी दोनों की एक बराबर जिम्मेदारी है, फिर अकेली पत्नी पति से ज्यादा क्यों सहे? व्याभिचार पर दंडात्मक प्रावधान संविधान के तहत समानता के अधिकार का परोक्ष रूप से उल्लंघन है क्योंकि यह विवाहित पुरुष और विवाहित महिलाओं से अलग-अलग बर्ताव करता है.’

कोरोना पॉजिटिव होने पर भी किया काम-

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कोविड के दौर में उन्होंने ऑक्सीजन और दवाइयों की उपलब्धता पर कई आदेश दिए. एक ऐसा मौका भी आया जब वह खुद कोरोना पीड़ित होने के बावजूद अपने घर से वीडियो कांफ्रेंसिंग के ज़रिए सुनवाई से जुड़े. हाल ही में उन्होनें रात 9 बज कर 10 मिनट तक कोर्ट की कार्यवाही चलाई और उस दिन अपने सामने लगे सभी मामलों को निपटाया.

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