शीर्ष कोर्ट ने हाईकोर्ट में जज के तौर पर शीर्ष अदालत में वकालत करने वाले वकीलों पर विचार नहीं करने की मांग वाली याचिका को खारिज करते हुए याचिकाकर्ता पर 50 हजार रुपये का जुर्माना लगाया है। शीर्ष अदालत ने कहा, इस याचिका में कोई मेरिट नहीं है और यह न्यायिक समय की बर्बादी है।
न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति अभय एस ओका की पीठ ने कहा, भारत के संविधान में ऐसा कुछ भी नहीं है जो सर्वोच्च अदालत में प्रैक्टिस करने वाले वकीलों को हाईकोर्ट के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने से रोकता है।
याचिकाकर्ता अधिवक्ता अशोक पांडे ने कहा, संविधान के अनुच्छेद- 217 के अनुसार, एक व्यक्ति जो राज्य बार काउंसिल में पंजीकृत है और बाद में सुप्रीम कोर्ट में वकालत के लिए शिफ्ट होता है तो वह उस अदालत के जज के रूप में नियुक्त होने के अयोग्य है। संविधान का अनुच्छेद 217 हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति और उनके कार्यालय की शर्तों से संबंधित है।
बेंच ने कहा, आपकी याचिका बिना किसी मेरिट की है। अतः आप पर न्यायिक समय की बर्बादी करने के लिए 50 हजार जुर्माना लगाया जाता है। आप द्वारा यह जुर्माना चार सप्ताह के भीतर सुप्रीम कोर्ट मध्यस्थता एवम सुलह परियोजना समिति में जमा कराना होगा।