‘हमारी सभ्यता, हमारा ज्ञान सनातन है’, हमें इसे कम नहीं आंकना चाहिए, सभी धर्मों का एक ही साझा दुश्मन है- ‘नफरत’, इस को निकालिए – सुप्रीम कोर्ट

मुंबई में बीते दिनों हुई सकल हिंदू समाज की हिंदू जन आक्रोश रैली जैसा कार्यक्रम रोकने की मांग वाली याचिका पर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। इस दौरान याचिकाकर्ता ने कोर्ट में बताया कि इसके बाद भी एक कार्यक्रम हुआ था। इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को वीडियो सौंपने का आदेश दिया है। साथ ही शीर्ष कोर्ट ने ये भी कहा कि हमें यह भी तय करना होगा कि कौन से बयान या भाषण हेट स्पीच के दायरे में आते हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बोले गए हर शब्द को नफरती नहीं माना जा सकता। हम अपने मन से नफरत को हटा दें, फिर अंतर देखें। नफरत सभी धर्मों का साझा दुश्मन है। शीर्ष कोर्ट ने कहा, देश में शाश्वत ज्ञान के साथ महान सभ्यता है, जो पूरी दुनिया में अद्वितीय है। नफरत से इसका मोल कम न करें। शीर्ष अदालत नफरती भाषण को विनियमित करने संबंधी याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी।

न्यायमूर्ति केएम जोसेफ और न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना की पीठ ने कहा कि हमारा और सभी धर्मों का एक ही साझा दुश्मन है और वह है ‘नफरत’। पीठ ने केरल निवासी शाहीन अब्दुल्ला के इस माह की शुरुआत में मुंबई में सकल हिंदू समाज की रैली में कथित रूप से दिए नफरती भाषण के खिलाफ याचिका पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से पूछा कि क्या वहां कोई नफरती भाषण दिया गया था। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि उन्हें दिए गए निर्देश के अनुसार इस तरह का कोई बयान नहीं दिया गया।

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जानकारी हो कि मुंबई में सकल हिंदू समाज द्वारा पांच फरवरी को एक रैली का आयोजन किया था. जिसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी। हालांकि कोर्ट ने शर्तों के साथ रैली को अनुमति दे दी थी। 3 फरवरी को सुनवाई करते हुए कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को कहा था कि वो सुनिश्चित करे कि रैली में कोई हेट स्पीच ना दे। शीर्ष कोर्ट ने रैली की वीडियो रिकॉर्डिंग के आदेश भी दिए थे।

इस पर पीठ ने मामले में एक याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील एम निजामुद्दीन पाशा से कहा, दो दिन पहले हमने आईपीसी की धारा 153ए और अन्य कानून के प्रावधानों के तहत एक मामले में अरविंद केजरीवाल (दिल्ली के सीएम) के खिलाफ कार्यवाही पर रोक लगा दी थी।

हर शब्द नफरती भाषण नहीं-

शीर्ष कोर्ट की पीठ ने कहा, ऐसा नहीं है कि जो कुछ भी कहा जाता है, वह नफरती भाषण है। इसलिए हमें केवल इस बात से सावधान रहना होगा कि इस धारा का क्या अर्थ है, जैसा कि इस अदालत ने व्याख्या की है।
अदालत ने यह भी कहा कि नफरती भाषण में कुछ अपशब्दों का इस्तेमाल किया जाना आवश्यक होता है। धारा 153ए का आह्वान काफी हद तक सुप्रीम कोर्ट के प्रावधान की व्याख्या पर निर्भर करेगा।
सुनवाई के दौरान, साॅलिसिटर जनरल मेहता ने कहा कि वह घटनाओं की वीडियो क्लिप के साथ-साथ दिए गए बयान भी दाखिल करेंगे।

मामले में अब 21 मार्च को सुनवाई होगी।

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