इलाहाबाद HC ने गवर्नमेंट कौंसिल से पूछा : क्या सरकार की अनुमति के बिना किसी सरकारी कर्मचारियों पर FIR दर्ज की जा सकती है

इलाहाबाद HC ने गवर्नमेंट कौंसिल से पूछा : क्या सरकार की अनुमति के बिना किसी सरकारी कर्मचारियों पर FIR दर्ज की जा सकती है

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गवर्नमेंट कौंसिल से पूछा है कि क्या सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ सरकार की अनुमति बगैर प्राथमिकी दर्ज की जा सकती है। कोर्ट अब इस मामले में 11 जुलाई को सुनवाई करेगी।

न्यायमूर्ति विपिन चंद्र दीक्षित की पीठ ने यह जानकारी प्रदीप कुमार द्विवेदी की पुनरीक्षण याचिका पर सुनवाई करते याची अधिवक्ता से आदेश की फोटोकॉपी मांगी और सरकारी अधिवक्ता को मुहैया कराने को कहा और पूछा कि क्या ऐसा है। यह एक कानूनी सवाल है। विचारणीय है। सरकारी अधिवक्ता बताएं कि क्या सरकार की अनुमति के बगैर सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश दिया जा सकता है।

क्या है मामला-

मामला रेलवे द्वारा नियमित हुए 115 कैजुअल कर्मचारियों से जुड़ा हुआ है। आरोप है कि कैजुअल कर्मचारियों का रिकॉर्ड दुर्भावनापूर्ण ढंग से नष्टï किया गया है। मामले में उत्तर मध्य रेलवे प्रयागराज के महाप्रबंधक प्रमोद कुमार एवं वरिष्ठ कार्मिक अधिकारी बृजेश कुमार चतुर्वेदी व अन्य पूर्व अधिकारियों के खिलाफ आपराधिक केस दर्ज कर विवेचना करने की मांग की गई है।

याचिकाकर्ता का कहना है कि रेलवे महाप्रबंधक व अन्य अधिकारियों ने 115 कैजुअल कर्मचारियों को 11 दिसंबर 1996 को नीति के तहत नियमित किया। अधिकारियों ने कई वास्तविक कर्मचारियों को नियमित न कर अपने चहेतों को नियमित कर दिया। केंद्रीय सूचना आयोग के निर्देश पर बिजलेंस जांच की गई। रिपोर्ट में कहा गया कि विभाग मे नियमित कर्मचारियों का रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है।

याची ने कूट रचित दस्तावेज तैयार करने, सरकारी दस्तावेज बिना प्राधिकार के नष्ट करने के आरोप में धूमनगंज थाने में शिकायत की। सुनवाई न होने पर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष अर्जी दी। मजिस्ट्रेट ने कहा लोक सेवक के विरुद्ध सरकार या विभाग की अनुमति लिए बगैर आपराधिक केस दर्ज नहीं किया जा सकता और अर्जी खारिज कर दी। जिसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है।

ALSO READ -  प्रारंभिक डिक्री में पहले से निर्मित इमारतों को ध्वस्त करने का निर्देश किसी भी पक्ष के हित में नहीं हो सकता: सुप्रीम कोर्ट

केस सुनवाई के दौरान याची ने कोर्ट के समक्ष सुप्रीम कोर्ट के इंस्पेक्टर ऑफ पुलिस व अन्य बनाम बटेनापाटला वेंकेट रत्नम व अन्य Inspector Of Police & Ors vs Battenapatla Venkata Ratnam & Anr on 13 April, 2015 के केस में दिए गए आदेश का हवाला दिया। कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह जरूरी नहीं है। इस पर कोर्ट ने याची अधिवक्ता से आदेश की फोटोकॉपी सरकारी अधिवक्ता को मुहैया कराने को कहा और पूछा कि क्या ऐसा है। यह एक कानूनी सवाल है। विचारणीय है। सरकारी अधिवक्ता बताएं कि क्या सरकार की अनुमति के बगैर सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश दिया जा सकता है।

Translate »
Scroll to Top