बिहार में फर्जी दस्तावेजों पर सरकारी नौकरी लेने वालों की अब खैर नहीं है. बिहार राज्य सरकार के द्वारा ऐसे लोगों को खिलाफ हर विभाग में बड़े स्तर पर कार्रवाई की जा रही है. अकेले मुजफ्फरपुर जिले में स्वास्थ्य विभाग ने 70 दोषियों की सेवा बर्खास्त कर दी है.
बिहार में फर्जी दस्तावेजों पर सरकारी नौकरी लेने वालों की अब खैर नहीं है. राज्य सरकार के द्वारा ऐसे लोगों को खिलाफ हर विभाग में बड़े स्तर पर कार्रवाई की जा रही है. अकेले मुजफ्फरपुर जिले में स्वास्थ्य विभाग ने 70 दोषियों की सेवा बर्खास्त कर दी है.
बताया जा रहा है कि मुजफ्फरपुर सदर अस्पताल समेत विभिन्न पीएचसी में फर्जी कागजात पर बहाल 70 स्वास्थ्यकर्मियों को बर्खास्त कर दिया गया. स्वास्थ्य विभाग के रोग नियंत्रण लोक स्वास्थ्य के निदेशक प्रमुख के निर्देश पर क्षेत्रीय अपर निदेशक ने 11 स्वास्थ्यकर्मियों को और सिविल सर्जन ने 59 स्वास्थ्य कर्मियों को बर्खास्त कर दिया.
पटना हाइकोर्ट के आदेश पर हुई कार्रवाई-
जानकारी हो कि पटना हाइकोर्ट के आदेश के प्रकाश में जिन कर्मियों को बर्खास्त किया गया है, उन्हें सरकार ने अनियमित, अवैध व फर्जी रूप में विभाजित किया है. इनमें कई लोग मर हो चुके हैं, जबकि कई सेवानिवृत्त हो चुके हैं. सिविल सर्जन डॉ उमेश चंद्र शर्मा ने बताया कि हाइकोर्ट ने बिहार सरकार एवं अन्य बनाम देवेंद्र शर्मा और बिहार सरकार एवं अन्य बनाम कीर्ति नारायण प्रसाद की सिविल अपील की सुनवाई पूरी करने पर इन कर्मियों की सेवा समाप्त करने का क्रमश: 17 अक्टूबर 2019 और 30 नवंबर 2018 को आदेश दिया था. इसके बाद स्वास्थ्य विभाग ने इसे तीन भागों में विभाजित किया. जांच के बाद निदेशक प्रमुख ने सभी 70 कर्मियों को बर्खास्त करने का 11 जुलाई 2023 काे और क्षेत्रीय निदेशक मुजफ्फरपुर ने 13 जुलाई को आदेश दिया था. तत्कालीन अपर निदेशक द्वारा बहाल किये गये 11 कर्मियों को भी बर्खास्त किया गया.
रिटायर्ड कर्मियों की पेंशन रोकने का आदेश-
फर्जी मामले में जो लोग रिटायर्ड हो चुके हैं, उनकी पेंशन भी रुकेगी. वहीं जिनका निधन हो चुका है, उनकी फैमिली पेंशन रोकने से संबंधित आदेश निकासी एवं व्ययन पदाधिकारी को दिया गया है. वर्तमान में 70 कर्मियों में 65 लोग ही जीवित हैं. इनमें वर्तमान में 21 लोग विभिन्न पीएचसी व सदर अस्पताल में कार्यरत हैं, जबकि दो कर्मियों का जिले से बाहर ट्रांसफर हो गया है. एक कर्मी ट्रेसलेस है, जबकि पांच की मौत हो चुकी है.
फर्जी शिक्षकों पर भी कसेगी नकेल-
बिहार राज्य में करीब करीब सभी जिलों में फर्जी प्रमाण पत्र पर शिक्षक की नौकरी लेने वालों लोगों की पहचान की जा रही है. इसके लिए विभाग के द्वारा बृहद स्तर पर कार्रवाई की जा रही है. नियोजित शिक्षकों के प्रमाण पत्र की जांच निगरानी के द्वारा करवायी जा रही है. ऐसे में अब समस्तीपुर में 91 फर्जी शिक्षकों के खिलाफ निगरानी विभाग ने अब तक विभिन्न थानों में प्राथमिकी दर्ज करायी गयी है. हालांकि कुछ नियोजन इकाइयों ने इन शिक्षकों को बर्खास्त नहीं किया है. डीपीओ ने नियोजन इकाई के सचिव एवं प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी को दिये पत्र में स्पष्ट कहा था कि पत्र प्राप्ति के साथ ही उक्त शिक्षकों के खिलाफ निरोधात्मक कार्रवाई करते हुए विद्यालय जाने एवं विद्यालय में उपस्थिति दर्ज करने पर रोक लगाएं.
3545 शिक्षकों का नहीं मिला फोल्डर-
विभाग ने ऐसे फर्जी शिक्षकों की सूची तलब कर राशि वसूलने की तैयारी कर रहा है. इससे इतर जिला नियोजित शिक्षकों की बहाली में जो फर्जीवाड़ा हुआ है, वह गुत्थी अभी तक निगरानी विभाग नहीं सुलझा सका है. जानकारी के मुताबिक 11,454 नियोजित शिक्षकों के शैक्षणिक व प्रशैक्षणिक प्रमाण पत्र की जांच होनी है. अब तक करीब 3545 शिक्षकों का फोल्डर नहीं मिल पाया है. ऐसे में फर्जी शिक्षकों पर कार्रवाई करने में निगरानी विभाग के पसीने छूट रहे हैं.
प्रमाण पत्रों की प्रति 25 तक निगरानी को देने का निर्देश-
शिक्षा विभाग ने जिला शिक्षा पदाधिकारी एवं जिला कार्यक्रम पदाधिकारी (स्थापना) को पंचायतीराज संस्थान एवं नगर निकाय संस्थान अंतर्गत 2006 से 2015 की अवधि में नियुक्त शिक्षकों के शैक्षणिक एवं प्रशैक्षणिक प्रमाण पत्रों की अभिप्रमाणित प्रति 25 मई तक निगरानी विभाग को उपलब्ध कराने का निर्देश दिया है. गौरतलब है कि जिले में भी विभिन्न नियोजन इकाइयों से जुड़े तकरीबन तीन हजार से अधिक फोल्डर उपलब्ध नहीं हो सका था. विभाग के द्वारा भेजे गए निर्देश में पटना हाईकोर्ट में दाखिल याचिका में पारित आदेश का हवाला देते हुए विभाग ने कहा है कि नियोजित शिक्षकों के शैक्षणिक- प्रशैक्षणिक प्रमाण पत्र की जांच निगरानी विभाग के द्वारा करायी जा रही है. इस क्रम में विभाग द्वारा यह निर्णय लिया गया है कि ऐसे शिक्षक जिनसे संबंधित फोल्डर वेब पोर्टल पर अपलोडेड हैं, उनके प्रमाण पत्रों को जिला कार्यक्रम पदाधिकारी (स्थापना) डाउन लोड कर अभिप्रमाणित करते हुए जिला के निगरानी विभाग के नामित पदाधिकारी को जांच के लिए एक सप्ताह के अंदर उपलब्ध कराएं.