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‘एंटी रेप कानून’ को हथियार बनाकर मतभेद होने पर, महिलाएं पुरुष पार्टनर के खिलाफ दुरुपयोग कर रही हैं: हाईकोर्ट

उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने कहा है कि कई महिलाएं एक-दूसरे के साथ मतभेद होने पर अपने पुरुष सहयोगियों के खिलाफ बलात्कार को दंडित करने वाले कानून का एक हथियार के रूप में दुरुपयोग कर रही हैं।

न्यायमूर्ति शरद कुमार शर्मा ने 5 जुलाई को एक व्यक्ति के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को रद्द करते हुए यह टिप्पणी की, जिस पर एक महिला ने शादी से इनकार करने के बाद बलात्कार का आरोप लगाया था। वे 2005 से सहमति से संबंध बना रहे थे।

न्यायाधीश ने कहा, सुप्रीम कोर्ट ने भी बार-बार दोहराया है कि वयस्कों के बीच सहमति से बने शारीरिक संबंध को बलात्कार नहीं कहा जा सकता, अगर दोनों में से किसी एक पक्ष ने शादी करने से इनकार कर दिया हो। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने टिप्पणी की कि महिलाएं कलह सहित विभिन्न कारणों से अपने पुरुष समकक्षों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376 का दुरुपयोग कर रही हैं।

क्या है पूरा मामला-

वर्ष 2005 में शिकायतकर्ता और आरोपी दोनों एक दूसरे से प्यार करते थे। रिलेशनशिप में थे। दोनों ने एक-दूसरे से शादी करने का वादा भी किया। दशकों से दोनों ने एक-दूसरे के साथ शारीरिक संबंध बनाए। इसके बाद आरोपी व्यक्ति ने किसी दूसरी महिला से शादी कर ली। शादी के बाद भी दोनों मिलते थे और शारीरिक संबंध बनाते थे। कुछ साल बीतने के बाद महिला ने 30 जून, 2020 को शिकायत दर्ज कराई थी, जिसमें कहा गया था कि आरोपी 2005 से उसके साथ सहमति से यौन संबंध बना रहा था। उसने कहा कि दोनों ने एक-दूसरे से वादा किया था कि जैसे ही उनमें से किसी एक को नौकरी मिलेगी, वे शादी कर लेंगे। लेकिन बाद में आरोपी ने दूसरी महिला से शादी कर ली और उसके बाद भी उनका रिश्ता जारी रहा, ऐसा दावा किया गया।रेप का केस दर्ज कराया। शिकायत पर आपराधिक कार्यवाही हुई। लंबित कार्यवाही को रद्द करने की मांग करते हुए आरोपी ने उत्तराखंड हाईकोर्ट का रूख किया।

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उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने कहा, “सहमति का तत्व स्वचालित रूप से शामिल हो जाता है जब शिकायतकर्ता ने यह जानने के बाद भी स्वेच्छा से अपना रिश्ता जारी रखा था कि आरोपी पहले से ही शादीशुदा था।”

अदालत ने कहा कि आपसी सहमति से किसी रिश्ते में प्रवेश करते समय विवाह के आश्वासन की सत्यता की जांच प्रारंभिक चरण में की जानी चाहिए, बाद के चरण में नहीं।

हाई कोर्ट ने कहा कि शुरुआती चरण तब नहीं माना जा सकता जब रिश्ता 15 साल तक चला हो और यहां तक कि आरोपी की शादी के बाद भी जारी रहा हो।

न्यायलय ने अपने आदेश में कहा कि ये आईपीसी की धारा 376 के तहत अपराध नहीं का मामला नहीं है। क्योंकि महिला को शादी की जानकारी थी, फिर भी शारीरिक संबंध बनाने में शामिल थी।

कोर्ट ने ये भी कहा कि आईपीसी की धारा 376 के तहत अपराध में कोर्ट को सावधानीपूर्वक जांच करनी चाहिए कि क्या आरोपी सच में पीड़िता से शादी करना चाहता था या झूठा वादा कर शारीरिक संबंध बनाना चाहता था।

हाई कोर्ट ने आरोपी के खिलाफ लंबित आपराधिक कार्यवाही रद्द करते हुए कहा- आरोपी के खिलाफ केस नहीं बनता है। महिला ने सहमति से शारीरिक संबंध बनाए थे।

केस टाइटल – मनोज कुमार आर्य बनाम उत्तराखंड राज्य एवं अन्य।
केस नंबर – आपराधिक विविध आवेदन क्रमांक 79 ऑफ 2021

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