हिंदुओं के पवित्र ग्रंथ रामचरित मानस की प्रतियां जलाने के मामले में आरोपियों पर लगाए गए रासुका को लखनऊ बेंच इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उचित करार दिया है।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने जनता के सामने हिंदू धर्मग्रंथ ‘राम चरित मानस’ का कथित तौर पर अपमान करने वाले आरोपी के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980 (एनएसए) के प्रयोग को बरकरार रखा है। लखनऊ बेंच देवेन्द्र प्रताप यादव नाम के एक व्यक्ति द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण रिट याचिका पर फैसला कर रही थी, जिसके खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी।
न्यायमूर्ति संगीता चंद्रा और न्यायमूर्ति नरेंद्र कुमार जौहरी की खंडपीठ ने कहा कि जान-माल के नुकसान की संभावना है और राज्य के विकास कार्य बाधित होंगे।
याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व अधिवक्ता देवेन्द्र उपाध्याय ने किया जबकि प्रतिवादी का प्रतिनिधित्व अधिवक्ता पूजा सिंह ने किया।
इस मामले में आरोपियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 120-बी, 142, 143, 153-ए, 295, 295-ए, 298, 504, 504 (2) और 506 के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी।
ये हैं आरोप –
29 जनवरी 2023 को पूर्व नियोजित योजना के तहत एवं आपराधिक साजिश के तहत स्वामी प्रसाद मौर्य द्वारा राम चरित मानस के प्रति की गयी अभद्र टिप्पणी के समर्थन में एवं उनकी शह पर अभियुक्तगण सहित अन्य लोगों पर हमला किया गया। उक्त हिंदू धर्मग्रंथ का अपमान किया।
उक्त पुस्तक की प्रतियों को फाड़ दिया गया, कुचल दिया गया और लोगों से सार्वजनिक स्थानों पर प्रार्थनाएं करायी गयीं और उक्त संत के समर्थन में नारे लगाये गये। अनुयायियों के खिलाफ अभद्र टिप्पणी की गई, जिससे अनुयायियों में आक्रोश फैल गया और लोग एकत्र हो गए। इसलिए, आरोपी को अन्य लोगों के साथ एनएसए के तहत पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया।
देर रात तक आरोपी व उसके साथियों द्वारा किये गये कृत्य का वीडियो हर जगह वायरल हो गया, जिससे थाना क्षेत्र में सनसनी व तनाव का माहौल व्याप्त हो गया।
दंगे भड़कने की आशंका थी और मजिस्ट्रेट कोर्ट में पेश आरोपियों की अर्जी खारिज कर दी गई। उन्होंने सेशन कोर्ट में जमानत याचिका भी दाखिल की जिसे स्वीकार कर लिया गया।
उच्च न्यायालय ने उपरोक्त तथ्यों को ध्यान में रखते हुए कहा, “ऐसी भी संभावना है कि यदि आरोपी जमानत पर रिहा हो जाते हैं, तो वे फिर से इसी तरह के आपराधिक कृत्यों में शामिल हो जाएंगे और सार्वजनिक व्यवस्था की स्थिति फिर से बाधित हो जाएगी। … जांच के दौरान अभियुक्त द्वारा दिए गए बयान के तहत, दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 161 के तहत, उसने स्वीकार किया है कि “हम [लोगों] ने राम चरित मानस की प्रतियां फाड़ दी हैं”।
अदालत ने आगे कहा कि आरोपी ने अपने सहयोगियों के साथ, सार्वजनिक स्थान पर, दिन के उजाले में, राम चरित मानस का पाठ किया, जो भगवान राम के जीवन की घटनाओं से संबंधित एक धार्मिक ग्रंथ है, जिसकी पूजा समरजू के बहुसंख्यक वर्ग द्वारा की जाती है। धार्मिक विश्वास और आस्था।
कोर्ट ने यह भी कहा गया “किसी व्यक्ति का इस तरह व्यंग्यात्मक ढंग से अपमान होना स्वाभाविक है; किसी व्यक्ति में गुस्सा और नाराज़गी महसूस होना स्वाभाविक है; किसी व्यक्ति के मन में धार्मिक उन्माद और गुस्से की स्थिति देखी जा सकती है, खासकर वर्तमान स्थिति में जहां मोबाइल फोन और सोशल मीडिया उपलब्ध हैं।”
तदनुसार, उच्च न्यायालय ने याचिका खारिज कर दी।
केस शीर्षक – देवेन्द्र प्रताप यादव बनाम यूपी राज्य।