शीर्ष कोर्ट ने कहा है कि दिल्ली सरकार का बचाव करने वाले वकीलों के बिल नहीं रोके जा सकते। सर्वोच्च अदालत ने अपनी टिप्पणी में कहा कि इसे प्रतिष्ठा का विषय नहीं बनाया जाना चाहिए। दिल्ली सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर कहा गया है कि दिल्ली के उपराज्यपाल और केंद्र सरकार वकीलों की नियुक्ति में दखल दे रहे हैं। ये वकील दिल्ली सरकार का कोर्ट में बचाव करते हैं।
इस दौरान शीर्ष अदालत ने मौखिक तौर पर कहा कि वकीलों के बिल को क्लीयर किया जाना जरूरी है।
न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि इसे प्रतिष्ठा का मुद्दा न बनाएं और बिलों का निपटारा करें।
दिल्ली सरकार की याचिका पर SC का निर्देश-
न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की बेंच ने मामले की सुनावई के लिए 22 जुलाई की तारीख तय कर दी है। दिल्ली सरकार के वकील ने दलील दी कि आम आदमी पार्टी की सरकार खुद का बचाव कोर्ट में कैसे करें, क्योंकि उनके वकीलों का बिल तक रोका जा रहा है। यह मामला इसलिए उठ रहा है, क्योंकि दिल्ली सरकार ने केंद्र के खिलाफ याचिका दायर की है।
हालांकि, सॉलिसिटर जनरल से कहा कि जहां तक बिल का सवाल है, तो उसे नहीं रोका जा सकता है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि वह इस विवाद को देखेंगे।
AAP सरकार ने याचिका में क्या कहा-
सुप्रीम कोर्ट में दिल्ली सरकार ने उपराज्यपाल के उस आदेश को चुनौती दी है जिसमें कानूनी मामलों में अपनी पसंद के वकील नियुक्त करने और उनकी फीस निर्धारित करने के उसके अधिकार क्षेत्र को प्रतिबंधित किया गया है। न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ के समक्ष आप सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ दवे और वकील तल्हा अब्दुल रहमान ने दलील दी कि निर्वाचित सरकार की ओर से पेश हुए वकीलों का बिल बढ़ता जा रहा है। केंद्र सरकार इस राशि को मंजूर नहीं कर रही है और न ही जारी कर रही है। दवे ने दलील दी कि निर्वाचित सरकार केंद्र के खिलाफ विभिन्न मंचों पर कई लड़ाइयां लड़ रही और बिल को मंजूरी न मिलने से बाधाएं पैदा हो रही हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से कहा- इसे प्रतिष्ठा का मुद्दा न बनाएं-
पीठ ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि इसे प्रतिष्ठा का मुद्दा न बनाएं और बिलों का निपटारा करें। इस पर तुषार मेहता ने तुरंत सर्वोच्च कोर्ट को आश्वासन दिया कि वह इस पर गौर करेंगे और विवाद को देखेंगे। आप सरकार ने अपनी याचिका में कहा कि दिल्ली की निर्वाचित सरकार न केवल अपनी पसंद के वकील नियुक्त करने में असमर्थ है, बल्कि उनकी फीस का निर्धारण भी नहीं कर सकती।
22 जुलाई 24 को मामले में अगली सुनवाई-
याचिका में कहा गया कि अगर दिल्ली सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले वकीलों की नियुक्ति और उनकी फीस निर्धारित करने का अधिकार केंद्र सरकार के पास है, तो यह अनिवार्य रूप से केंद्र को विरोधी पक्ष के वकीलों की नियुक्ति और फीस तय करने की क्षमता प्रदान करेगा। इसमें कहा गया है कि दिल्ली की निर्वाचित सरकार को वकील की नियुक्ति पर निर्णय लेने में सक्षम होना चाहिए, क्योंकि अपनी पसंद का वकील चुनने का अधिकार सबसे अधिक उत्साहपूर्वक संरक्षित अधिकारों में से एक है। इसमें कहा गया कि निर्वाचित सरकार को संवैधानिक न्यायालयों के समक्ष अपने वकीलों को चुनने से नहीं रोका जा सकता है।