‘फर्जी एसएलपी’ मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा “कानूनी पेशेवर” अपने आपराधिक कृत्यों के लिए अभियोजन से प्रतिरक्षित नहीं

कोई भी पेशेवर, कानूनी पेशेवर तो बिल्कुल नहीं, अपने आपराधिक कृत्यों के लिए अभियोजन से प्रतिरक्षित नहीं है

फर्जी’ एसएलपी मामले में फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोई भी पेशेवर, कानूनी पेशेवर तो बिल्कुल नहीं, अपने आपराधिक कृत्यों के लिए अभियोजन से प्रतिरक्षित नहीं है।

न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की खंडपीठ ने कहा,

“अदालत में की जाने वाली कार्यवाही से बहुत पवित्रता जुड़ी हुई है। वकालतनामा और अदालतों में दाखिल किए जाने वाले दस्तावेजों पर अपने हस्ताक्षर करने वाले प्रत्येक वकील और अदालतों में विशेष रूप से देश के सुप्रीम कोर्ट में किसी पक्ष की ओर से पेश होने वाले प्रत्येक वकील से यह माना जाता है कि उसने कार्यवाही दायर की है और पूरी जिम्मेदारी और गंभीरता के साथ अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। कोई भी पेशेवर, कानूनी पेशेवर तो बिल्कुल नहीं, अपने आपराधिक कृत्यों के लिए अभियोजन से प्रतिरक्षित नहीं है।”

ज्ञात हो कि यह वह मामला है, जहां याचिकाकर्ता ने कोई विशेष अनुमति याचिका दाखिल करने से इनकार किया और दावा किया कि उसे अपना प्रतिनिधित्व करने वाले वकीलों के बारे में जानकारी नहीं है। दूसरी ओर, प्रतिवादियों ने न्यायालय को बताया कि एसएलपी में आरोपित आदेश ने 2002 के नीतीश कटारा हत्याकांड में एकमात्र गवाह के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को समाप्त कर दिया तथा एसएलपी उसके खिलाफ झूठे मामले को जारी रखने के प्रयास में दायर की गई है (याचिकाकर्ता की जानकारी के बिना)।

प्रस्तुत मामले में गम्भीर विश्लेषण के बाद न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की खंडपीठ का मानना ​​था कि प्रतिवादी नंबर 3 और 4, साथ ही उनके सहयोगियों और वकीलों द्वारा हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट को धोखा देने की कोशिश की गई तथा संपूर्ण न्याय वितरण प्रणाली को दांव पर लगाने की कोशिश की गई, जिन्होंने न्यायालयों में दाखिल किए जाने वाले दस्तावेजों को जाली बनाने और याचिकाकर्ता के नाम पर उसकी जानकारी, सहमति या अधिकार के बिना दायर की गई झूठी कार्यवाही को आगे बढ़ाने में उनकी मदद की।

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इस प्रकार, न्यायालय ने CBI को जांच करने और यदि आवश्यक हो तो प्रारंभिक जांच करने के बाद सभी शामिल और जिम्मेदार व्यक्तियों के खिलाफ नियमित मामला दर्ज करने का आदेश दिया।

उल्लेखनीय रूप से, यह भी टिप्पणी की गई कि कानून के शासन द्वारा शासित लोकतांत्रिक देश में नागरिक उम्मीद करते हैं कि गलत काम करने वाले लोग सज़ा से डरेंगे:

“गलत काम करने वालों को कानून का डर होना चाहिए कि उन्हें सज़ा मिलेगी, निर्दोष लोगों को आश्वस्त होना चाहिए कि उन्हें सज़ा नहीं मिलेगी, और पीड़ितों को भरोसा होना चाहिए कि उन्हें न्याय मिलेगा। यह वही है जो भारत जैसे लोकतांत्रिक देश का नागरिक, जो कानून के शासन द्वारा शासित है, न्यायालयों से वैध रूप से उम्मीद करेगा। न्यायालयों को ‘न्याय का मंदिर’ कहा जाता है।”

वाद शीर्षक – भगवान सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य |
वाद संख्या – विशेष अनुमति याचिका (आपराधिक) डायरी नंबर 18885/2024

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