संविधान की प्रस्तावना Preamble of Constitution से ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘समाजवादी’ शब्द हटाने वाली याचिका को आज सर्वोच्च न्यायालय Supreme Court ने खारिज कर दिया।
भारत के मुख्य न्यायाधीश CJI संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति पीवी संजय कुमार की पीठ ने कहा कि संविधान में संशोधन करने की संसद की शक्ति प्रस्तावना तक भी फैली हुई है।
मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने याचिकाओं पर सुनवाई की। सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि भारतीय अर्थ में समाजवादी होने का अर्थ केवल कल्याणकारी राज्य से है।
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को दिए अपने ऐतिहासिक निर्णय में उस जनहित याचिका को खारिज कर दिया जिसमें संविधान की प्रस्तावना से धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी शब्द हटाने की मांग की गई थी। सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि भारतीय अर्थ में समाजवादी होने का अर्थ केवल कल्याणकारी राज्य से है।
सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार को भारत के संविधान की प्रस्तावना से ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘समाजवादी’ शब्दों को हटाने की मांग वाली कम से कम तीन याचिकाओं को खारिज कर दिया।
याचिकाकर्ताओं ने साल 1976 की संसद की वैधता पर भी सवाल उठाया था। ये शब्द 1976 में 42वें संशोधन के माध्यम से प्रस्तावना में डाले गए थे, जब राष्ट्रीय आपातकाल EMERGENCY लागू था।
न्यायालय ने कहा, “रिट याचिकाओं पर आगे विचार-विमर्श और निर्णय की आवश्यकता नहीं है। संविधान पर संसद की संशोधन शक्ति प्रस्तावना तक फैली हुई है। हमने स्पष्ट किया है कि इतने वर्षों के बाद इस प्रक्रिया को इस तरह से निरस्त नहीं किया जा सकता। अपनाने की तिथि अनुच्छेद 368 के तहत सरकार की शक्ति को कम नहीं करेगी, जिसे चुनौती नहीं दी गई है।”
पीठ ने यह भी कहा कि उसने इस बात पर भी ध्यान दिया है कि भारतीय संदर्भ में समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता का क्या अर्थ होगा और सरकार द्वारा इस पर नीति कैसे बनाई जानी चाहिए।
न्यायालय ने कहा, “इसके बाद हमने कहा है कि समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता क्या है और यह सरकार के लिए कैसे खुला है, इस पर नीति का पालन कैसे किया जाना चाहिए।”
सर्वोच्च न्यायालय भारत के संविधान में 42वें संशोधन को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था, जिसके तहत भारत के संविधान की प्रस्तावना में “समाजवादी” और “धर्मनिरपेक्ष” शब्द जोड़े गए थे।
22 नवंबर को, सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा था की आज इस मामले में अपना आदेश सुनाएगा।
उस समय, इसने याचिकाकर्ताओं को याद दिलाया था कि धर्मनिरपेक्षता संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है और 42वें संशोधन की जांच सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पहले भी की जा चुकी है और उसे बरकरार रखा गया है।
ये याचिकाएं पूर्व राज्यसभा सांसद (MP) और भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी, अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय और बलराम सिंह द्वारा दायर की गई थीं।
उच्चतम न्यायालय ने पिछले महीने टिप्पणी की थी कि धर्मनिरपेक्षता को संविधान की मुख्य विशेषता माना गया है और भारतीय संविधान की प्रस्तावना में “समाजवादी” और “धर्मनिरपेक्ष” शब्दों को पश्चिमी दृष्टिकोण से देखने की आवश्यकता नहीं है।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) के नेता और राज्यसभा सदस्य बिनॉय विश्वम ने अधिवक्ता श्रीराम परक्कट के माध्यम से दायर याचिका में इन याचिकाओं का विरोध किया है।