न्यायिक अधिकारियों के आवासों पर कार्य करने के आरोपों को लेकर दाखिल याचिका इलाहाबाद हाई कोर्ट ने की खारिज

न्यायिक अधिकारियों के आवासों पर कार्य करने के आरोपों को लेकर दाखिल याचिका इलाहाबाद हाई कोर्ट ने की खारिज

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने हाल ही में अंजुमन हिमायत चपरासी संघ, उत्तर प्रदेश (न्याय विभाग) द्वारा दायर उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें आरोप लगाया गया था कि न्यायिक अधिकारियों के आवासों पर सिविल कोर्ट के चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों से घरेलू सेवकों के रूप में कार्य कराया जा रहा है

याचिका में क्या कहा गया था?

संघ ने हाई कोर्ट में दायर रिट याचिका में यह निर्देश देने की मांग की थी कि न्यायिक अधिकारी, सिविल कोर्ट के चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों से केवल कार्यालय समय के भीतर ही कार्य लें और उन्हें निजी कार्यों के लिए घरेलू सेवकों की तरह न लगाएं

हाई कोर्ट की टिप्पणी

न्यायमूर्ति आलोक माथुर की एकलपीठ ने इस याचिका को खारिज करते हुए कहा,
“संघ के उपनियमों (बायलॉज़) का अवलोकन करने पर स्पष्ट होता है कि इसका उद्देश्य सेवा शर्तों को बेहतर बनाना हो सकता है, लेकिन इसमें अपने सदस्यों की ओर से कानूनी कार्रवाई करने का कोई प्रावधान नहीं है।”

वकीलों की दलीलें

याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अनिल कुमार पांडेय ने पैरवी की, जबकि राज्य सरकार की ओर से मुख्य स्थायी अधिवक्ता (सीएससी) गौरव मेहरोत्रा ने जवाब दाखिल किया।

मामले की पृष्ठभूमि

  • याचिकाकर्ता अंजुमन हिमायत चपरासी संघ उत्तर प्रदेश के सिविल कोर्ट में कार्यरत चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों का प्रतिनिधित्व करता है
  • इसका उद्देश्य अपने सदस्यों की सेवा शर्तों से जुड़े मुद्दों को उठाना है
  • संघ का दावा था कि इसके सदस्य, जो जिला न्यायालयों में कार्यरत हैं, उन्हें जबरन न्यायिक अधिकारियों के आवासों पर कार्य करने के लिए बाध्य किया जा रहा है
  • उत्तर प्रदेश जिला न्यायालय सेवा नियम, 2013 के तहत इन कर्मचारियों की सेवा शर्तें और वेतन निर्धारित किए गए हैं।
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न्यायालय की मुख्य दलीलें

  • हाई कोर्ट के वकील ने याचिका की स्वीकार्यता (Maintainability) पर प्रारंभिक आपत्ति उठाते हुए कहा कि संघ के सदस्य व्यक्तिगत रूप से अपनी शिकायत दर्ज करा सकते हैं
  • न्यायालय ने पाया कि संघ के उपनियमों में यह प्रावधान नहीं था कि वह अपने सदस्यों की ओर से कानूनी कार्यवाही कर सकता है
  • कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि किसी कर्मचारी को वाकई न्यायिक अधिकारियों के आवासों पर काम करने के लिए बाध्य किया जा रहा है, तो वह व्यक्तिगत रूप से सक्षम न्यायालय में शिकायत कर सकता है

क्या कर्मचारियों से जबरन श्रम कराया जा रहा था?

  • अदालत ने यह भी संज्ञान लिया कि न्यायिक कार्य केवल अदालतों तक ही सीमित नहीं होते, बल्कि कई बार न्यायाधीश अपने आवास पर भी फाइलों की समीक्षा और निर्णय लिखने का कार्य करते हैं
  • उत्तरदाता (Respondent) की ओर से दलील दी गई कि चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी फाइलों को अदालत से आवास तक लाने-ले जाने और न्यायिक कार्य में सहायता करने का कार्य करते हैं, जिसे “बाध्य श्रम” (Forced Labour) नहीं कहा जा सकता

कोर्ट का अंतिम आदेश

सभी तथ्यों, दलीलों और कानूनी बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इस याचिका को खारिज कर दिया

वाद शीर्षक – अंजुमन हिमायत चपरासी संघ यूपी बनाम राज्य सरकार (उत्तर प्रदेश विधि विभाग)

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