सुप्रीम कोर्ट ने भ्रामक विज्ञापनों पर कड़ी चेतावनी दी, राज्यों को नियम 170 के अनुपालन का निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने भ्रामक विज्ञापनों पर कड़ी चेतावनी दी, राज्यों को नियम 170 के अनुपालन का निर्देश

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने आज इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) की उस याचिका पर सुनवाई की, जिसमें एलोपैथिक चिकित्सा को निशाना बनाकर किए जा रहे भ्रामक विज्ञापनों और दावों पर रोक लगाने की मांग की गई थी। न्यायालय ने इस मुद्दे पर ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स रूल्स, 1945 के नियम 170 के कड़े अनुपालन पर जोर दिया।

न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भूइयां की पीठ ने झारखंड, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, पुडुचेरी और पंजाब में नियम 170 के अनुपालन की समीक्षा की।

झारखंड पर कोर्ट का कड़ा रुख

सुनवाई के दौरान, न्यायालय ने झारखंड सरकार के उस दावे को अस्वीकार कर दिया कि राज्य में किसी भी निर्माता ने नियम 170 के तहत अनुमति के लिए आवेदन नहीं किया है। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि राज्य सरकार की यह जिम्मेदारी है कि वह यह सुनिश्चित करे कि नियम 170(2) का उल्लंघन करने वाले किसी भी विज्ञापन का प्रकाशन न हो। अदालत ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह इस संबंध में एक शपथ पत्र दायर करे।

“यह राज्य का कर्तव्य है कि वह यह सुनिश्चित करे कि किसी भी विज्ञापन का प्रकाशन निर्धारित प्रक्रिया का पालन किए बिना न हो। राज्य इस संबंध में हलफनामा दाखिल करे,” न्यायालय ने कहा।

कर्नाटक सरकार को फटकार

कर्नाटक को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने 25 मामलों में भ्रामक विज्ञापनों के खिलाफ कार्रवाई न करने पर कड़ी नाराजगी जताई। राज्य सरकार ने दावा किया था कि अभियोजन की प्रक्रिया “पर्याप्त जानकारी की कमी” के कारण आगे नहीं बढ़ सकी। इस पर कोर्ट ने टिप्पणी की कि यह केवल “बहाना” है और राज्य के पास अपनी पुलिस व्यवस्था है, जिसका उपयोग कर वह ऐसे विज्ञापनों के स्रोतों की पहचान कर सकता है।

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“कर्नाटक सरकार ने कहा कि 25 मामलों में अभियोजन इसलिए नहीं हुआ क्योंकि पूरी जानकारी उपलब्ध नहीं थी। हमारे अनुसार, यह केवल बहानेबाजी है। राज्य के पास अपनी पुलिस व्यवस्था है,” अदालत ने कहा।

न्यायालय ने कर्नाटक सरकार को निर्देश दिया कि वह पुलिस तंत्र का उपयोग कर भ्रामक विज्ञापनों के स्रोतों की पहचान करे और अनुपालन रिपोर्ट प्रस्तुत करे

अन्य राज्यों की समीक्षा

कोर्ट ने केरल और पंजाब की अनुपालन स्थिति की भी समीक्षा की। केरल द्वारा प्रस्तुत शपथ पत्र को सबसे विस्तृत और ठोस बताया गया, जिसमें महत्वपूर्ण सुझाव भी शामिल थे।

इस बीच, आंध्र प्रदेश सरकार के वकील ने चीफ सेक्रेटरी को भेजे गए निर्देश को हटाने का अनुरोध किया, लेकिन न्यायालय ने इसे खारिज कर दिया। कोर्ट ने राज्य सरकार की ओर से हलफनामा न दायर करने को “अवैधानिकता” करार दिया और अनुपालन सुनिश्चित करने का आदेश दिया।

भ्रामक विज्ञापनों पर राज्यों को चेतावनी

सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि राज्य सरकारों को नियम 170 को सख्ती से लागू करना होगा और उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करनी होगी। न्यायालय ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि यदि सरकारें गैर-जिम्मेदाराना रवैया अपनाती हैं, तो अदालत कठोर कदम उठाने से पीछे नहीं हटेगी

पिछली सुनवाई: फरवरी 10, 2025

10 फरवरी को, सुप्रीम कोर्ट ने कई राज्यों को फटकार लगाई थी, जिन्होंने भ्रामक विज्ञापनों के खिलाफ कोर्ट के आदेशों का पालन नहीं किया था। आंध्र प्रदेश, दिल्ली और जम्मू-कश्मीर के मुख्य सचिवों को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से 7 मार्च को पेश होने का निर्देश दिया गया था।

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IMA के अध्यक्ष पर अवमानना कार्यवाही का निष्कर्ष

IMA के अध्यक्ष डॉ. आर. वी. असोकन के खिलाफ चल रही अवमानना कार्यवाही को भी अदालत ने समाप्त कर दिया। यह कार्यवाही उनके एक प्रेस साक्षात्कार में दिए गए सुप्रीम कोर्ट विरोधी बयान के कारण शुरू हुई थी, जब IMA ने पतंजलि आयुर्वेद के भ्रामक विज्ञापनों के खिलाफ याचिका दायर की थी।

हालांकि, कोर्ट ने बाबा रामदेव और पतंजलि के एमडी आचार्य बालकृष्ण को पहले ही निर्विवाद क्षमा याचना के आधार पर अवमानना कार्यवाही से मुक्त कर दिया था।

सरकार को विज्ञापन पारदर्शिता सुनिश्चित करने का निर्देश

इसके अलावा, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर जानकारी दी कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत सभी विज्ञापन एजेंसियों और विज्ञापनदाताओं को किसी भी विज्ञापन के प्रकाशन या प्रसारण से पहले “स्व-घोषणा प्रमाणपत्र” (Self-Declaration Certificate) जमा करना अनिवार्य होगा। इस प्रक्रिया को आसान बनाने के लिए सरकार ने “ब्रॉडकास्ट सेवा पोर्टल” और “प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया पोर्टल” पर नए फीचर जोड़े हैं, जो 4 जून, 2024 से प्रभावी हुए।

निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर यह स्पष्ट कर दिया है कि नियम 170 का अनुपालन सुनिश्चित करना राज्यों की अनिवार्य जिम्मेदारी है। न्यायालय ने राज्यों को सख्त निर्देश दिए हैं कि वे भ्रामक चिकित्सा विज्ञापनों को रोकने के लिए आवश्यक कदम उठाएं और अनुपालन रिपोर्ट प्रस्तुत करें। कोर्ट ने चेतावनी दी कि यदि राज्यों ने इस मामले में लापरवाही बरती, तो उन्हें गंभीर परिणाम भुगतने होंगे।

वाद शीर्षक – इंडियन मेडिकल एसोसिएशन बनाम भारत सरकार

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