सुप्रीम कोर्ट का फैसला: अभियोजन की विफलता को पूरा करने के लिए भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 106 लागू नहीं की जा सकती

सुप्रीम कोर्ट का फैसला: अभियोजन की विफलता को पूरा करने के लिए भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 106 लागू नहीं की जा सकती
  • सर्वोच्च अदालत ने एक मर्डर केस में बच्चे की गवाही के आधार पर पिता की दोषी ठहराया है।
  • इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि गवाही देने को लेकर किसी मिनिमम एज की क्राइटेरिया नहीं है।
  • इस मामले के सुनवाई के दौरान बच्चों की गवाही को मान्य करने के लिए कुछ दिशानिर्देश निर्धारित किए हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने हालिया निर्णय में स्पष्ट किया कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (IEA) की धारा 106 का उपयोग अभियोजन पक्ष की ओर से उन परिस्थितिजन्य साक्ष्यों की कमी को पूरा करने के लिए नहीं किया जा सकता, जो अभियुक्त के दोष को सिद्ध करने के लिए आवश्यक हैं।

यह निर्णय मध्य प्रदेश राज्य बनाम बलवीर सिंह नामक आपराधिक अपील में सुनाया गया, जिसमें उच्च न्यायालय द्वारा अभियुक्त को भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 302, 201 एवं 34 के तहत दोषमुक्त कर दिया गया था।

न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की दो-न्यायाधीशीय पीठ ने अपने फैसले में कहा,
“धारा 106 का उपयोग अभियोजन पक्ष की विफलता को पूरा करने के लिए नहीं किया जा सकता। जब तक अभियोजन पक्ष अपराध को सिद्ध करने के लिए आवश्यक सभी तत्वों को साबित नहीं करता, तब तक इस धारा के आधार पर किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। अभियोजन की यह जिम्मेदारी बनी रहती है कि वह यह साबित करे कि अपराध हुआ है, भले ही यह मामला अभियुक्त के विशेष ज्ञान के अंतर्गत आता हो। अभियुक्त पर यह बोझ नहीं डाला जा सकता कि वह यह सिद्ध करे कि कोई अपराध हुआ ही नहीं।”

पीठ की महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ

  • यदि अभियोजन पक्ष दोषसिद्धि के लिए आवश्यक सभी परिस्थितिजन्य साक्ष्य प्रस्तुत करने में असमर्थ रहता है, तो अभियुक्त से कोई स्पष्टीकरण मांगना अनुचित होगा।
  • अभियोजन का उचित दायित्व पूरा हुए बिना, अभियुक्त से यह अपेक्षा करना कि वह अपनी निर्दोषता साबित करे, न्यायसंगत नहीं होगा।
  • जब तक अभियोजन पक्ष अपने दायित्व को पूरा नहीं करता, तब तक अभियुक्त पर दोषारोपण नहीं किया जा सकता।
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मामले की पृष्ठभूमि

इस मामले में अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया था कि साल 2003 में एक व्यक्ति ने अपनी पत्नी की हत्या कर दी। अभियोजन का मामला मुख्य रूप से पीड़िता की नाबालिग बेटी की गवाही पर आधारित था, जिसने इस अपराध को होते देखा था।

निचली अदालत ने आरोपी को IPC की धारा 302, 201 और 34 के तहत दोषी ठहराया और उसे सजा सुनाई। लेकिन मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने इस फैसले को पलटते हुए आरोपी को बरी कर दिया, जिसके खिलाफ राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की।

सुप्रीम कोर्ट का न्यायिक विश्लेषण

सुप्रीम कोर्ट ने तथ्यों एवं परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए कहा,
“धारा 106 उन मामलों में लागू होती है जहां अभियोजन पक्ष प्रस्तुत साक्ष्यों के आधार पर अभियुक्त के दोष की ओर इंगित करने वाले तथ्यों को स्थापित करने में सफल हो चुका हो। यदि अभियुक्त ऐसे मामलों में कोई स्पष्टीकरण नहीं देता या गलत एवं अस्वीकार्य स्पष्टीकरण प्रस्तुत करता है, तो यह स्वयं एक ऐसा कारक बन सकता है, जो उसके खिलाफ जाए।”

पीठ ने आगे कहा कि,
“अभियोजन पक्ष के लिए यह अत्यंत कठिन हो जाता है कि वह अपराधों को सीधे तौर पर साबित कर सके, विशेषकर जब अपराध घर के भीतर गोपनीयता से किए गए हों। ऐसे मामलों में, जहां पति वैवाहिक विवादों के कारण या चरित्र पर संदेह करते हुए पत्नी की हत्या कर देते हैं, अभियोजन के लिए प्रत्यक्ष साक्ष्य प्रस्तुत कर पाना बेहद चुनौतीपूर्ण हो जाता है। परिवार के सदस्य, भले ही वे अपराध के साक्षी हों, अक्सर आरोपी के खिलाफ गवाही देने से बचते हैं।”

अदालत ने कहा कि यदि अपराध घर की चारदीवारी में होता है और अभियुक्त को अपराध की योजना बनाने एवं उसे अंजाम देने का पूरा अवसर प्राप्त था, तो अभियोजन के लिए सीधा साक्ष्य उपलब्ध कराना कठिन हो जाता है। ऐसे मामलों में धारा 106 साक्ष्य अधिनियम में इसलिए शामिल की गई है ताकि अभियुक्त से उचित स्पष्टीकरण मांगा जा सके।

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अंतिम निर्णय

सुप्रीम कोर्ट ने यह स्वीकार किया कि उपलब्ध परिस्थितिजन्य साक्ष्य अभियुक्त के विरुद्ध एक ठोस मामला बनाते हैं। अतः अभियोजन को धारा 106 के तहत अभियुक्त से स्पष्टीकरण मांगने का अधिकार था

इस आधार पर, सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार की अपील को स्वीकार किया, उच्च न्यायालय के फैसले को रद्द कर दिया, और अभियुक्त को दोषी ठहराते हुए उसे सजा सुनाई।

वाद शीर्षक –  मध्य प्रदेश राज्य बनाम बलवीर सिंह

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