एमआरटीपी अधिनियम आरक्षण की समाप्ति: सुप्रीम कोर्ट ने समयसीमा और भूस्वामी अधिकारों को बरकरार रखा

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सरकारी निकायों की दीर्घकालिक निष्क्रियता के कारण आरक्षण स्वतः समाप्त हो जाता है और भूमि मालिक को संपत्ति विकसित करने या उपयोग करने का अधिकार – सर्वोच्च न्यायालय 

“सुप्रीम कोर्ट का निर्णय: महाराष्ट्र क्षेत्रीय एवं नगर नियोजन अधिनियम के तहत आरक्षित भूमि पर अधिकारों की स्पष्टता”

सर्वोच्च न्यायालय ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि यह मामला महाराष्ट्र क्षेत्रीय और नगर नियोजन अधिनियम, 1966 (MRTP अधिनियम) के तहत सार्वजनिक उपयोग के लिए संपत्ति के आरक्षण से संबंधित प्रावधानों पर केंद्रित था। अपीलकर्ता, निर्मिति डेवलपर्स, ने एक ऐसी भूमि खरीदी जो मूल रूप से डेवलपमेंट प्लान में एक निजी स्कूल के लिए आरक्षित थी। हालाँकि, आरक्षण के कई दशक बीतने के बावजूद, सरकारी निकायों ने अधिग्रहण प्रक्रिया पूरी नहीं की। जब निर्मिति डेवलपर्स ने MRTP अधिनियम के तहत आरक्षण समाप्त होने की घोषणा की मांग की, तो उच्च न्यायालय ने राहत देने से इनकार कर दिया। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने इस फैसले को पलट दिया, यह स्पष्ट करते हुए कि सरकारी निकायों की दीर्घकालिक निष्क्रियता के कारण आरक्षण स्वतः समाप्त हो जाता है और भूमि मालिक को संपत्ति विकसित करने या उपयोग करने का अधिकार है।

विवाद के मुख्य बिंदु

इस मामले में MRTP अधिनियम की धारा 49, 126, और 127 की व्याख्या महत्वपूर्ण थी, जो भूमि अधिग्रहण की समय-सीमा निर्धारित करती हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने इन प्रावधानों के आपसी संबंधों की गहराई से समीक्षा की और स्पष्ट किया कि यदि सरकारी प्राधिकरण निर्धारित समय-सीमा के भीतर कोई कार्रवाई नहीं करते हैं, तो आरक्षण स्वतः समाप्त मान लिया जाएगा। यह निर्णय भूमि स्वामियों के अधिकारों की रक्षा करने और अनिश्चितकालीन प्रतिबंधों को रोकने के न्यायालय के संकल्प को दर्शाता है।

न्यायालय का निर्णय (संक्षेप में)

न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की खंडपीठ ने कहा कि यदि सरकारी निकाय निर्धारित समय-सीमा में भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया पूरी नहीं कर पाते हैं, तो वह भूमि विकास योजना में आरक्षित नहीं रह सकती। अदालत ने निम्नलिखित प्रमुख बिंदुओं को रेखांकित किया:

  1. 30 वर्षों से अधिक समय तक भूमि निजी स्कूल के लिए आरक्षित थी, लेकिन सरकार द्वारा इसका अधिग्रहण करने के लिए कोई सार्थक कदम नहीं उठाया गया।
  2. मूल भूमि मालिकों ने MRTP अधिनियम की धारा 49 के तहत ‘परचेज नोटिस’ जारी किया, लेकिन इसके बावजूद प्राधिकरणों ने अधिग्रहण की प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ाई।
  3. उच्च न्यायालय ने यह माना कि नया खरीदार (निर्मिति डेवलपर्स) धारा 49 के परचेज नोटिस का लाभ नहीं ले सकता, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने इस विचार से असहमति व्यक्त की और कहा कि यदि समय पर अधिग्रहण नहीं किया गया, तो आरक्षण स्वतः समाप्त हो जाएगा।
  4. सर्वोच्च न्यायालय ने धारा 49(7) और 127 के साथ-साथ संविधान के अनुच्छेद 142 का उपयोग करते हुए आरक्षण को समाप्त घोषित किया
  5. अंततः, सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय के आदेश को रद्द कर दिया और निष्क्रियता के कारण भूमि आरक्षण को समाप्त घोषित कर दिया
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न्यायिक दृष्टांत (Precedents)

सर्वोच्च न्यायालय ने MRTP अधिनियम की धारा 49, 126, और 127 की व्याख्या करने वाले कई पूर्व मामलों को संदर्भित किया, जिनमें प्रमुख हैं:

  • Chhabildas बनाम महाराष्ट्र राज्य (2018 INSC 106): धारा 49 के तहत, परचेज नोटिस की पुष्टि होने के बाद एक वर्ष के भीतर अधिग्रहण शुरू करना अनिवार्य होता है।
  • Girnar Traders बनाम महाराष्ट्र राज्य (2007) 7 SCC 555: यह स्पष्ट किया कि सरकार द्वारा केवल “प्रारंभिक कदम” उठाना पर्याप्त नहीं है, बल्कि अधिग्रहण की दिशा में वास्तविक प्रगति होनी चाहिए
  • Shrirampur Municipal Council बनाम सत्यभामा बाई भीमाजी (2013) 5 SCC 627: इस फैसले ने यह स्थापित किया कि “कोई कदम नहीं उठाया गया” जैसी भाषा की व्याख्या सख्ती से की जानी चाहिए ताकि भूमि स्वामी अनिश्चित काल तक अटके न रहें।
  • Hasmukhrai V. Mehta बनाम महाराष्ट्र राज्य (2015) 3 SCC 154: 20 वर्षों से अधिक लंबित भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया के कारण आरक्षण को स्वतः समाप्त घोषित किया गया
  • Bhavnagar University बनाम Palitana Sugar Mills (AIR 2003 SC 511): यदि निश्चित समय-सीमा में अधिग्रहण नहीं किया जाता, तो कानून के तहत आरक्षण स्वतः समाप्त हो जाता है
  • Chairman, Indore Vikas Pradhikaran बनाम Pure Industrial Coke and Chemicals Ltd. (2007) 8 SCC 705: भूमि स्वामित्व को मानवाधिकार के रूप में मान्यता दी और कहा कि स्वामियों को उनकी संपत्ति से अनिश्चितकाल तक वंचित रखना अनुचित है

न्यायालय का कानूनी तर्क

सर्वोच्च न्यायालय ने MRTP अधिनियम की निम्नलिखित धाराओं का गहराई से विश्लेषण किया:

  1. धारा 49: यदि सरकारी प्राधिकरण परचेज नोटिस की पुष्टि कर देते हैं, तो एक वर्ष के भीतर भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया पूरी करनी होगी। ऐसा न होने पर, आरक्षण स्वतः समाप्त हो जाता है
  2. धारा 126: इस धारा में सरकारी प्राधिकरणों के लिए भूमि अधिग्रहण के विभिन्न विकल्पों को निर्दिष्ट किया गया है, लेकिन इन प्रक्रियाओं को निर्धारित समय-सीमा के भीतर पूरा करना आवश्यक है
  3. धारा 127: यदि 10 वर्षों तक भूमि का अधिग्रहण नहीं किया गया है, तो स्वामी परचेज नोटिस जारी कर सकता है। यदि एक वर्ष के भीतर अधिग्रहण नहीं किया जाता, तो आरक्षण समाप्त माना जाएगा
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भविष्य में प्रभाव

इस निर्णय के दूरगामी प्रभाव होंगे:

  1. भूमि अधिग्रहण की समय-सीमा स्पष्ट हुई – सरकारी निकाय अब अनिश्चितकाल तक भूमि आरक्षित नहीं रख सकते
  2. भूमि स्वामियों के अधिकारों की रक्षा हुई – अब वे अपनी संपत्ति का उपयोग या विकास करने में सक्षम होंगे
  3. योजना प्राधिकरणों की जवाबदेही बढ़ी – उन्हें या तो भूमि का अधिग्रहण शीघ्रता से करना होगा या उसे मुक्त करना होगा
  4. न्यायालयों को मार्गदर्शन मिलाउच्च न्यायालयों और अन्य अदालतों को अब इस निर्णय के अनुसार मामलों की समीक्षा करनी होगी

परिस्थितियों को सरल रूप में समझना

  • आरक्षण: जब कोई भूमि सार्वजनिक उपयोग के लिए डेवलपमेंट प्लान में आरक्षित होती है, तो स्वामी उस पर स्वतंत्र रूप से निर्माण नहीं कर सकता।
  • परचेज नोटिस (धारा 49 और 127): यह एक औपचारिक नोटिस होता है जिसे भूमि स्वामी सरकार को भेजता है, यह दर्शाने के लिए कि या तो भूमि का अधिग्रहण करें या आरक्षण समाप्त करें।
  • आरक्षण समाप्ति: यदि सरकार निर्धारित समय-सीमा में भूमि का अधिग्रहण नहीं करती, तो आरक्षण समाप्त हो जाता है
  • अनुच्छेद 142: सर्वोच्च न्यायालय को विशेष शक्तियाँ प्रदान करता है कि वह “पूर्ण न्याय” करने के लिए आवश्यक आदेश जारी कर सकता है

निष्कर्ष

सर्वोच्च न्यायालय ने Nirmiti Developers बनाम महाराष्ट्र राज्य मामले में यह स्पष्ट कर दिया कि बिना समय पर अधिग्रहण किए भूमि को अनिश्चितकाल तक आरक्षित नहीं रखा जा सकता। यदि सरकारी प्राधिकरण समय-सीमा के भीतर कार्रवाई नहीं करते हैं, तो आरक्षण स्वतः समाप्त हो जाता है। इस निर्णय से नगर नियोजन निकायों की जवाबदेही बढ़ेगी और भूमि स्वामियों के अधिकारों को मज़बूती मिलेगी

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यह फैसला भारत में शहरी और क्षेत्रीय योजना प्रणाली में जवाबदेही और निष्पक्षता को बढ़ावा देगा।

वाद शीर्षक – निर्मिति डेवलपर्स अपने साझेदारों और अन्य के माध्यम से। बनाम महाराष्ट्र राज्य एवं अन्य

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