“हास्य एक ऐसा माध्यम है, जिसका आनंद पूरा परिवार ले सकता है। ऐसे कंटेंट का निर्माण नहीं होना चाहिए, जिससे किसी को शर्मिंदगी महसूस हो। गंदी भाषा का उपयोग करना कोई विशेष प्रतिभा नहीं है।” – सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को रणवीर इलाहाबादिया को बड़ी राहत देते हुए गिरफ्तारी से अंतरिम संरक्षण की अवधि बढ़ा दी। इससे पहले, शीर्ष अदालत ने रणवीर के खिलाफ कड़ी टिप्पणियां की थीं, लेकिन बाद में उनकी गिरफ्तारी पर रोक लगाते हुए अंतरिम जमानत प्रदान की थी।
रणवीर ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर अपने शो के प्रसारण पर लगे प्रतिबंध को हटाने की मांग की थी। उनके वकील, अभिनव चंद्रचूड़ ने तर्क दिया कि इस प्रतिबंध के कारण न केवल रणवीर की आजीविका प्रभावित हो रही है, बल्कि उनके 280 कर्मचारियों की रोजी-रोटी पर भी संकट खड़ा हो गया है।
क्या थी रणवीर इलाहाबादिया की याचिका?
इस मामले में सॉलिसिटर जनरल (SG) तुषार मेहता ने अदालत में अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि उन्होंने जिज्ञासावश शो देखा। उन्होंने स्पष्ट किया कि शो अश्लील तो नहीं है, लेकिन यह सामाजिक पवित्रता के स्तर से परे जाता है।
उन्होंने कहा कि “हंसी-मजाक और अश्लीलता में फर्क होता है, और पवित्रता उससे भी एक कदम आगे जाती है”। यह मामला डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर कंटेंट के मानकों से संबंधित है, जिसमें यह तय करना जरूरी हो जाता है कि मनोरंजन की सीमाएं कहां समाप्त होती हैं।
समय रैना की टिप्पणियों पर सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में कनाडा में चल रही कानूनी कार्यवाही को लेकर समय रैना की टिप्पणियों को गलत ठहराया और उनकी निंदा की। जस्टिस सूर्य कांत ने अप्रत्यक्ष रूप से समय रैना पर टिप्पणी करते हुए कहा, “ये युवा बहुत होशियार हैं। उनमें से एक कनाडा गया और उसने जो कहा, हमें सब पता है।”
सॉलिसिटर जनरल ने इस पर कहा कि समय रैना ने पूरी कानूनी प्रक्रिया का मजाक उड़ाया है। सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि यदि याचिकाकर्ता जिम्मेदार व्यवहार नहीं करते हैं, तो अदालत के पास उपयुक्त कार्रवाई करने के विकल्प उपलब्ध हैं।
रणवीर इलाहाबादिया पर सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि “हास्य एक ऐसा माध्यम है, जिसका आनंद पूरा परिवार ले सकता है। ऐसे कंटेंट का निर्माण नहीं होना चाहिए, जिससे किसी को शर्मिंदगी महसूस हो। गंदी भाषा का उपयोग करना कोई विशेष प्रतिभा नहीं है।”
इस पर सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक बहुमूल्य अधिकार है और इसे संरक्षित किया जाना चाहिए, लेकिन अश्लीलता को समाज में फैलने से रोकना भी जरूरी है।
हर समाज के नैतिक मानकों में भिन्नता
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि समाजों के नैतिक मानकों में भिन्नता हो सकती है, लेकिन संविधान द्वारा दिए गए अधिकार कुछ शर्तों के अधीन होते हैं।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि “भारत में नैतिकता की परिभाषा अन्य देशों से अलग हो सकती है, इसलिए इस विषय पर स्पष्ट दिशानिर्देश बनाए जाने की जरूरत है।”
शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि “ऐसे कार्यक्रमों के प्रसारण को लेकर कुछ नियामक उपायों की आवश्यकता हो सकती है, ताकि यह तय किया जा सके कि वे हमारे समाज के ज्ञात नैतिक मानकों के अनुरूप हैं।”
रणवीर को शर्तों के साथ राहत, शो फिर से शुरू करने की अनुमति
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि वह इस मुद्दे पर अपने सुझाव प्रस्तुत करे, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि डिजिटल कंटेंट अनुच्छेद 19 में उल्लिखित मौलिक अधिकारों के दायरे में रहे।
अदालत ने कहा कि इस संबंध में कोई भी नियामक उपाय तैयार किया जाए, तो उसे सार्वजनिक डोमेन में डालकर हितधारकों से सुझाव लिए जाने चाहिए।
रणवीर इलाहाबादिया को राहत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि “याचिकाकर्ता को यह वचन देना होगा कि उनका शो सामाजिक शालीनता और नैतिकता के मानकों को बनाए रखेगा, ताकि इसे किसी भी आयु वर्ग के दर्शक देख सकें।”
इस वचन के आधार पर, सुप्रीम कोर्ट ने रणवीर को अपने शो का प्रसारण फिर से शुरू करने की अनुमति दे दी।
जहां तक रणवीर इलाहाबादिया की विदेश यात्रा की याचिका का सवाल है, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस पर फैसला जांच में उनकी भागीदारी के आधार पर लिया जाएगा।
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