जस्टिस बी. आर. गवई का बाबासाहेब को नमन: “राजनीतिक लोकतंत्र तभी टिकेगा जब सामाजिक लोकतंत्र मजबूत होगा”
नई दिल्ली, डॉ. अंबेडकर अंतर्राष्ट्रीय केंद्र
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठतम न्यायाधीश और भारत के भावी मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बी. आर. गवई ने डॉ. भीमराव अंबेडकर की 135वीं जयंती पर आयोजित पहले डॉ. अंबेडकर स्मृति व्याख्यान में भावुक और ऐतिहासिक संबोधन देते हुए भारत निर्माण में अंबेडकर के योगदान को श्रद्धापूर्वक याद किया।
उन्होंने डॉ. अंबेडकर के उस प्रसिद्ध कथन को उद्धृत किया कि:
“राजनीतिक लोकतंत्र तब तक स्थायी नहीं हो सकता, जब तक वह सामाजिक लोकतंत्र पर आधारित न हो।”
‘भीमस्मृति’ की अवधारणा पर चर्चा:
जस्टिस गवई ने कहा कि कुछ लोगों ने, डॉ. अंबेडकर की पहचान को लेकर, भारत के संविधान को ‘भीमस्मृति’ कहकर संबोधित किया था। लेकिन यह यही भीमस्मृति है, जिसने भारत को सामाजिक न्याय, समानता और स्वतंत्रता के रास्ते पर आगे बढ़ाया है। उन्होंने संविधान सभा के सदस्य के. एम. जेधे के भाषण का हवाला देते हुए बताया कि स्वयं स्पृश्य वर्ग से होते हुए भी जेधे ने डॉ. अंबेडकर के योगदान को ‘भीमस्मृति’ के रूप में सम्मानित किया था।
डॉ. अंबेडकर की दृष्टि और संविधान की जीवंतता:
जस्टिस गवई ने संविधान की 75 वर्ष की यात्रा को “संतोषजनक” बताते हुए कहा कि यह कहना कि प्रगति नहीं हुई, संविधान निर्माताओं और संस्थाओं के प्रयासों के साथ अन्याय होगा। उन्होंने कहा कि डॉ. अंबेडकर ने यह चेतावनी दी थी कि जिस लोकतंत्र को हमने अपनाया है, उसे अतीत की तरह खोने नहीं देना चाहिए।
“भारतीय संविधान समय की कसौटी पर खरा उतरा है और यह राष्ट्र को एकजुट, स्थिर और मजबूत बनाए रखने में सफल रहा है।”
व्यक्तिगत प्रेरणा और सामाजिक प्रगति के उदाहरण:
जस्टिस गवई ने भावुक होकर बताया कि:
“मैं यहां केवल डॉ. अंबेडकर और संविधान की वजह से हूं। मेरे पिता ने बाबासाहेब के साथ मिलकर सामाजिक न्याय की लड़ाई लड़ी थी।”
उन्होंने बताया कि कैसे भारत ने डॉ. अंबेडकर की दृष्टि के चलते सामाजिक बाधाओं को तोड़ा है:
- दो अनुसूचित जाति के राष्ट्रपति: के. आर. नारायणन और रामनाथ कोविंद
- पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति: द्रौपदी मुर्मू
- दलित लोकसभा स्पीकर: जी. एम. सी. बालयोगी और मीरा कुमार
- दलित मुख्य न्यायाधीश: न्यायमूर्ति के. जी. बालकृष्णन
- एक पिछड़े वर्ग से आने वाला व्यक्ति: भारत का प्रधानमंत्री
संविधान की लचीलापन और प्रासंगिकता:
गवई ने यह भी कहा कि संविधान कोई जड़ दस्तावेज नहीं है, बल्कि यह समय के अनुसार जीवंत और लचीला रहा है। उन्होंने पड़ोसी देशों से तुलना करते हुए कहा कि:
“हमारे संविधान ने साबित कर दिया कि अंबेडकर की दूरदृष्टि आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी 75 साल पहले थी।”
Leave a Reply