छत्तीसगढ़ शराब घोटाला मामला: सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस ओका और वरिष्ठ अधिवक्ता महेश जेठमलानी के बीच तीखी नोकझोंक, पीठ ने सुनवाई से खुद को अलग किया

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छत्तीसगढ़ शराब घोटाला मामला: सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस ओका और वरिष्ठ अधिवक्ता महेश जेठमलानी के बीच तीखी नोकझोंक, पीठ ने सुनवाई से खुद को अलग किया

नई दिल्ली | सुप्रीम कोर्ट में आज छत्तीसगढ़ शराब घोटाले से जुड़े एफआईआर को रद्द करने की मांग वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान उस समय माहौल तनावपूर्ण हो गया जब वरिष्ठ अधिवक्ता महेश जेठमलानी और न्यायमूर्ति अभय एस. ओका के बीच तीखी बहस हो गई। विवाद बढ़ता देख पीठ ने स्वयं को मामले की सुनवाई से अलग कर लिया और राज्य सरकार को मुख्य न्यायाधीश से नई पीठ गठित कराने की छूट दी

यह मामला राज्य के नौकरशाहों, जिनमें अनिल टुटेजा भी शामिल हैं, द्वारा दायर याचिकाओं से जुड़ा है। याचिकाकर्ताओं को प्रवर्तन निदेशालय (ED) की जांच के सिलसिले में गिरफ्तारी से अंतरिम संरक्षण मिला हुआ है। याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट से उनके विरुद्ध दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग की थी। कोर्ट ने पहले कई आदेशों में उनकी जांच में सहयोग करने की बात दर्ज करते हुए उन्हें अंतरिम राहत दी थी।

कोर्ट में क्या हुआ?

सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता महेश जेठमलानी, छत्तीसगढ़ राज्य की ओर से पेश होते हुए, अंतरिम राहत को समाप्त करने की मांग कर रहे थे। पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां शामिल थे, ने पूछा कि जब मुख्य मामला लंबित है, तब अंतरिम राहत को हटाने की इतनी जल्दबाजी क्यों है।

इस पर जेठमलानी ने कहा,

“हमें कस्टोडियल पूछताछ की जरूरत है… यह अदालत का क्षेत्राधिकार नहीं है।”

इस पर न्यायमूर्ति ओका ने कड़ी आपत्ति जताई और सवाल किया,

“क्या हम राहत देने में असमर्थ हैं?”

जब जेठमलानी ने दोहराया कि कोर्ट को ऐसी राहत नहीं देनी चाहिए, तो न्यायमूर्ति ओका ने तल्खी से कहा,

“यह तरीका नहीं है कोर्ट में पेश होने का।”

आरोप-प्रत्यारोप का दौर

जेठमलानी ने आरोप लगाया कि याचिकाकर्ता दो बार पेश नहीं हुए जबकि याचिका सूचीबद्ध थी। इस पर वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरणारायणन और मीना अरुणा, जो याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हो रहे थे, ने इन आरोपों को खारिज कर दिया। उन्होंने उल्टे कहा कि जेठमलानी स्वयं इस मामले में तीन बार स्थगन (adjournment) ले चुके हैं।

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न्यायमूर्ति ओका ने स्पष्ट किया कि अगर राज्य को शिकायत है कि मामला नहीं सुना जा रहा, तो वह मुख्य न्यायाधीश से नई पीठ के लिए आग्रह कर सकते हैं। कोर्ट ने अपने आदेश में यही अनुमति दी।

जब जेठमलानी ने कहा कि इससे देरी होगी और पीठ ही मामला सुने, तो न्यायमूर्ति ओका ने तीखी प्रतिक्रिया में कहा,

“अगर हम इस तरह गिनने लगें कि कौन कितनी बार स्थगन मांगता है, तो अदालत चलाना मुश्किल हो जाएगा।”

न्यायमूर्ति ओका की सख्ती

सुनवाई के अंत में पीठ ने स्पष्ट किया कि वह अब इस मामले की सुनवाई नहीं करेगी और राज्य को मुख्य न्यायाधीश से पुनः सूचीबद्ध कराने की स्वतंत्रता दी जाती है। इस पूरे घटनाक्रम पर वरिष्ठ अधिवक्ता मीना अरोड़ा ने भी नाराजगी जताई और कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि बार-बार पीठ पर आरोप लगाकर माहौल बनाया जा रहा है।

पृष्ठभूमि

इससे पूर्व, सुप्रीम कोर्ट ने अपने 17 फरवरी 2025 के आदेश में कहा था कि याचिकाकर्ता जांच में सहयोग कर रहे हैं और इस स्तर पर अंतरिम राहत हटाने का कोई कारण नहीं बनता। 17 मार्च 2025 के आदेश में कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि जब तक सहयोग जारी रहेगा, तब तक संरक्षण जारी रहेगा।

निष्कर्ष

अब यह मामला मुख्य न्यायाधीश के समक्ष नई पीठ को सौंपे जाने के लिए प्रस्तुत किया जा सकता है।

मामले का शीर्षक: Anil Tuteja & Anr. v. Union of India (SLP(Crl) No.11790/2024)

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