“150 साल बाद लाल किला मांगने आईं हैं? फिर तो आगरा और फतेहपुर सीकरी भी मांगिए” — सुप्रीम कोर्ट ने सुल्ताना बेगम की याचिका को बताया ‘निराधार’
नई दिल्ली | सुप्रीम कोर्ट ने खुद को अंतिम मुगल सम्राट बहादुर शाह ज़फर द्वितीय का उत्तराधिकारी बताने वाली महिला सुल्ताना बेगम की उस याचिका को सख्त टिप्पणी के साथ खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने लाल किले पर अधिकार और कब्जा सौंपे जाने की मांग की थी।
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की गैरमौजूदगी में पीठ की अध्यक्षता कर रहे मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार ने याचिका को “बिल्कुल गलत और कानूनी आधार से रहित” करार दिया।
पीठ की सख्त टिप्पणी:
मुख्य न्यायाधीश ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा:
“अगर हम इस तरह की दलीलों पर विचार करने लगें, तो केवल लाल किला ही क्यों — फिर तो आगरा का किला, फतेहपुर सीकरी और बाकी सभी मुगलकालीन धरोहरें भी याचिकाकर्ता को दे दी जानी चाहिए?”
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
- रिट याचिका को “गलत और निराधार” बताते हुए विचार करने से इनकार किया।
- याचिकाकर्ता के वकील द्वारा याचिका वापस लेने की कोशिश को भी कोर्ट ने खारिज कर दिया।
- कोर्ट ने कहा कि इतिहास के इतने लंबे अंतराल के बाद इस तरह की याचिकाएं न केवल अव्यावहारिक हैं, बल्कि न्यायिक संसाधनों का दुरुपयोग भी हैं।
याचिकाकर्ता का दावा:
सुल्ताना बेगम ने याचिका में कहा था कि:
- वह बहादुर शाह ज़फर के परपोते की विधवा हैं और उन्हें किला वंशानुगत अधिकार के तहत मिला है।
- 1857 की क्रांति के बाद ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने उनका किला अवैध रूप से कब्जा लिया और सम्राट को निर्वासन में भेज दिया।
- अब भारत सरकार लाल किले पर अवैध कब्जा कर रही है।
- याचिका में मांग की गई थी कि केंद्र सरकार किला उन्हें लौटाए या इसके बदले उन्हें पर्याप्त मुआवज़ा दिया जाए।
दिल्ली हाईकोर्ट में पहले ही खारिज हो चुकी थी याचिका:
- 20 दिसंबर 2021 को दिल्ली हाईकोर्ट के एकल न्यायाधीश ने यह याचिका “150 वर्षों से अधिक की अत्यधिक देरी” के आधार पर खारिज कर दी थी।
- फिर 13 दिसंबर 2024 को खंडपीठ ने अपील को खारिज करते हुए कहा कि याचिका में सभी मान्य समय सीमाएं पार कर दी गई हैं।
- बेगम की ओर से स्वास्थ्य और पारिवारिक कठिनाइयों के आधार पर देरी के लिए माफी मांगी गई थी, जिसे कोर्ट ने अपर्याप्त और असंगत बताया।
यह मामला एक बार फिर यह सवाल खड़ा करता है कि ऐतिहासिक संपत्तियों पर पारिवारिक दावों की कानूनी वैधता कितनी दूर तक मानी जा सकती है — खासकर तब जब सदी से भी अधिक समय बीत चुका हो।
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