⚖️ घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत कार्यवाही को समाप्त करने के लिए हाईकोर्ट को CrPC की धारा 482 के तहत अधिकार है: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया है कि दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 482 (बीएनएसएस की धारा 528 के समतुल्य) के तहत हाईकोर्ट्स को यह अधिकार है कि वे घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 की धारा 12(1) के अंतर्गत लंबित कार्यवाहियों को समाप्त कर सकते हैं, बशर्ते मामला स्पष्ट रूप से कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग या घोर अन्याय का उदाहरण हो।
न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के उस आदेश को रद्द कर दिया जिसमें याचिकाकर्ता द्वारा घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत शुरू की गई कार्यवाही को रद्द करने की मांग को खारिज कर दिया गया था।
🏛️ हाईकोर्ट की पूर्व धारणा को अस्वीकार किया
मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने यह कहते हुए याचिका को खारिज कर दिया था कि धारा 12 के अंतर्गत की गई कार्यवाहियां मूलतः सिविल प्रकृति की होती हैं और इसलिए उन्हें CrPC की धारा 482 के तहत समाप्त नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने इस निष्कर्ष को खारिज करते हुए कहा कि यह धारणा विधिसम्मत नहीं है।
कोर्ट ने कहा:
“हम यह स्पष्ट करते हैं कि हाईकोर्ट्स CrPC की धारा 482 (या BNSS की धारा 528) के तहत उन कार्यवाहियों को समाप्त कर सकते हैं जो घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 की धारा 12(1) के आवेदन से उत्पन्न हुई हैं और जो मजिस्ट्रेट के समक्ष लंबित हैं। हालांकि, चूंकि यह एक कल्याणकारी कानून है, अतः हाईकोर्ट्स को इस प्रकार के मामलों में अत्यधिक सतर्कता और संयम बरतना चाहिए।”
🧾 मामले की पृष्ठभूमि
दोनों अपीलें उच्च न्यायालय द्वारा पारित उस आदेश के विरुद्ध थीं जिसमें याचिकाकर्ताओं की धारा 482 के तहत दायर याचिकाएं खारिज कर दी गई थीं। एक अपील में याचिकाकर्ता प्रतिकारिणी का देवर था, जबकि दूसरी अपील में याचिकाकर्ता पति, ससुर और सास थे।
प्रतिकारिणी ने घरेलू हिंसा के आरोपों के तहत धारा 12 के अंतर्गत आवेदन दायर किया था, जिसे रद्द करने के लिए याचिकाकर्ताओं ने CrPC की धारा 482 के तहत याचिका दायर की थी।
📜 सुप्रीम कोर्ट की व्याख्या और निर्देश
कोर्ट ने यह माना कि कई उच्च न्यायालयों ने यह धारणा अपनाई है कि धारा 12 के तहत कार्यवाहियों को धारा 482 के अंतर्गत समाप्त नहीं किया जा सकता क्योंकि ये सिविल प्रकृति की होती हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने इस दृष्टिकोण को विधिसम्मत नहीं माना।
पीठ ने कहा:
“घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 domestic violence act एक विशेष सामाजिक-कल्याणकारी विधि है जिसका उद्देश्य पीड़ित महिलाओं को न्याय प्रदान करना और घरेलू हिंसा की रोकथाम करना है। इसलिए, जब तक कार्यवाही में स्पष्ट रूप से कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग या घोर अन्याय न हो, तब तक हाईकोर्ट को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।”
साथ ही यह भी कहा गया कि CrPC की धारा 482 के दूसरे हिस्से के तहत, यदि मजिस्ट्रेट की अदालत में चल रही कार्यवाही न्याय के हितों के विरुद्ध हो या प्रक्रिया का दुरुपयोग हो, तो हाईकोर्ट उसमें हस्तक्षेप कर सकता है।
इसलिए, कोर्ट ने स्पष्ट किया:
“हाईकोर्ट न केवल धारा 12(1) के आवेदन को, बल्कि DV अधिनियम की धाराओं 18 से 23 के अंतर्गत पारित आदेशों को भी, CrPC की धारा 482 के तहत समाप्त कर सकता है।”
🧑⚖️ अंतिम आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने कहा:
“हम 9 मई, 2024 को मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय, इंदौर द्वारा पारित आदेश को रद्द करते हैं और संबंधित याचिकाओं को पुनः उच्च न्यायालय की सूची में बहाल करते हैं। अब उच्च न्यायालय इन याचिकाओं पर हमारे इस निर्णय के आलोक में नए सिरे से विचार करेगा।”
इस प्रकार, सुप्रीम कोर्ट ने अपील स्वीकार कर ली।
📌 मामला: S बनाम V
📜 तटस्थ उद्धरण: 2025 INSC 734
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