इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रोफेसर नईमा खातून की AMU VC नियुक्ति को बरकरार रखा

इलाहाबाद हाई कोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रोफेसर नईमा खातून की AMU VC नियुक्ति को बरकरार रखा

“पति की भूमिका नियुक्ति को अमान्य करने का आधार नहीं, विजिटर का निर्णय अंतिम”

इलाहाबाद, 17 मई 2025: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) की पहली महिला कुलपति प्रोफेसर नईमा खातून की नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया। याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया था कि प्रोफेसर खातून के पति, प्रोफेसर मोहम्मद गुलरेज़, कार्यवाहक कुलपति के रूप में उन बैठकों की अध्यक्षता कर रहे थे, जहाँ उनके नाम की सिफारिश की गई थी। हालाँकि, जस्टिस अश्विनी कुमार मिश्रा और जस्टिस डोनादी रमेश की खंडपीठ ने कहा कि “विजिटर (राष्ट्रपति) ने स्वतंत्र विवेक का प्रयोग करते हुए उन्हें चुना, और उन पर कोई पक्षपात का आरोप नहीं लगाया गया।”

मामले की पृष्ठभूमि

  • 2 अप्रैल 2023 को प्रोफेसर मंसूर ने कुलपति पद से इस्तीफा दिया।

  • विश्वविद्यालय रजिस्ट्रार ने 4 अप्रैल 2023 को एक आदेश जारी करते हुए प्रोफेसर गुलरेज़ को कार्यवाहक कुलपति नियुक्त किया।

  • इसी दौरान, नई कुलपति की नियुक्ति प्रक्रिया शुरू हुई।

चयन प्रक्रिया का विवरण

  1. कार्यकारी परिषद द्वारा 5 नामों की सिफारिश:

    • 33 आवेदकों में से 20 को वैध माना गया।

    • गुप्त मतदान में प्रोफेसर फैजान मुस्तफा को 9, प्रोफेसर नईमा खातून और कयूम हुसैन को 8-8 वोट मिले।

    • 5 अन्य उम्मीदवारों को 7 वोट मिले, जिसके बाद दूसरे दौर का मतदान हुआ।

  2. विश्वविद्यालय कोर्ट द्वारा 3 नामों का चयन:

    • प्रोफेसर रब्बानी (61 वोट), प्रोफेसर मुस्तफा और प्रोफेसर खातून (50-50 वोट) शीर्ष तीन में रहे।

    • इन तीन नामों को विजिटर (राष्ट्रपति) के पास भेजा गया।

  3. विजिटर का निर्णय:

    • 22 अप्रैल 2024 को राष्ट्रपति ने प्रोफेसर नईमा खातून को कुलपति नियुक्त किया।

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याचिकाकर्ताओं के तर्क

  • प्रोफेसर गुलरेज़ ने कार्यकारी परिषद और विश्वविद्यालय कोर्ट की बैठकों की अध्यक्षता की, जहाँ उनकी पत्नी के नाम की सिफारिश हुई।

  • मतदान प्रक्रिया में अनियमितताओं का आरोप लगाया गया।

कोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष

  1. चयन प्रक्रिया, चुनाव नहीं:

    • कोर्ट ने कहा कि कुलपति की नियुक्ति एक चयन प्रक्रिया है, न कि चुनाव। विजिटर बिना सिफारिशों को माने भी नया पैनल माँग सकते हैं।

  2. पति की भूमिका पर आपत्ति खारिज:

    • हालाँकि कोर्ट ने माना कि प्रोफेसर गुलरेज़ को बैठकों की अध्यक्षता नहीं करनी चाहिए थी, लेकिन चूँकि विजिटर का निर्णय अंतिम था, इसलिए नियुक्ति अमान्य नहीं होती।

    • भविष्य के लिए निर्देश दिया कि “किसी भी प्रमुख बैठक में संबंधित व्यक्ति के परिवार के सदस्यों को भाग नहीं लेना चाहिए।”

  3. महिला अधिकारों को बढ़ावा:

    • कोर्ट ने कहा कि “100 साल के इतिहास में पहली बार किसी महिला को कुलपति बनाया गया है, जो संवैधानिक मूल्यों के अनुरूप है।”

फैसला:

  • सभी याचिकाएँ खारिज। प्रोफेसर नईमा खातून की नियुक्ति वैध।

[प्रोफेसर (डॉ.) मुजाहिद बेग बनाम भारत संघ, WRIT – A नंबर 19427/2023]

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