वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 पर अंतरिम राहत की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने आदेश सुरक्षित रखा

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वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 पर अंतरिम राहत की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने आदेश सुरक्षित रखा

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं के एक समूह में अंतरिम राहत की मांग पर आदेश सुरक्षित रख लिया। भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की पीठ ने केंद्र सरकार और अधिनियम के खिलाफ दायर याचिकाओं में तीन दिन तक अंतरिम आदेश पर बहसें सुनीं।

सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, जो केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे थे, ने उस प्रावधान का बचाव किया जिसमें गैर-मुस्लिमों को वक्फ बनाने से रोका गया है। उन्होंने कहा कि 2013 के संशोधन से पहले 1923 के मूल कानून में गैर-मुस्लिमों को वक्फ स्थापित करने की अनुमति नहीं थी, क्योंकि उस समय यह आशंका थी कि इस प्रावधान का दुरुपयोग कर कर्जदाताओं को धोखा दिया जा सकता है।

मेहता ने कहा, “वक्फ की स्थापना, वक्फ को दान देने से भिन्न प्रक्रिया है। इसलिए यह जरूरी है कि वक्फ बनाने के लिए मुस्लिमों को कम से कम पांच वर्षों की धार्मिक प्रैक्टिस का अनुभव हो, ताकि इस संस्था का दुरुपयोग न हो। यदि कोई हिंदू वक्फ को दान देना चाहता है, तो वह कर सकता है। लेकिन वक्फ की रचना केवल मुस्लिम ही कर सकते हैं।”

इसके अतिरिक्त, उन्होंने अधिनियम की धारा 3ई का बचाव किया, जिसमें अनुसूचित क्षेत्रों की भूमि पर वक्फ बनाने पर प्रतिबंध है। उन्होंने कहा कि यह प्रावधान अनुसूचित जनजातियों की रक्षा के लिए किया गया है क्योंकि वक्फ एक बार बन जाने के बाद अपरिवर्तनीय होता है और इससे आदिवासियों के भूमि अधिकारों को खतरा हो सकता है। उन्होंने कहा, “आदिवासी संगठनों की याचिकाएं हैं जिनमें कहा गया है कि वक्फ के नाम पर उनकी भूमि हड़पी जा रही है।”

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हरियाणा सरकार और 2025 संशोधन का समर्थन कर रहे एक आदिवासी संगठन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता रंजीत कुमार ने अदालत को बताया कि राजस्थान में खनन के लिए आवंटित 500 एकड़ भूमि पर वक्फ का दावा किया गया था।

मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने मौखिक रूप से यह भी कहा कि वक्फ के पंजीकरण की अनिवार्यता 1923 और 1954 के पूर्ववर्ती कानूनों में भी मौजूद थी।

इस अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिकाओं में यह तर्क दिया गया है कि यह मुस्लिम समुदाय के प्रति भेदभावपूर्ण है और उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। वहीं, भारतीय जनता पार्टी शासित छह राज्यों ने संशोधन के समर्थन में सुप्रीम कोर्ट में हस्तक्षेप याचिकाएं दायर की हैं।

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 5 अप्रैल को वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2025 को अपनी स्वीकृति प्रदान की थी, जिसे संसद में दोनों सदनों में तीखी बहस के बाद पारित किया गया था।

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपना प्रारंभिक हलफनामा दाखिल करते हुए इन याचिकाओं को खारिज करने की मांग की थी और कहा था कि यह कानून संविधान में प्रदत्त मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं करता। केंद्र ने कहा कि ये संशोधन केवल वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन से जुड़े धर्मनिरपेक्ष पहलुओं के नियमन के लिए हैं और धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार (अनुच्छेद 25 और 26) का कोई उल्लंघन नहीं होता।

सरकार ने अदालत से आग्रह किया कि अधिनियम के किसी भी प्रावधान पर रोक न लगाई जाए क्योंकि यह स्थापित सिद्धांत है कि संवैधानिक अदालतें किसी वैधानिक प्रावधान को अंतरिम रूप से स्थगित नहीं कर सकतीं, बल्कि पूरे मामले का अंतिम रूप से निर्णय करती हैं।

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