‘जनता की जीत और न्यायपालिका में भरोसे की बहाली’: इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग की पहल का किया स्वागत

Justice Yashwant Verma

‘जनता की जीत और न्यायपालिका में भरोसे की बहाली’: इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग की पहल का किया स्वागत

प्रयागराज | विधि संवाददाता इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष अनिल तिवारी ने बुधवार को न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के आवास से कथित रूप से नकदी की बरामदगी को लेकर केंद्र सरकार द्वारा महाभियोग प्रस्ताव लाने की खबरों का स्वागत किया। उन्होंने इसे “जनता की जीत” बताते हुए कहा कि यह कदम न्यायपालिका में आमजन के विश्वास को पुनर्स्थापित करता है।

तिवारी ने समाचार एजेंसी ANI से बातचीत में कहा:

“यह पूरे समाज की जीत है क्योंकि न्यायपालिका की शक्ति का आधार ही जनता का विश्वास है। इस प्रस्ताव के चलते जनता को यह महसूस होगा कि पूर्व मुख्य न्यायाधीश और सरकार ने उनकी आवाज सुनी है।”

उन्होंने सभी राजनीतिक दलों से महाभियोग प्रस्ताव के पक्ष में मतदान करने की अपील करते हुए कहा:

“यह जनता और सच्चाई की जीत की दिशा में एक कदम है।”


सुप्रीम कोर्ट ने FIR के आग्रह वाली याचिका खारिज की थी

गौरतलब है कि इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के खिलाफ FIR दर्ज करने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया था। याचिका एडवोकेट मैथ्यूज जे. नेडुमपारा द्वारा दाखिल की गई थी।

न्यायमूर्ति अभय एस. ओका की अध्यक्षता वाली पीठ ने याचिकाकर्ता से कहा था कि वह पहले प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के समक्ष प्रतिनिधित्व दायर करें, उसके बाद ही सुप्रीम कोर्ट का रुख करें।

पीठ ने टिप्पणी की:

“पहले संबंधित प्राधिकरणों को कार्रवाई के लिए प्रतिनिधित्व दें, फिर इस अदालत में रिट याचिका दाखिल करें।”


आंतरिक जांच समिति ने रिपोर्ट सौंपी थी

सुप्रीम कोर्ट की ओर से 8 मई को जारी एक प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, आंतरिक जांच समिति ने अपनी रिपोर्ट तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना को सौंप दी थी, जिसे आगे प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को भेज दिया गया

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न्यायालय ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि:

“आप रिपोर्ट की सामग्री नहीं जानते, हम भी नहीं जानते। मुख्य न्यायाधीश ने रिपोर्ट प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को भेज दी है।”


पृष्ठभूमि

न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा पर आरोप है कि उनके सरकारी आवास पर नकद राशि मिली थी, जिसकी आंतरिक जांच सुप्रीम कोर्ट की नियुक्त समिति ने की थी। इसके बाद से उनके खिलाफ संवैधानिक कार्रवाई की मांग तेज़ हो गई थी


निष्कर्ष

इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन की प्रतिक्रिया एक स्पष्ट संदेश देती है कि न्यायपालिका में पारदर्शिता और जवाबदेही को लेकर अब वकील समुदाय भी मुखर हो रहा है। यदि महाभियोग की प्रक्रिया आगे बढ़ती है, तो यह भारत के न्यायिक इतिहास में संवैधानिक उत्तरदायित्व सुनिश्चित करने की दिशा में एक उल्लेखनीय कदम होगा।

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