मदरसा डिग्री विवाद: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और यूपी सरकार से मांगा जवाब, ‘कामिल-फाजिल’ परीक्षा कराने की याचिका पर जारी किया नोटिस
टीचर्स एसोसिएशन मदारिस अरबिया की याचिका पर सुनवाई, कोर्ट ने पहले से लंबित मामले के साथ जोड़ने का दिया आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के मान्यता प्राप्त मदरसों में ‘कामिल’ (स्नातक स्तर) और ‘फाजिल’ (स्नातकोत्तर स्तर) की पढ़ाई कर रहे छात्रों की परीक्षा कराने और डिग्री जारी करने की मांग को लेकर दाखिल याचिका पर केंद्र सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है।
यह नोटिस टीचर्स एसोसिएशन मदारिस अरबिया, उत्तर प्रदेश की ओर से दाखिल याचिका पर जारी किया गया है। याचिका में राज्य सरकार को निर्देश देने की मांग की गई है कि वह ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती लैंग्वेज यूनिवर्सिटी, लखनऊ को कामिल और फाजिल की परीक्षा आयोजित करने और डिग्री जारी करने के लिए अधिकृत करे।
सुप्रीम कोर्ट ने पहले दिए फैसले का भी लिया संज्ञान
न्यायमूर्ति बी.आर. गवई, न्यायमूर्ति अगस्टिन जॉर्ज मसीह और न्यायमूर्ति ए.एस. चंदुरकर की पीठ ने 30 मई को इस याचिका पर सुनवाई करते हुए न केवल नोटिस जारी किया बल्कि मदरसा डिग्री की वैधता से जुड़ी पहले से लंबित याचिका के साथ इस याचिका को टैग करने का आदेश भी दिया।
याचिका में सुप्रीम कोर्ट के वर्ष 2024 के चर्चित ‘अंजुम क़ादरी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य’ मामले का उल्लेख किया गया है, जिसमें शीर्ष अदालत ने यूपी मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम को वैध ठहराया था, लेकिन यह भी स्पष्ट किया था कि कामिल और फाजिल जैसी डिग्रियों को जारी करना बोर्ड के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता और यह यूजीसी एक्ट की धारा 22 का उल्लंघन होगा।
50,000 छात्रों का भविष्य अधर में
याचिका में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट के उपरोक्त फैसले के बाद, मदरसा बोर्ड के रजिस्ट्रार ने 16 जनवरी 2025 को राज्य के सभी ज़िला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारियों को पत्र भेजकर निर्देश दिया कि किसी भी मदरसे को कामिल और फाजिल की शिक्षा देने की अनुमति नहीं है, और बोर्ड को इन डिग्रियों के प्रमाणपत्र जारी करने का अधिकार नहीं है।
याचिकाकर्ता ने कोर्ट से कहा है कि इससे प्रदेश भर में करीब 50,000 छात्र, जो कामिल और फाजिल की पढ़ाई कर रहे हैं, कानूनी और शैक्षणिक अनिश्चितता के दौर में पहुंच गए हैं। इनमें से कई छात्र ‘आलिम’ (सीनियर सेकेंडरी) स्तर की शिक्षा भी ले रहे हैं। याचिका में तर्क दिया गया है कि इस स्थिति से छात्रों के संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता), 19(1)(जी) (व्यवसाय की स्वतंत्रता), 21 (जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार), 28 और 30 (शैक्षणिक संस्थानों पर अल्पसंख्यकों के अधिकार) का उल्लंघन हो रहा है।
अब सुप्रीम कोर्ट में इस संवेदनशील मामले की अगली सुनवाई पहले से लंबित याचिका के साथ होगी, जिसका असर प्रदेश के हजारों मदरसा छात्रों के शैक्षणिक भविष्य पर पड़ सकता है।
Leave a Reply