वकीलों को समन करने का अधिकार नहीं: सुप्रीम कोर्ट ने कहा—जांच एजेंसियों का ऐसा कदम न्याय प्रणाली की स्वतंत्रता पर खतरा

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वकीलों को समन करने का अधिकार नहीं: सुप्रीम कोर्ट ने कहा—जांच एजेंसियों का ऐसा कदम न्याय प्रणाली की स्वतंत्रता पर खतरा

नई दिल्ली | विधि संवाददाता
सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा है कि जांच एजेंसियों या पुलिस Police द्वारा किसी मामले में वकीलों को सीधे समन करना कानूनी पेशे की स्वायत्तता को कमजोर करता है और यह न्याय प्रणाली की स्वतंत्रता के लिए प्रत्यक्ष खतरा है। यह टिप्पणी उस समय आई जब शीर्ष अदालत गुजरात के एक वकील की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसने अपने मुवक्किल से संबंधित मामले में पुलिस द्वारा समन किए जाने को चुनौती दी थी।

जस्टिस केवी विश्वनाथन और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि वकील केवल मुवक्किल को कानूनी सलाह देने का कार्य करता है और ऐसी स्थिति में उसे समन करना प्रथम दृष्टया अवांछनीय हस्तक्षेप है।


कोर्ट के तीखे सवाल

पीठ ने मौखिक टिप्पणी करते हुए कहा:

“जांच एजेंसियों या पुलिस को वकीलों को सीधे समन करने की अनुमति देना कानूनी पेशे की स्वायत्तता को गंभीर रूप से कमजोर करेगा और न्याय प्रशासन की स्वतंत्रता के लिए सीधा खतरा उत्पन्न करेगा।”

कोर्ट ने यह भी सवाल किया कि:

“क्या केवल कानूनी सलाह देने के आधार पर वकील को पूछताछ के लिए बुलाया जा सकता है? यदि किसी वकील की भूमिका वकील से अधिक है, तब भी क्या उसे सीधे समन किया जा सकता है, या इसके लिए न्यायिक निगरानी आवश्यक होनी चाहिए?”


पुलिस नोटिस पर सुप्रीम कोर्ट की रोक

सुनवाई के दौरान यह बात सामने आई कि गुजरात हाई कोर्ट ने मार्च 2025 में वकील को तलब करने संबंधी पुलिस के नोटिस को रद्द करने से इनकार कर दिया था। इस फैसले के खिलाफ वकील ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी।

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सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगाते हुए निर्देश दिया कि:

“अगले आदेश तक राज्य वकील को तलब न करे।”

साथ ही गुजरात सरकार को नोटिस जारी कर उसका जवाब भी मांगा गया है।


न्यायपालिका और बार की स्वतंत्रता का मामला

कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि यह मामला केवल एक वकील की निजता का नहीं, बल्कि पूरे न्याय प्रशासन की संरचना से जुड़ा मामला है। किसी पेशेवर वकील को उसके मुवक्किल की ओर से दिए गए परामर्श के लिए जांच एजेंसियों द्वारा तंग करना संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकारों और न्याय प्रणाली की निष्पक्षता पर चोट है।

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