इलाहाबाद हाईकोर्ट की बड़ी कार्रवाई, 15 न्यायिक अफसरों पर एक्शन, एडीजे सहित 10 को अनिवार्य सेवानिवृत्ति-

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हाईकोर्ट प्रशासन (High court officials) ने प्रदेश के विभिन्न जनपद न्यायालयों में पदासीन 11 अपर जनपद न्यायाधीश(Upper Judge) , दो जिला जज (District Judge) स्तर के और दो सीजेएम (CJM) स्तर के सहित 15 न्यायिक अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने का निर्णय लिया है. इनमें से 10 को समयपूर्व सेवानिवृत्ति दी गई हैं और उनके पावर सीज कर दिए गए हैं.

संविधान के अनुच्छेद 235 में हाईकोर्ट को जिला न्यायालयों में कार्यरत न्यायिक अधिकारियों पर नियंत्रण रखने का अधिकार दिया गया है। यह कार्यवाही एक संकेत के रूप में है।

इलाहाबाद हाईकोर्ट प्रशासन ने प्रदेश के विभिन्न जनपद न्यायालयों में पदासीन 11 अपर जनपद न्यायाधीश, दो जिला जज स्तर के और दो सीजेएम स्तर के सहित 15 न्यायिक अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने का निर्णय लिया है. इनमें से 10 को समयपूर्व सेवानिवृत्ति दी गई हैं और उनके पावर सीज कर दिए गए हैं. 

इस कार्रवाई के बाद से पूरा न्यायिक महकमा सजग हो गया है. इस कार्रवाई का मुख्य उद्देश्य न्यायिक व्यवस्था और इससे जुड़े लोगों को सही दिशा में कार्य करने के लिए ​निर्देश ​देना है.

महिला जज भी शामिल

यह निर्णय बीते सप्ताह इलाहाबाद हाईकोर्ट और लखनऊ बेंच के न्यायाधीशों की फुलकोर्ट बैठक में लिया गया. इनमें 11 अधिकारियों को नियम 56 सी के तहत निष्प्रयोज्य आंका गया. ये सभी अपने आचरण और व्यवहार से विभाग की छवि को भी प्रभावित कर रहे थे. इन अधिकारियों में जिला जज स्तर के मोटर एक्सीडेंट क्लेम ट्रिब्यूनल के एक पीठासीन अधिकारी के अलावा लखीमपुर, आगरा, कौशाम्बी, वाराणसी, हमीरपुर व उन्नाव में कार्यरत अपर जिला जज, मुरादाबाद व कानपुर नगर के सीजेएम स्तर के एक-एक अधिकारी, गोरखपुर की महिला अपर जिला जज को समय से पूर्व सेवानिवृत्त कर दिया गया है.

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कुछ को मिली राहत

हाईकोर्ट में कार्यरत एक रजिस्ट्रार को काम पूरा न हो पाने कारण स्कैनिंग कमेटी ने उन्हें भी सूची में शामिल किया था लेकिन उनके आचरण, व्यवहार और अच्छे न्यायिक अधिकारी होने की कारण उन्हें राहत प्रदान की गई. एक जिला जज अवकाश ग्रहण करने के कारण कार्यवाही से राहत पा गए. काफी समय से निलंबित चल रहे सुलतानपुर के एडीजे को भी राहत प्रदान की गई है. संविधान 235 अनुच्छेद में हाईकोर्ट को जिला न्यायालयों में कार्यरत न्यायिक अधिकारियों पर नियंत्रण रखने का अधिकार दिया गया है. यह कार्यवाही एक संकेत के रूप में है. इस सिलसिले में हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल से बात करने की कोशिश की गई लेकिन उनसे संपर्क नहीं हो सका.

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