रिटायर्ड सिविल सर्जन दीनानाथ पांडेय की पेंशन से काटी गई राशि के भुगतान को लेकर दायर अवमानना याचिका पर सुनवाई के लिए स्वास्थ्य विभाग के अपर मुख्य सचिव अजय कुमार सिंह को शुक्रवार रात नौ बजे न्यायाधीश आनंद सेन की अदालत में उपस्थित होना पड़ा। दरअसल, इस मामले में कोर्ट ने अपर मुख्य सचिव के खिलाफ अवमानना कार्रवाई के तहत जमानती वारंट जारी किया था, जिसके बाद उन्हें तुरंत हैदराबाद से रांची लौटने का आदेश दिया गया। कोर्ट में उपस्थित होकर, उन्होंने माफी मांगते हुए बताया कि तीन साल की कटौती की गई राशि के भुगतान का आदेश पारित हो चुका है, और जल्द ही प्रार्थी के खाते में राशि ट्रांसफर कर दी जाएगी। सरकार के पक्ष को सुनने के बाद, अदालत ने अवमानना याचिका को खारिज कर दिया।
अवमानना याचिका पर सुनवाई से पहले कोर्ट ने विभाग के अपर मुख्य सचिव को सशरीर कोर्ट में उपस्थित होने का आदेश दिया था। हालांकि, इस पर सशरीर पेशी से छूट के लिए एक एफिडेविट दाखिल किया गया था। फिर 7 फरवरी को सुनवाई के दौरान, कोर्ट ने जमानती वारंट जारी करते हुए राज्य के डीजीपी को आदेश दिया था कि वे अपर मुख्य सचिव की सशरीर उपस्थिति सुनिश्चित करें। सरकार की ओर से यह बताया गया कि अपर मुख्य सचिव राज्य से बाहर हैं, इसलिए उनका पक्ष वर्चुअल मोड में लिया जाए। इस अनुरोध को अस्वीकार करते हुए, हाईकोर्ट ने स्पष्ट रूप से आदेश दिया कि अपर मुख्य सचिव को जहां भी हों, उन्हें सशरीर कोर्ट में उपस्थित किया जाए। इसके बाद, कोर्ट को बताया गया कि अपर मुख्य सचिव हैदराबाद से रांची लौटने में रात 8:30 बजे तक पहुंचेंगे। इस पर, कोर्ट ने रात 9:00 बजे सुनवाई का समय तय किया।
सुनवाई के दौरान सरकार का पक्ष सुनने के बाद, अदालत ने याचिका को ड्रॉप कर दिया। अपर मुख्य सचिव अजय कुमार सिंह ने हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल के पास जाकर पर्सनल बेल बॉन्ड भरा। कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि निर्धारित समय सीमा के भीतर प्रार्थी के खाते में राशि नहीं आती है, तो वह दोबारा अदालत का दरवाजा खटखटा सकते हैं।
हाईकोर्ट ने ऑडिटर जनरल को एक सप्ताह के अंदर प्राधिकार पत्र जारी करने का आदेश भी दिया है। इस सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता राजीव रंजन और याचिकाकर्ता की ओर से दीपक कुमार प्रसाद ने पक्ष रखा।
गौरतलब है कि, हजारीबाग के सिविल सर्जन रहते हुए डॉ. दीनानाथ पांडेय पर सामान की आपूर्ति की निगरानी सही तरीके से न करने का आरोप था। इस मामले में राज्य सरकार ने उनकी पेंशन से 20 प्रतिशत राशि काटने का आदेश दिया था। डॉ. पांडेय ने राज्य सरकार के इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।
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