इलाहाबाद हाई कोर्ट ने CBI को दी अनुमति, रिटायर्ड जस्टिस एसएन शुक्ल बन गए मुजरिम, चलेगा अभियोग-

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CBI सीबीआई को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति एस एन शुक्ला के खिलाफ भ्रष्टाचार के एक मामले में उनके आदेश में एक निजी मेडिकल कालेज का पक्ष लेने के लिए मुकदमा चलाने की मंजूरी मिल गई है।

अधिकारियों ने बताया कि सीबीआई ने इस साल 16 अप्रैल को सेवानिवृत्त न्यायाधीश के खिलाफ भ्रष्टाचार रोकथाम कानून के तहत मुकदमा चलाने के लिए उच्च न्यायालय से अनुमति मांगी थी। उच्च न्यायालय अब अपनी मंजूरी दे रहा है, तो सीबीआई सेवानिवृत्त न्यायाधीश के खिलाफ आरोपपत्र के साथ आगे बढ़ सकती है।

कहा गया कि एजेंसी ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ के न्यायमूर्ति शुक्ला के अलावा छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश आईएम कुद्दूसी, प्रसाद शिक्षा न्यास के भगवान प्रसाद यादव और पलाश यादव, स्वयं ट्रस्ट और निजी व्यक्तियों भावना पांडे और सुधीर गिरी को भी FIR में नामजद किया था।

यह है पूरा मामला, जिसमें फंसे हैं जस्टिस शुक्ला-

मामला लखनऊ में कानपुर रोड स्थित प्रसाद इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज से जुड़ा है। यह मेडिकल कॉलेज एक समाजवादी पार्टी के नेता बीपी यादव और पलाश यादव का है। 2017 में मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) ने मेडिकल संस्थान का निरीक्षण किया। इस दौरान यहां बुनियादी सुविधाएं कम पाई गई। यहां पर मेडिकल की पढ़ाई के मानक पूरे नहीं हो रहे थे। इसके बाद आदेश के तहत प्रसाद इंस्टिट्यूट समेत देश के 46 मेडिकल कॉलेजों में मानक पूरे न करने पर नए प्रवेशों पर रोक लगा दी गई थी।

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सीबीआई के शिकंजे में फंसे थे पूर्व जस्टिस आईएम कुद्दुसी भी

जस्टिस शुक्ला ने जिस दिन प्रसाद इंस्टिट्यूट के पक्ष में फैसला दिया, उससे दो दिन पहले सीबीआई ने लखनऊ और अन्य जगहों पर छापेमारी की थी। इस मामले में उड़ीसा हाईकोर्ट के पूर्व जस्टिस आईएम कुद्दूसी का नाम भी आया। आईएम कुद्दूसी के ठिकानों समेत, प्रसाद एजुकेशन ट्रस्ट के मालिक बीपी यादव, पलाश यादव, विश्वनाथ अग्रवाल, भावना पांडेय, मेरठ के एक मेडिकल कॉलेज के सुधीर गिरी समेत सात लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया गया। सीबीआई की इस छापेमारी में भारी रकम के लेनदेन का मामला भी सामने आया था। आरोपियों के पास से तब लगभग दो करोड़ रुपये नगद बरामद होने की बात सामने आई थी और रुपयों के लेनदेन से संबंधित दस्तावेज भी सीबीआई ने जब्त किए थे। रुपयों के इस लेनदेन में आईएम कुद्दुसी का नाम सामने आया था।

आरोपियों के खिलाफ आईपीसी की धारा 120बी (आपराधिक साजिश) और भ्रष्टाचार निरोधक कानून के प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया गया था। अधिकारियों ने कहा कि एक अनुकूल आदेश प्राप्त करने के लिए, ट्रस्ट द्वारा प्राथमिकी में नामित एक आरोपी को अवैध रूप से भुगतान किया गया था।

बताया गया कि प्राथमिकी दर्ज करने के बाद सीबीआई ने लखनऊ, मेरठ और दिल्ली में कई स्थानों पर तलाशी ली। यह आरोप लगाया गया है कि प्रसाद इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल साइंसेज को मई 2017 में घटिया सुविधाओं और आवश्यक मानदंडों को पूरा न करने के कारण छात्रों को प्रवेश देने से रोक दिया गया था, साथ ही 46 अन्य मेडिकल कालेजों को भी इसी आधार पर प्रतिबंधित कर दिया गया था।

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उन्होंने कहा कि डिबार के फैसले को ट्रस्ट ने एक रिट याचिका के जरिए सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। इसके बाद प्राथमिकी में नामजद लोगों ने साजिश रची और अदालत की अनुमति से याचिका वापस ले ली। अधिकारियों ने कहा कि 24 अगस्त, 2017 को उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ के समक्ष एक और रिट याचिका दायर की गई थी। बताया गया कि प्राथमिकी में आगे आरोप लगाया गया कि याचिका पर 25 अगस्त, 2017 को न्यायमूर्ति शुक्ला की खंडपीठ द्वारा सुनवाई की गई और उसी दिन एक अनुकूल आदेश पारित किया गया।

सीबीआइ ने अनुमति से पहले लखनऊ, मेरठ और दिल्ली में की तहकीकात

अनुमति लेने से पहले सीबीआइ ने लखनऊ, मेरठ और दिल्ली में छानबीन की। प्रसाद इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल साइंसेज को मई, 2017 में केंद्र द्वारा 46 अन्य मेडिकल कालेजों के साथ-साथ घटिया सुविधाओं और आवश्यक मानदंडों को पूरा करने में विफलता के कारण छात्रों को प्रवेश देने से रोक दिया गया था। डिबारमेंट के फैसले को ट्रस्ट ने एक रिट के जरिये सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। जहां से राहत नहीं मिलती देख, एफआइआर में नामित लोगों ने साजिश रची और अदालत की अनुमति से याचिका वापस ले ली गई।

जांच एजेंसी की प्राथमिकी के अनुसार, 24 अगस्त, 2017 को उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ के समक्ष एक और याचिका दायर की गई थी। याचिका पर 25 अगस्त, 2017 को न्यायमूर्ति शुक्ला की खंडपीठ द्वारा सुनवाई की गई और उसी दिन संस्था के पक्ष में आदेश पारित किया गया। इसी मामले में न्यायमूर्ति शुक्ल पर भ्रष्टाचार का आरोप है। पक्ष में आदेश के लिए अवैध भुगतान की भी बात सामने आई है। शुक्ल पांच अक्टूबर, 2005 को जज बने और 17 जुलाई, 2020 को सेवानिवृत्त हुए।

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