विशेष न्यायाधीश की अनिवार्य सेवानिवृत्ति को इलाहाबाद हाईकोर्ट की मंजूरी, कहा — सेवा अभिलेखों में प्रतिकूलता, जज बने रहने का अधिकार नहीं
“एक न्यायाधीश का आचरण ऐसा होना चाहिए, जिससे आम नागरिक का न्याय प्रणाली पर विश्वास बना रहे। याची के सेवा अभिलेखों में प्रतिकूल सामग्री उसकी न्यायिक जिम्मेदारी के अनुरूप नहीं है।”
इलाहाबाद: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कौशाम्बी में विशेष न्यायाधीश के पद पर तैनात रहे रमेश कुमार यादव को दी गई अनिवार्य सेवानिवृत्ति के आदेश को रद्द करने से इनकार कर दिया है। न्यायालय ने दो टूक कहा कि याची के सेवा अभिलेखों में मौजूद प्रतिकूल प्रविष्टियाँ इस प्रकार की हैं कि उन्हें न्यायिक पद पर बने रहने का नैतिक या व्यावसायिक अधिकार नहीं रह जाता।
न्यायमूर्ति अश्विनी कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति डोनाडी रमेश की खंडपीठ ने कहा —
“एक न्यायाधीश का आचरण ऐसा होना चाहिए, जिससे आम नागरिक का न्याय प्रणाली पर विश्वास बना रहे। याची के सेवा अभिलेखों में प्रतिकूल सामग्री उसकी न्यायिक जिम्मेदारी के अनुरूप नहीं है।”
सेवा पृष्ठभूमि:
रमेश कुमार यादव 2001 में पीसीएस (जे) के तहत सिविल जज (जूनियर डिवीजन) के रूप में नियुक्त हुए थे। 2006 में उन्हें सिविल जज (सीनियर डिवीजन) पद पर प्रोन्नत किया गया और बाद में उच्च न्यायिक सेवा में पदोन्नति प्राप्त कर कौशाम्बी में विशेष न्यायाधीश (SC/ST अत्याचार निवारण अधिनियम) के पद पर तैनात किया गया।
हालांकि, उनकी सेवानिवृत्ति फरवरी 2026 में प्रस्तावित थी, लेकिन वर्ष 2021 में प्रशासनिक जज द्वारा दी गई प्रतिकूल प्रविष्टि के आधार पर उन्हें अनिवार्य सेवानिवृत्ति दे दी गई। इस निर्णय को चुनौती देते हुए उन्होंने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी।
कोर्ट का निर्णय:
हाईकोर्ट ने याचिका को अस्वीकार करते हुए कहा:
- प्रशासनिक जज द्वारा दी गई प्रतिकूल टिप्पणी को चुनौती नहीं दी गई है, इसलिए अब उसकी वैधता पर कोई सवाल नहीं उठाया जा सकता।
- रिकॉर्ड दर्शाते हैं कि वर्ष 2008-09 की प्रतिकूल प्रविष्टि यथावत बनी रही, जिसके आधार पर स्क्रीनिंग कमेटी ने अनिवार्य सेवानिवृत्ति की सिफारिश की।
- स्क्रीनिंग समिति के सदस्यों पर न पक्षपात का आरोप लगाया गया, न दुर्भावना का, जिससे यह स्पष्ट है कि सेवानिवृत्ति का निर्णय विधानसम्मत और प्रक्रियात्मक रूप से उचित है।
न्यायिक टिप्पणी:
कोर्ट ने कहा —
“हमें इस निष्कर्ष पर पहुंचने में कोई संकोच नहीं कि उपलब्ध सेवा अभिलेखों को देखते हुए याची को न्यायिक पद पर बने रहने का कोई औचित्य नहीं है। ऐसी स्थिति में न्यायालय को हस्तक्षेप का कोई कारण नहीं दिखता।”
प्रकरण का सारांश:
- प्रकरण: रमेश कुमार यादव बनाम राज्य सरकार
- विवाद: अनिवार्य सेवानिवृत्ति की वैधता
- निर्णय: याचिका खारिज, प्रशासनिक प्रक्रिया को उचित माना गया
यह निर्णय उन मामलों में महत्वपूर्ण नज़ीर के रूप में देखा जा सकता है जहां न्यायिक अधिकारियों की सेवा पृष्ठभूमि में प्रतिकूल प्रविष्टियों के आधार पर समय पूर्व सेवानिवृत्ति दी जाती है, और उच्च न्यायालय उनके विरुद्ध हस्तक्षेप से बचता है यदि प्रक्रिया में कोई कानूनी त्रुटि या दुर्भावना साबित न हो।
Leave a Reply