इलाहाबाद हाई कोर्ट बार एसोसिएशन का बड़ा सवाल – क्या जज देश के कानून से ऊपर हैं?

इलाहाबाद हाई कोर्ट बार एसोसिएशन ने जस्टिस यशवंत वर्मा के तबादले का किया विरोध, ‘अंकल जज सिंड्रोम’ पर उठाए गंभीर सवाल

इलाहाबाद हाई कोर्ट बार एसोसिएशन का बड़ा सवाल – क्या जज देश के कानून से ऊपर हैं?

मुख्य बिंदु:

🔹 ‘अंकल जज सिंड्रोम’ – न्यायपालिका में भ्रष्टाचार का बड़ा कारण, फैसलों में पक्षपात की आशंका।
🔹 HCBA का कड़ा रुख – जस्टिस यशवंत वर्मा के तबादले का विरोध, सभी फैसलों की समीक्षा की मांग।
🔹 CBI या ED जांच क्यों नहीं? – जब आम नागरिकों और नेताओं पर जांच एजेंसियां कार्रवाई करती हैं, तो जजों पर क्यों नहीं?
🔹 लोकतंत्र के लिए खतरा – बार एसोसिएशन ने कहा, “जनता का विश्वास टूट गया तो न्यायपालिका भी बेकार हो जाएगी।”
🔹 HCBA की मांग – जस्टिस वर्मा की संपत्ति की जांच हो, अगर जरूरत पड़े तो उन्हें हिरासत में लिया जाए।

इलाहाबाद हाई कोर्ट बार एसोसिएशन ने जस्टिस यशवंत वर्मा के तबादले का किया विरोध, ‘अंकल जज सिंड्रोम’ पर उठाए गंभीर सवाल

इलाहाबाद हाई कोर्ट बार एसोसिएशन (HCBA) ने जस्टिस यशवंत वर्मा के तबादले को लेकर कड़ा विरोध जताया है और इसे भारतीय न्यायपालिका के इतिहास का “सबसे काला दिन” करार दिया है। एसोसिएशन ने इन-हाउस जांच को ‘संदेहास्पद’ और ‘न्यायिक बिरादरी के लिए अस्वीकार्य’ बताया, साथ ही यह भी मांग की कि अब तक उनके द्वारा दिए गए सभी फैसलों की गहन समीक्षा होनी चाहिए।

बार एसोसिएशन ने केवल जस्टिस यशवंत वर्मा के दिल्ली हाई कोर्ट से इलाहाबाद हाई कोर्ट या उसकी लखनऊ बेंच में ट्रांसफर का ही नहीं, बल्कि किसी अन्य हाई कोर्ट में तबादले का भी विरोध किया है। एसोसिएशन ने इन-हाउस जांच की प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए कहा कि इस मामले में जजों द्वारा ही एक जज की जांच की जाएगी, जिससे निष्पक्ष न्याय की उम्मीद नहीं की जा सकती।

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बार एसोसिएशन ने चेतावनी दी कि जस्टिस वर्मा का पद पर बने रहना लोकतंत्र के लिए खतरनाक है, क्योंकि इससे न्यायपालिका में जनता का विश्वास कमजोर हो रहा है। एसोसिएशन ने कहा, “जनता का विश्वास ही न्यायपालिका की सबसे बड़ी शक्ति है। अगर विश्वास खत्म हो गया, तो सब कुछ खत्म हो जाएगा और देश का लोकतांत्रिक ढांचा चरमरा जाएगा।”

HCBA का सवाल – क्या जज देश के कानून से ऊपर हैं?

इलाहाबाद हाई कोर्ट बार एसोसिएशन ने सीधा सवाल उठाया कि जब देश के आम नागरिकों, नौकरशाहों, राजनेताओं और अधिकारियों पर CBI या ED की जांच हो सकती है, तो जजों के खिलाफ ऐसा क्यों नहीं?
अगर 14 मार्च को आधिकारिक आवास से भारी मात्रा में नकदी बरामद हुई थी, तो फिर FIR दर्ज क्यों नहीं हुई?

बार एसोसिएशन का कहना है कि “अगर कानून सभी के लिए समान है, तो जस्टिस वर्मा की जांच के लिए भी CBI या ED को हस्तक्षेप करना चाहिए।”
उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (CJI) से मांग की है कि इस मामले में महाभियोग की प्रक्रिया शुरू की जाए और निष्पक्ष जांच सुनिश्चित की जाए।

HCBA की चेतावनी – न्यायपालिका में भ्रष्टाचार को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा

HCBA ने ‘अंकल जज सिंड्रोम’ को न्यायपालिका के लिए सबसे बड़ा खतरा बताया और कहा कि जजों द्वारा अपने करीबी लोगों को लाभ पहुंचाना न्यायिक प्रणाली की निष्पक्षता को खत्म कर रहा है।

HCBA अध्यक्ष अनिल तिवारी ने कहा, “हम अब पीछे नहीं हटेंगे। अगर जरूरत पड़ी तो इस लड़ाई को और बड़े स्तर पर ले जाया जाएगा।”

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अब देखना यह होगा कि इस मामले में सरकार और न्यायपालिका क्या कदम उठाते हैं।

‘अंकल जज सिंड्रोम’ से न्यायपालिका को गंभीर नुकसान

बार एसोसिएशन ने अपने प्रस्ताव में ‘अंकल जज सिंड्रोम’ पर गंभीर चिंता जताई। यह सिंड्रोम न्यायपालिका में व्याप्त भ्रष्टाचार की ओर इशारा करता है, जहां जजों के रिश्तेदारों को फैसलों में अनुचित लाभ पहुंचाया जाता है। एसोसिएशन ने कहा कि न्यायपालिका में पारदर्शिता बनाए रखने के लिए इस पर सख्त कार्रवाई जरूरी है।

HCBA ने राष्ट्रपति और केंद्र सरकार से इस मामले में त्वरित कार्रवाई सुनिश्चित करने की मांग की। एसोसिएशन ने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (CJI) को जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया शुरू करने की सिफारिश करनी चाहिए। इसके अलावा, HCBA ने सीजेआई से अपील की कि जस्टिस वर्मा के आधिकारिक आवास से 14 मार्च को कथित रूप से बरामद भारी मात्रा में नकदी के मामले में उनके खिलाफ FIR दर्ज करने और CBI एवं ED से जांच कराने की अनुमति दी जाए।

HCBA का न्यायिक कार्य से पूर्ण बहिष्कार

इलाहाबाद हाई कोर्ट बार एसोसिएशन ने सोमवार को न्यायिक कार्य से पूरी तरह दूर रहने का फैसला लिया। यह बहिष्कार तब तक जारी रहेगा जब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं होती। सोमवार को लंच ब्रेक के दौरान यह प्रस्ताव पारित किया गया, जिसके बाद वकीलों ने शेष दिन के लिए न्यायिक कार्यों से दूरी बना ली।

बार एसोसिएशन के अध्यक्ष, वरिष्ठ अधिवक्ता अनिल तिवारी ने कहा, “हमने सोमवार को सांकेतिक हड़ताल की ताकि सुप्रीम कोर्ट द्वारा 20 मार्च को जस्टिस वर्मा के ट्रांसफर की सिफारिश के विरोध में अपनी नाराजगी जता सकें। लेकिन शाम होते-होते 24 मार्च की एक और सिफारिश सामने आई, जिसमें फिर से वही तबादले की सिफारिश की गई। इसके बाद बार एसोसिएशन की आपातकालीन बैठक बुलाई गई, जिसमें वकीलों ने न्यायिक कार्य से अनिश्चितकाल तक दूर रहने का निर्णय लिया।”

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HCBA के संयुक्त सचिव (प्रशासन) सुमित कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि एसोसिएशन पहले ही जस्टिस वर्मा के तबादले का विरोध कर चुका था, और मीडिया में खबर आई थी कि सुप्रीम कोर्ट ने ऐसी कोई सिफारिश नहीं की। “लेकिन 24 मार्च को फिर से कॉलेजियम ने जस्टिस वर्मा का ट्रांसफर दोहराया। ऐसे में हमारे पास अनिश्चितकालीन हड़ताल के अलावा कोई और विकल्प नहीं बचा”

लखनऊ बेंच की ओउध बार एसोसिएशन (OBA) भी विरोध में शामिल

इस बीच, लखनऊ बेंच की OBA ने मंगलवार को अपनी कार्यकारिणी की बैठक बुलाई है, जिसमें इस मुद्दे पर निर्णय लिया जाएगा।

इस पूरे मामले में वकीलों का विरोध दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है। अब देखना यह होगा कि सुप्रीम कोर्ट और सरकार इस पर क्या रुख अपनाते हैं।

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