⚖️ इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जेल अधीक्षक की पेंशन में 10% कटौती को रद्द किया, कहा – “यह कदाचार नहीं है”
मामला:
🧾 राज किशोर सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य व अन्य
🆔 न्यूट्रल सिटेशन: 2025:AHC-LKO:17496
👨⚖️ पीठ: न्यायमूर्ति नीरज तिवारी की एकल पीठ
🧾 पृष्ठभूमि (Factual Background):
- याचिकाकर्ता राज किशोर सिंह को 09 मई 1994 को डिप्टी जेलर के पद पर नियुक्त किया गया था।
- इटावा जेल में जेल अधीक्षक के रूप में कार्य करते समय दो सजा पाए बंदी जेल से फरार हो गए।
- आरोप लगाया गया कि याचिकाकर्ता का अपने अधीनस्थ कर्मचारियों पर ढीला नियंत्रण था, जिसके कारण सुरक्षा में लापरवाही हुई।
- वर्ष 2019 में आरोप पत्र (चार्जशीट) जारी हुआ और 2021 में रिटायरमेंट के बाद CSR की धारा 351-A के तहत विभागीय जांच जारी रखने की अनुमति दी गई।
- जांच के बाद याचिकाकर्ता की पेंशन से पहले 15% की कटौती, फिर संशोधित आदेश द्वारा 10% कटौती तीन वर्षों के लिए की गई।
- जबकि उसी घटना में लिप्त अन्य अधिकारियों (जेलर व डिप्टी जेलर्स) को केवल चेतावनी/प्रतिनिधि प्रविष्टि दी गई।
⚖️ हाईकोर्ट का विचार और तर्क (Reasoning):
- कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता ने जेल की खराब स्थिति की सूचना डीजी, जेल को समय रहते दी थी, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई।
🗣️ “याचिकाकर्ता को उन कमियों के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता जिनके बारे में उन्होंने पहले ही अधिकारियों को सूचित कर दिया था।”
- न्यायालय ने कहा कि जेल अधीक्षक की भूमिका केवल पर्यवेक्षी (supervisory) होती है, जबकि सुरक्षा के प्रत्यक्ष कार्यों की जिम्मेदारी अधीनस्थ अधिकारियों (जेलर, डिप्टी जेलर) की होती है।
- अदालत ने इसे स्पष्ट भेदभाव (discrimination) का मामला बताया, क्योंकि याचिकाकर्ता को उच्च दंड दिया गया जबकि मुख्य जिम्मेदार अधिकारियों को हल्की सजा दी गई।
- पूर्व निर्णय (Surendra Pandey बनाम राज्य, 2007) का हवाला देते हुए कोर्ट ने दोहराया कि:
“केवल अधीनस्थों पर ढीला नियंत्रण होने से यदि बंदी फरार होते हैं, तो इसे कदाचार (misconduct) नहीं कहा जा सकता।”
🧾 अंतिम निर्णय (Final Judgment):
- अदालत ने याचिकाकर्ता की पेंशन में 10% कटौती वाले आदेश को रद्द कर दिया।
- राज्य सरकार को निर्देश दिया गया कि याचिकाकर्ता को कटौती की गई पूरी राशि ब्याज सहित @ 9% की दर से बकाया तिथि से लेकर भुगतान की तिथि तक दी जाए।
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