इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने पारिवारिक न्यायालय के एक फैसले के खिलाफ अपील स्वीकार करते हुए 2004 में 12 साल के एक लडके और नौ साल की लड़की के बीच हुई शादी को “अमान्य” घोषित कर दिया है।
साथ ही न्यायालय ने व्यक्ति को अपनी “पत्नी” को 25 लाख रुपये देने का आदेश दिया है।
कोर्ट ने अपने 47 पन्नों के फैसले में यह मानते हुए कि मुकदमा समय-सीमा के भीतर दायर किया गया था और अपीलकर्ता पति ही इसे दायर करने का हकदार था, उच्च न्यायालय ने कहा कि पारिवारिक न्यायालय ने मामले को खारिज करके गलती की है।
न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह और न्यायमूर्ति दोनादी रमेश की पीठ ने 25 अक्टूबर को गौतम बुद्ध नगर में पारिवारिक न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश के फैसले के खिलाफ “पति” द्वारा दायर अपील को स्वीकार करते हुए यह फैसला सुनाया।
पारिवारिक न्यायालय के समक्ष दायर मुकदमे में अपीलकर्ता ने मांग की कि 28 नवंबर, 2004 को संपन्न उसकी “शादी” को “अमान्य” घोषित किया जाए।
दस्तावेजों के अनुसार, अपीलकर्ता का जन्म 7 अगस्त, 1992 को हुआ था, जबकि प्रतिवादी (पत्नी) का जन्म 1 जनवरी, 1995 को हुआ था।
हाई कोर्ट ने कहा, “अपीलकर्ता की आयु 18 वर्ष से अधिक थी। वह अकेले ही अपनी व्यक्तिगत क्षमता में वह मुकदमा दायर कर सकता था। सीमा के संबंध में, हम पहले ही सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय पर विचार करते हुए इस निष्कर्ष पर पहुँच चुके हैं कि अपीलकर्ता के पास उस मुकदमे को शुरू करने के लिए 23 वर्ष की आयु तक की सीमा उपलब्ध थी। निस्संदेह, अपीलकर्ता द्वारा मुकदमा शुरू करने की तिथि पर उसकी आयु 23 वर्ष से कम थी।” “
तदनुसार, निम्न न्यायालय का आदेश कायम नहीं रह सकता। इसे रद्द किया जाता है। पक्षों के बीच किए गए ‘बाल विवाह’ के लेन-देन को शून्य घोषित किया जाता है। प्रतिवादी (पत्नी) को एक महीने की अवधि के भीतर 25,00,000 रुपये (25 लाख रुपये) का भुगतान किया जाए।
कोर्ट ने कहा, “ऐसा न होने पर, दी गई राशि पर एक महीने के बाद वास्तविक भुगतान की तारीख तक 8 प्रतिशत ब्याज लगेगा।”