इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्टाम्प ड्यूटी की कमी के मामले में याचिका खारिज की, कहा – ‘शो कॉज नोटिस चुनौती देने का समय अभी नहीं’

इलाहाबाद हाई कोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्टाम्प ड्यूटी की कमी के मामले में याचिका खारिज की, कहा – ‘शो कॉज नोटिस चुनौती देने का समय अभी नहीं’

मुख्य बिंदु:

✔ स्टाम्प ड्यूटी की कमी की कार्यवाही आर्बिट्रेशन प्रक्रिया के दौरान भी जारी रह सकती है।
✔ शो कॉज नोटिस को चुनौती देने के लिए अभी कोई आधार नहीं, क्योंकि अभी कोई अंतिम आदेश नहीं हुआ।
✔ प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के तहत नोटिस में आरोप स्पष्ट होने चाहिए ताकि याचिकाकर्ता उचित जवाब दे सके।

इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति पीयूष अग्रवाल की एकल पीठ ने एक याचिका को खारिज करते हुए स्पष्ट किया कि जब तक स्टाम्प अधिकारी द्वारा कोई अंतिम आदेश पारित नहीं किया जाता, तब तक शो कॉज नोटिस को चुनौती देना समय से पहले होगा। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि सुप्रीम कोर्ट के किसी आदेश में स्टाम्प ड्यूटी की कमी वाले समझौतों पर कार्रवाई करने से अधिकारियों को नहीं रोका गया है।

मामले की पृष्ठभूमि:

  • याचिकाकर्ता (DLF होम डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड) ने जिलाधिकारी/कलेक्टर के समक्ष लंबित स्टाम्प ड्यूटी वसूली की कार्यवाही को स्थगित करने की मांग की थी।

  • याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि चूंकि मामला पहले से ही मनोनीत आर्बिट्रेटर (विवाद निपटारा अधिकरण) के समक्ष लंबित है, इसलिए स्टाम्प अधिकारियों के पास कार्रवाई करने का अधिकार क्षेत्र नहीं है।

  • हालांकि, कोर्ट ने इस तर्क को खारिज करते हुए कहा कि “आर्बिट्रेशन प्रक्रिया के दौरान स्टाम्प ड्यूटी की कमी की जांच करने का अधिकार अधिकारियों के पास बरकरार है।”

न्यायालय का निर्णय:

  1. शो कॉज नोटिस को चुनौती देने का समय अभी नहीं:

    • कोर्ट ने कहा कि “शो कॉज नोटिस का उद्देश्य याचिकाकर्ता को अपना पक्ष रखने का मौका देना है, न कि उसके खिलाफ पूर्वनिर्धारित निर्णय लेना।”

    • याचिकाकर्ता का यह दावा कि नोटिस में आरोपों का उल्लेख होने से साबित होता है कि अधिकारी ने पहले ही निर्णय कर लिया है, को न्यायालय ने खारिज कर दिया।

  2. प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन आवश्यक:

    • कोर्ट ने स्पष्ट किया कि स्टाम्प ड्यूटी की कमी तय करने से पहले याचिकाकर्ता को उचित सुनवाई का अवसर दिया जाना चाहिए।

    • शो कॉज नोटिस में आरोपों और प्रस्तावित कार्रवाई का स्पष्ट उल्लेख होना चाहिए ताकि याचिकाकर्ता प्रभावी जवाब दे सके।

  3. अभी कोई अंतिम आदेश नहीं, इसलिए याचिका असामयिक:

    • चूंकि अभी सिर्फ एक शो कॉज नोटिस जारी किया गया था और कोई अंतिम आदेश नहीं हुआ था, इसलिए कोर्ट ने माना कि याचिका समय से पहले दायर की गई है।

ALSO READ -  बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) ने 9 अधिवक्ताओं की प्रैक्टिस पर लगाई रोक

निष्कर्ष:

  • कोर्ट ने अनुच्छेद 226 के तहत अपने असाधारण अधिकार का प्रयोग करने से इनकार करते हुए याचिका खारिज कर दी।

  • हालांकि, याचिकाकर्ता को यह अधिकार दिया गया कि वह स्टाम्प अधिकारी के समक्ष अपना जवाब दे और यदि कोई प्रतिकूल आदेश पारित होता है, तो वह उसे चुनौती दे सकता है।

[DLF होम डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम उत्तर प्रदेश राज्य, WRIT – C No. 13451 of 2025, 09-05-2025 को निर्णीत]

Translate »