इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने IPC 302 हत्या के आरोपी को जमानत दी

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इलाहाबाद उच्च न्यायालय Allahabad High Court ने हत्या के आरोपी राजेश प्रसाद को जमानत देते हुए कहा कि आवेदक को निचली अदालत के समक्ष साक्ष्य एकत्र करने और प्रस्तुत करने का अवसर न देना आपराधिक न्यायशास्त्र में प्रक्रियात्मक निष्पक्षता के मानदंडों के विपरीत होगा।

न्यायमूर्ति अजय भनोट की एकल पीठ ने राजेश प्रसाद द्वारा दायर आपराधिक विविध जमानत अर्जी पर सुनवाई करते हुए यह आदेश पारित किया।

जमानत अर्जी के माध्यम से आवेदक ने पुलिस स्टेशन-खुखुंदू, जिला-देवरिया में धारा 147, 148, 302, 504, 506 आईपीसी के तहत दर्ज मामले में जमानत पर विस्तार करने की प्रार्थना की है।

आवेदक 02.03.2024 से जेल में है। आवेदक की पहली जमानत अर्जी अदालत ने 03.06.2024 को खारिज कर दी थी।

आवेदक के वकील ने कहा कि आवेदक कानून का पालन करने वाला नागरिक है, जिसने जांच में सहयोग किया और मुकदमे की कार्यवाही में शामिल हुआ। आवेदक ने कभी भी साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ नहीं की और न ही उसने किसी गवाह को प्रभावित किया।

उन्होंने आगे कहा कि आवेदक ने किसी भी तरह से विलंबकारी रणनीति नहीं अपनाई या मुकदमे की प्रगति में बाधा नहीं डाली।

उन्होंने यह भी कहा कि मुकदमा कछुए की गति से आगे बढ़ रहा है और जल्दी निष्कर्ष पर पहुंचने का कोई संकेत नहीं है। मुकदमे में देरी के लिए आवेदक को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।

अदालत ने कहा कि-

ट्रायल कोर्ट द्वारा भेजी गई स्थिति रिपोर्ट में दर्ज है कि अभियोजन पक्ष आरोपों को साबित करने के लिए 12 गवाहों की जांच करने का प्रस्ताव रखता है। तथ्य के भौतिक गवाहों अर्थात् प्रत्यक्षदर्शी सहित अभियोजन पक्ष के सात गवाहों की पहले ही जांच की जा चुकी है। आवेदक द्वारा उक्त गवाहों को प्रभावित करने की कोई संभावना नहीं है।

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अभियोजन पक्ष का साक्ष्य समाप्त हो चुका है और बचाव पक्ष के साक्ष्य/धारा 313 सीआरपीसी के लिए मंच तैयार है।

अदालत ने कहा कि,

आवेदक को लगातार कारावास में रखने से वह प्रभावी बचाव रणनीति तैयार करने, उसके समर्थन में साक्ष्य एकत्र करने और आरोपों से खुद को मुक्त करने के लिए उसे ट्रायल कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत करने में असमर्थ हो जाएगा। आवेदक को ट्रायल कोर्ट के समक्ष साक्ष्य एकत्र करने और प्रस्तुत करने का अवसर न देना आपराधिक न्यायशास्त्र में प्रक्रियात्मक निष्पक्षता के मानदंडों के विपरीत होगा।

प्रभात गंगवार बनाम उत्तर प्रदेश राज्य में न्यायालय ने अभियुक्त को अपना बचाव तैयार करने और अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए ट्रायल कोर्ट के समक्ष साक्ष्य प्रस्तुत करने के लिए जमानत पर रिहा करने पर विचार करते हुए कहा: “जमानत देने पर विचार करते समय न्यायालय द्वारा अपराध की प्रकृति और गंभीरता पर विचार किया जाना निश्चित रूप से आवश्यक है। न्यायालय को जमानत आवेदन पर निर्णय करते समय इस बात की संभावना को भी ध्यान में रखना होगा कि अभियुक्त ने अपराध किया है या नहीं।

न्यायालय को मामले के तथ्यों के आधार पर यह भी निर्धारित करना होगा कि अभियुक्त को अपना बचाव तैयार करने और अभियोजन पक्ष के मामले का खंडन करने तथा अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए साक्ष्य एकत्र करने की स्वतंत्रता दी जानी चाहिए या नहीं। जमानत न्यायालय को यह जांच करनी होगी कि क्या निरंतर कारावास अभियुक्त को अपने मामले का प्रभावी बचाव करने से अक्षम करेगा। यह आपराधिक न्यायशास्त्र में प्रक्रियात्मक निष्पक्षता की मांग है। इस आधार पर अभियुक्त को स्वतंत्र छोड़ना सभी मामलों में यंत्रवत् लागू नहीं किया जा सकता है। ऐसा करते समय प्रत्येक मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार किया जाना चाहिए। इस संबंध में निर्णय लेने से पहले अभिलेख में मौजूद साक्ष्य, जांच के दौरान आरोपी के आचरण और साथ ही मुकदमे सहित सभी प्रासंगिक तथ्यों को विज्ञापित किया जाना चाहिए। मामले के उपरोक्त तथ्यों के प्रकाश में उपरोक्त मापदंडों पर विचार करते हुए, न्यायालय ने कहा कि प्रभात गंगवार (सुप्रा) मामले के तथ्यों पर लागू होता है। आवेदक का मामले के अलावा कोई आपराधिक इतिहास नहीं है। आवेदक के भागने का जोखिम नहीं है। आवेदक कानून का पालन करने वाला नागरिक होने के नाते हमेशा जांच में सहयोग करता रहा है और मुकदमे की कार्यवाही में शामिल होने का वचन देता है। उसके गवाहों को प्रभावित करने, साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ करने या फिर से अपराध करने की कोई संभावना नहीं है, न्यायालय ने जमानत आवेदन को स्वीकार करते हुए आगे कहा।

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न्यायालय ने आदेश दिया कि आवेदक-राजेश प्रसाद को उपरोक्त मामले के अपराध संख्या में एक व्यक्तिगत बांड और दो जमानतदारों को निचली अदालत की संतुष्टि के अनुसार प्रस्तुत करने पर जमानत पर रिहा किया जाए।

न्याय के हित में निम्नलिखित शर्तें लगाई जाएंगी-

(i) आवेदक साक्ष्यों से छेड़छाड़ नहीं करेगा अथवा परीक्षण के दौरान किसी गवाह को प्रभावित नहीं करेगा।

(ii) आवेदक निर्धारित तिथि को परीक्षण न्यायालय के समक्ष उपस्थित होगा, जब तक कि व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट न दी गई हो।

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