सहायक अध्यापक भर्ती परीक्षा 2018 से जुड़े एक प्रश्न पर इलाहाबाद उच्च न्यायलय ने सुनाया फैसला –

सहायक अध्यापक भर्ती परीक्षा 2018 से जुड़े एक प्रश्न पर इलाहाबाद उच्च न्यायलय ने सुनाया फैसला –

याचिका में छह सवालों के उत्तर को लेकर चुनौती दी गई थी –

हाईकोर्ट ने सर्वोच्च न्यायालय द्वारा रणविजय सिंह केस में प्रतिपादित विधि सिद्धांत के आलोक में मामले का परीक्षण किया-

सहायक अध्यापक भर्ती परीक्षा 2018 से जुड़े एक प्रश्न पर इलाहाबाद उच्च न्यायलय ने फैसला सुनाया है।

इलाहाबाद उच्च न्यायलय ने परीक्षा में पूछे गए एक प्रश्न के उत्तर को गलत मानते हुए उसका एक अंक उन अभ्यर्थियों को देने का निर्देश दिया है, जिन्होंने हाईकोर्ट में अपील या याचिका दाखिल की है। बता दें, याचिका में छह सवालों के उत्तर को लेकर चुनौती दी गई थी।

हाईकोर्ट में याचिका डालने वाले याचियों का कहना है कि भर्ती प्राधिकारी ने जिन उत्तरों को सही माना है वह सही नहीं हैं। कोर्ट ने इनमें सिर्फ एक (प्रश्न संख्या 60) को लेकर की गई आपत्ति को ही ठीक माना। साथ ही निर्देश देते हुए कोर्ट ने कहा कि यदि एक अंक पाने के बाद अभ्यर्थी मेरिट में आ जाता है तो उसे जॉब दी जाए।

अभिषेक श्रीवास्तव व दर्जनों अभयर्थियों की दाखिल विशेष अपीलों पर कार्यवाहक मुख्य न्यायमूर्ति एम ए भंडारी और न्यायमूर्ति अनिल कुमार ओझा की खंडपीठ ने यह आदेश दिया।

जानकारी के मुताबिक, उच्च न्यायलय की एकल पीठ ने अभ्यर्थियों का दावा खारिज कर दिया था। हाईकोर्ट ने सर्वोच्च न्यायालय द्वारा रणविजय सिंह केस में प्रतिपादित विधि सिद्धांत के आलोक में मामले का परीक्षण किया।

क्या है रणविजय सिंह केस में प्रतिपादित विधि सिद्धांत-

रणविजय सिंह केस में प्रतिपादित विधि सिद्धांत में “सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि उत्तर पुस्तिकाओं के पुर्नपरीक्षण अथवा स्क्रूटनी मामले में अदालतों के अधिकार सीमित हैं। यदि भर्ती के नियमों में यह प्रविधान हैं तो यह अधिकार अभ्यर्थियों को देना चाहिए। यदि प्रविधान नहीं है तो अदालत पुर्नपरीक्षण अथवा स्क्रूटनी का आदेश दे सकती है। सर्वोच्च अदालत ने यह भी कहा है कि संदेह होने की दशा में संदेह का लाभ परीक्षा प्राधिकारी को मिलेगा न कि अभ्यर्थी को।”

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अदालत ने सभी छह प्रश्नों का बारी बारी से परीक्षण किया। पांच प्रश्नों में अभ्यर्थी दावे को साबित नहीं कर सके। जबकि प्रश्न संख्या में 60 में विकल्प के रूप में दिए गए लेखक का नाम गलत होने के कारण कोर्ट ने इस प्रश्न का एक अंक समिति अभ्यर्थियों को देने का निर्देश दिया है।

इलाहाबाद उच्च न्यायलय ने कहा है कि जो लोग पहले से चयनित हो चुके हैं और नियुक्ति पा चुके हैं उन पर किसी प्रकार का प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए। चयन व नियुक्ति प्रक्रिया पूरी हो चुकी है, इसलिए ज्यादा संख्या में अथवा सभी अभ्यर्थियों को अंक देने से पूरी प्रक्रिया अस्त व्यस्त हो जाएगी। लिहाजा लाभ सिर्फ उनको मिलेगा जिन्होंने याचिका दाखिल की है और जिनके एक अंक ही कम पड़ रहे हैं। यदि किसी के दो अंक कम हो रहे हैं तो उसको इस आदेश का लाभ नहीं मिलेगा।

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