इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 5 हजार करोड़ रुपये के धोखाधड़ी के मामले में DGP से मांगा जवाब-

Estimated read time 1 min read

कोर्ट ने DGP को निर्देश दिया है कि इस मामले में निश्चित समय के भीतर ह्विसिल ब्लोअर यानी याचिकाकर्ता से पूरी जानकारी लेकर उसके प्रत्यावेदन को निर्णीत करें।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश के जौनपुर की विभिन्न योजनाओं में हुई पांच हजार करोड़ रुपये की धांधली के मामले में प्रदेश के DGP से पूछा है कि क्यों न राष्ट्रीय हित में इस मामले की जांच ईडी या आर्थिक अपराध शाखा से करायी जाए।

न्यायालय ने संबंधित विभागों से इसकी विस्तृत जानकारी भी मांगी है। कोर्ट का मानना है कि स्थानीय पुलिस इतने बड़े घोटाले की विवेचना करने में सक्षम नहीं है।

कोर्ट ने DGP को निर्देश दिया है कि इस मामले में निश्चित समय के भीतर ह्विसिल ब्लोअर यानी याचिकाकर्ता से पूरी जानकारी लेकर उसके प्रत्यावेदन को निर्णीत करें।

मुख्य सचिव और प्रमुख सचिव गृह भी इस बाबत विचार करें –

उच्च न्यायालय ने राज्य के मुख्य सचिव और प्रमुख सचिव गृह को भी इस बाबत विचार करने के लिए कहा है और अनुपालन रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया है। याचिका पर अगली सुनवाई की तारीख 17 जनवरी को तय की गई है।

यह आदेश जस्टिस वीके बिड़ला और जस्टिस एसपी सिंह की खंडपीठ ने कुमारी बाबा बेटी की याचिका पर दिया है।

इस संबंध में याचिकाकर्ता का कहना है कि उसने 5 हजार करोड़ रुपये के फ्राड की शिकायत दर्ज कराई है। उसे इस घोटाले में लिप्त लोगों के द्वारा बराबर धमकी दी जा रही है। 

विवेचना अधिकारी याचिकाकर्ता पर समझौते के लिए दबाव डाल रहे हैं। इसलिए केस की विवेचना जौनपुर से अन्यत्र कहीं स्थानान्तरित की जाय। हालांकि कोर्ट ने जांच को स्थानांतरित करने की मांग को अस्वीकार कर दिया है लेकिन साथ इस मामले में DGP पर निर्णय लेने को कहा है।

ALSO READ -  सुप्रीम कोर्ट : एक ही घटना के संबंध में एक ही आरोपी के खिलाफ एक ही पक्ष द्वारा कई शिकायतें अस्वीकार्य-

याचिकाकर्ता जांच अधिकारी के समक्ष नहीं दर्ज करवा रही है बयान-

याचिका के संबंध मे सरकारी वकील का कहना था कि शिकायत दर्ज होने के बाद से मामले में विवेचना जारी है। वकील ने बताया कि याची बार-बार बुलाये जाने के बाद भी बयान दर्ज कराने के लिए हाजिर नहीं हो रही है। 

कोर्ट ने कहा कि याची ने अपनी याचिका में कहा है कि को धमकी मिल रही है। ऐसे में उसे DGP से मिलने जाते समय पुलिस की सुरक्षा मिलनी चाहिए। यदि DGP केस को ट्रांसफर करने के लिए सहमत नहीं होते हैं तो याचिकाकर्ता को विवेचना अधिकारी के समक्ष पेश होने के लिए सुरक्षा मुहैया कराई जाय।

You May Also Like