इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला: अलगाव की अवधि में आपसी सहमति से तलाक के लिए समझौता ‘साथ रहने’ का संकेत नहीं

इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला: अलगाव की अवधि में आपसी सहमति से तलाक के लिए समझौता 'साथ रहने' का संकेत नहीं

इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला: अलगाव की अवधि में आपसी सहमति से तलाक के लिए समझौता ‘साथ रहने’ का संकेत नहीं


🧑‍⚖️ प्रथम अपील दोषपूर्ण संख्या 207/2025 – आपसी सहमति से तलाक का मामला

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि यदि पति-पत्नी अलगाव की अवधि के दौरान आपसी सहमति से तलाक के लिए सहमत होते हैं, तो इसे उनके फिर से एक साथ रहने के प्रमाण के रूप में नहीं लिया जा सकता।

यह निर्णय परिवार न्यायालय के उस आदेश के विरुद्ध अपील में आया, जिसमें हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13-बी के तहत तलाक याचिका को अमान्य मानते हुए खारिज कर दिया गया था।

न्यायमूर्ति अरिंदम सिन्हा और न्यायमूर्ति अवनीश सक्सेना की पीठ ने स्पष्ट किया:

धारा 13-बी(1) के तहत यह आवश्यक है कि याचिका प्रस्तुत करने से पूर्व पति-पत्नी एक वर्ष या उससे अधिक समय से पृथक रह रहे हों। यदि इस पृथकावास की अवधि के दौरान आपसी सहमति से तलाक के लिए सहमति बनती है, और ऐसा कोई प्रमाण नहीं है कि वे साथ रहने लगे, तो तलाक की सहमति उनके पृथकावास की स्थिति का उल्लंघन नहीं करती।


👩‍⚖️ मामले की पृष्ठभूमि

  • विवाह दिनांक: 6 दिसंबर 2004
  • संतानें: तीन
  • पृथकावास: 12 जनवरी 2022 से, जब पत्नी बच्चों के साथ मायके चली गईं।
  • समझौता: 1 अगस्त 2023 को, परिवारजनों की मध्यस्थता से आपसी सहमति से तलाक के लिए याचिका दायर करने पर सहमति बनी।
  • परिवार न्यायालय में याचिका दायर: एक वर्ष से अधिक पृथकावास के बाद
  • फैमिली कोर्ट का फैसला: याचिका खारिज; यह मानते हुए कि 1 अगस्त 2023 से पहले दोनों साथ नहीं रह रहे थे, यह तय नहीं हुआ।
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⚖️ अपीलकर्ता का पक्ष

अपीलकर्ता की ओर से अधिवक्ता अमन सिंह ने तर्क दिया कि:

  • याचिका में कोई “collusion” (मिलीभगत) नहीं है।
  • अलगाव की अवधि 1 अगस्त 2023 से नहीं, बल्कि 12 जनवरी 2022 से शुरू हुई थी।
  • फैमिली कोर्ट ने तिथि की गलत व्याख्या की।

प्रतिवादी की ओर से अधिवक्ता प्रकाश त्रिपाठी ने पक्ष रखा।


🔍 न्यायालय की विवेचना

  • कोर्ट ने पाया कि याचिका दायर करने से एक वर्ष से अधिक पहले से दोनों पक्ष पृथक रूप से रह रहे थे
  • साथ ही, 2013 से शारीरिक संबंध नहीं होने और 2022 से अलग रहने की स्पष्ट बात भी रिकॉर्ड में है।
  • अदालत ने यह माना कि 1 अगस्त 2023 को तलाक के लिए बनी सहमति मात्र “समझौता” है, ‘साथ रहने’ का प्रमाण नहीं।

न्यायालय ने कहा:

1 अगस्त 2023 को कारण-कार्रवाई (cause of action) उत्पन्न होना एक तथ्यात्मक स्थिति है और इसे इस रूप में नहीं देखा जा सकता कि पक्षकार उस दिन साथ थे।


✅ निष्कर्ष

  • परिवार न्यायालय का आदेश त्रुटिपूर्ण माना गया।
  • अपील स्वीकार की गई और मामला निष्पादित किया गया।

महत्व: यह निर्णय स्पष्ट करता है कि तलाक की प्रक्रिया में वास्तविक पृथकावास को समझौते के आधार पर नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। युगलों के बीच तलाक की सहमति, यदि अलगाव की अवधि में हुई हो और साथ रहने के कोई साक्ष्य न हों, तो याचिका अमान्य नहीं मानी जा सकती।

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