GST मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय का अहम आदेश: बिना कारण बताए दंड आदेश को किया रद्द, राज्य सरकार पर लगाया ₹5000 का जुर्माना

GST मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय का अहम आदेश: बिना कारण बताए दंड आदेश को किया रद्द, राज्य सरकार पर लगाया ₹5000 का जुर्माना
Allahabad High Court

GST मामले में: कोर्ट ने याचिका को मंजूरी देते हुए ₹5000/- का जुर्माना राज्य सरकार को याचिकाकर्ता को देने का आदेश दिया

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण आदेश में कहा कि, बिना उचित कारण बताए किसी आदेश को पारित करना न्यायिक और प्रशासनिक दोनों दृष्टिकोण से अनुचित है। यह आदेश “M/S Varroc Polymers Ltd” और उत्तर प्रदेश राज्य के बीच जारी विवाद में पारित किया गया।

न्यायमूर्ति पीयूष अग्रवाल ने इस पर संज्ञान लिया और कहा कि “आदेश में कारणों का अभाव है, जो प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है”।

मामला संक्षेप में

मामला इस प्रकार था कि, याचिकाकर्ता द्वारा वर्ष 2017-18 के लिए जीएसटी रिटर्न की समीक्षा पर आधारित विभिन्न विसंगतियों का नोटिस प्राप्त किया गया। इसके बाद, 22 सितंबर 2023 को एक शो-कॉज नोटिस जारी कर याचिकाकर्ता से ₹48,74,527/- और ₹50,7148/- का जुर्माना वसूलने की मांग की गई थी। याचिकाकर्ता ने 23 अक्टूबर 2023 को एक विस्तृत आपत्ति दी, जिसमें उन्होंने इन विसंगतियों को स्पष्ट किया था। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने M/S Varroc Polymers Ltd. के मामले में राज्य सरकार के द्वारा पारित आदेश को बिना कारण बताए रद्द कर दिया। यह आदेश जीएसटी रिटर्न की समीक्षा पर आधारित विसंगतियों के संदर्भ में था।

नोटिस और आपत्ति

याचिकाकर्ता को 22 सितंबर 2023 को एक शो-कॉज नोटिस जारी किया गया, जिसमें ₹48,74,527/- की राशि और ₹50,7148/- का जुर्माना वसूलने की मांग की गई थी। इसके जवाब में याचिकाकर्ता ने 23 अक्टूबर 2023 को एक विस्तृत आपत्ति दी, जिसमें उन्होंने आरोपों का स्पष्टीकरण दिया।

आदेश में कारणों का अभाव

हालांकि, संबंधित अधिकारियों ने याचिकाकर्ता की आपत्ति का उचित मूल्यांकन किए बिना केवल दो पंक्तियों में आदेश पारित कर दिया, जिसमें कहा गया कि “व्यापारी द्वारा दिए गए स्पष्टीकरण स्पष्ट, अपूर्ण और साक्ष्यों से पूर्ण नहीं हैं।” कोर्ट ने इस आदेश पर कड़ा रुख अपनाया और कहा कि आदेश में कारणों का अभाव है, जो प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है।

ALSO READ -  दिल्ली हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट का हवाला देते हुए ट्रायल कोर्ट द्वारा ब्रूटल रेप & मर्डर केस में सजा को बदलने पर कड़ा एतराज जताया-

कानूनी दृष्टिकोण

न्यायमूर्ति पीयूष अग्रवाल ने यह भी कहा कि यह स्थापित कानून है कि किसी भी निर्णय के लिए स्पष्ट कारणों का होना आवश्यक है। यदि कारण नहीं दिए जाते, तो वह आदेश न्यायिक रूप से अवैध हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न निर्णयों का हवाला देते हुए, अदालत ने स्पष्ट किया कि बिना कारण बताए किसी भी आदेश का पारित होना अनुचित होता है।

अंतिम निर्णय

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने याचिका को मंजूरी देते हुए राज्य सरकार को ₹5000/- का जुर्माना याचिकाकर्ता को देने का आदेश दिया। हालांकि, अदालत ने राज्य सरकार को भविष्य में क़ानूनी प्रक्रिया के अनुसार कार्रवाई करने की अनुमति दी है।

निष्कर्ष

यह आदेश सरकारी अधिकारियों के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश है कि किसी भी निर्णय के लिए स्पष्ट और ठोस कारणों का होना अनिवार्य है, ताकि यह प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के अनुरूप हो।

वाद शीर्षक – मेसर्स वैरोक पॉलिमर्स लिमिटेड बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य
वाद संख्या – रिट टैक्स संख्या – 1629 वर्ष 2024

Translate »