भारत में शादी करने को चाहे जितना भी आसान बना दिया जाये लेकिन तलाक लेना उतना ही मुश्किल है तलाक अगर आपसी सहमति से हो जाये तो अच्छा है वरना ये प्रोसेस बहोत लम्बा होने वाला है। क्योकि जब मामला कोर्ट में पहुँचता है तो केस कितना लम्बा नहीं बता सकता।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पत्नी द्वारा लगाए गए ऐसे आरोप,जो पति के करियर और प्रतिष्ठा को प्रभावित करते हैं,वह तलाक मांगने के लिए उसके खिलाफ की गई मानसिक क्रूरता के समान है।
न्यायमूर्ति संजय किशन कौल,न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय की खंडपीठ ने कहा कि सहनशीलता का स्तर हर जोड़े में एक दूसरे से भिन्न होता है और अदालत को पक्षकारों की पृष्ठभूमि, शिक्षा के स्तर और स्टे्टस को भी ध्यान में रखना होगा, ताकि यह निर्धारित किया जा सके कि क्या क्रूरता का आरोप विवाह के विघटन को सही ठहराने के लिए पर्याप्त है।
इस मामले में पति एक सेना अधिकारी है,जिसने अपनी तलाक की याचिका में आरोप लगाया था कि उसे अपनी पत्नी की तरफ से दायर कई दुर्भावनापूर्ण शिकायतों का सामना करना पड़ा है,जिन्होंने उसके कैरियर और प्रतिष्ठा को प्रभावित किया है और उसकी मानसिक क्रूरता हुई है। फैमिली कोर्ट ने उसके पक्ष में तलाक का फैसला दिया था परंतु हाईकोर्ट ने उसे फैसले को पलट दिया था। शीर्ष अदालत के समक्ष अपील में पति ने प्रस्तुत किया कि उसकी पत्नी ने उसके खिलाफ सेना के वरिष्ठ अधिकारियों के समक्ष कई शिकायतें दायर की थी,जो चीफ आॅफ आर्मी स्टाॅफ से लेकर अन्य अधिकारियों के समक्ष दायर की गई थी। इन शिकायतों ने उसकी प्रतिष्ठा और मानसिक शांति को अपूरणीय क्षति पहुंचाई है।
पीठ ने कहा कि, ”मानसिक क्रूरता का आरोप लगाने वाले पति या पत्नी की मांग पर विवाह के विघटन पर विचार करते समय यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि मानसिक क्रूरता इस तरह की होनी चाहिए,जिसके परिणामस्वरूप वैवाहिक संबंध को जारी रखना संभव ना रहे। दूसरे शब्दों में, व्यथित पक्ष से यह उम्मीद नहीं की जा सकती है कि इस तरह के आचरण को क्षमा कर दे और अपने जीवनसाथी के साथ रहना जारी रखे। सहनशीलता का स्तर हर जोड़े में एक दूसरे से भिन्न होता है और अदालत को पक्षकारों की पृष्ठभूमि, शिक्षा के स्तर और स्टे्टस को भी ध्यान में रखना होगा, ताकि यह निर्धारित किया जा सके कि क्या क्रूरता का आरोप विवाह के विघटन को सही ठहराने के लिए पर्याप्त है।”
हाईकोर्ट के फैसले को रद्द करते हुए, पीठ ने कहा कि, ”हमारा मानना है कि हाईकोर्ट ने इस टूटे हुए रिश्ते को मध्यम वर्ग के विवाहित जीवन के सामान्य झगड़े या परेशानी के रूप में वर्णित करने में गलती की थी। यह अपीलकर्ता के खिलाफ प्रतिवादी द्वारा निर्दयतापूर्वक क्रूरता करने का एक मामला है और इसलिए इस मामले में हाईकोर्ट के आदेश को रद्द करने और फैमिली कोर्ट के आदेश को बहाल करने के लिए पर्याप्त स्पष्टीकरण पाए गए हैं।”
केस टाइटल – जॉयदीप मजूमदार बनाम भारती जायसवाल मजूमदार
केस नंबर – CA NOS. 3786-3787 ऑफ़ 2020