भारतीय संविधान के भाग-6 में अनु०– 151 से 367 तक राज्यपाल के विषय में जानकारी प्रदान की गयी है ।
राज्यपाल राज्य का संवैधानिक प्रमुख होता है, तथा राज्यपाल केंद्र सरकार के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करता है, इस प्रकार राज्यपाल दो भूमिकाओं का उत्तरदायित्व संभालते है, मूल संविधान में एक राज्य के लिए एक राज्यपाल को निर्धारित किया गया था, परन्तु 7वें संविधान संशोधन में एक ही व्यक्ति को दो या दो से अधिक राज्यों का राज्यपाल नियुक्त किया जा सकता है ।
राज्यपाल की नियुक्ति कैसे होती है, कौन करता है और संविधान में उसके क्या क्या कार्य दिए गए है? इसके बारें में आपको इस पेज पर विस्तार से जानकारी दे रहे है ।
राजयपाल पद हेतु योग्यता-
वह भारत का नागरिक हो
वह 35 वर्ष की आयु पूर्ण कर चुका हो
राज्यपाल की नियुक्ति
केंद्र सरकार की सलाह पर राष्ट्रपति के द्वारा राज्यपाल की नियुक्ति की जाती है, परन्तु उच्चतम न्यायालय नें वर्ष 1979 में एक व्यवस्था की थी, जिसके अंतर्गत राज्यपाल को केंद्र सरकार के आधीन नहीं माना गया था, इसे एक स्वतंत्र संवैधानिक पद के रूप में मान्यता प्रदान की गयी थी |
इसके अतिरिक्त दो अन्य परम्पराओं का अनुपालन राज्यपाल के चयन में किया जाता है |
दूसरे राज्य के व्यक्ति को राज्यपाल के रूप में नियुक्ति किया जाता है, जिससे वह स्थानीय राजनीति से मुक्त रहे
राज्यपाल की नियुक्ति के लिए आवश्यक है, कि राष्ट्रपति राज्य के मुख्यमंत्री से परामर्श ले, जिससे राज्य में संवैधानिक व्यवस्था बनी रहे ।
राज्यपाल के अधिकार
राज्यपाल राज्य के मुख्यमंत्री की नियुक्ति करता है, तथा राज्य के कई महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्तियां राज्यपाल के द्वारा की जाती है, राज्य में राज्यपाल की स्थिति उसी प्रकार से होती है, जिस तरह देश में राष्ट्रपति की होती है |संविधान में उसके क्या क्या कार्य दिए गए है जानते है –
अनुच्छेद 151(2)-
संपरीक्षा प्रतिवेदन: भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक के किसी राज्य के लेखाओं संबंधी प्रतिवेदनों को उस राज्य के राज्यपाल के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा, जो उनको राज्य के विधान मण्डल के समक्ष रखवाएगा ।
अनुच्छेद 153-
राज्यों के राज्यपाल: प्रत्येक राज्य के लिए एक राज्यपाल होगा । परन्तु इस अनुच्छेद की कोई बात एक ही व्यक्ति को दो या अधिक राज्यों के लिए राज्यपाल नियुक्त किये जाने से निवारित नहीं करेगी ।
अनुच्छेद 154-
राज्य की कार्यपालिका शक्ति:
(1) राज्य की कार्यपालिका शक्ति राज्यपाल में निहित होगी और वह इसका प्रयोग इस संविधान के अनुसार स्वयं या अपने अधीनस्थ अधिकारियों के द्वारा करेगा ।
(2) इस अनुच्छेद की कोई बात–
(क) किसी विद्यमान विधि द्वारा किसी अन्य प्राधिकारी को प्रदान किये गये कृत्य राज्यपाल को अंतरित करने वाली नहीं समझी जाएगी, या
(ख) राज्यपाल के अधीनस्थ किसी प्राधिकारी को विधि द्वारा कृत्य प्रदान करने से संसद या राज्य के विधान-मण्डल को निवारित नहीं करेगी ।
अनुच्छेद 155 –
राज्यपाल की नियुक्ति: राज्य के राज्यपाल को राष्ट्रपति अपने हस्ताक्षर और मुद्रा सहित अधिपत्र द्वारा नियुक्त करेगा ।
अनुच्छेद 156 –
राज्यपाल की पदावधि:
(1) राज्यपाल, राष्ट्रपति के प्रसाद पर्यन्त पद धारण करेगा ।
(2) राज्यपाल, राष्ट्रपति को सम्बोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा अपना पद त्याग सकेगा ।
(3) इस अनुच्छेद के पूर्वगामी उपबंधों के अधीन रहते हुए, राज्यपाल अपने पदग्रहण की तारीख से पांच वर्ष की अवधि तक पद धारण करेगा । परन्तु राज्यपाल, अपने पद की अवधि समाप्त हो जाने पर भी, तब तक पद धारण करता रहेगा जब तक उसका उत्तराधिकारी अपना पद ग्रहण नहीं कर लेता है ।
अनुच्छेद 157 –
राज्यपाल नियुक्त होने के लिए अर्हताएं: कोई व्यक्ति राज्यपाल नियुक्त होने का पात्र तभी होगा जब वह भारत का नागरिक है और पैंतीस वर्ष की आयु पूरी कर चुका है ।
अनुच्छेद 158 –
राज्यपाल पद के लिए शर्तें:
(1) राज्यपाल संसद के किसी सदन का या पहली अनुसूची में विनिर्दिष्ट किसी राज्य के विधान-मण्डल के किसी सदन का सदस्य नहीं होगा और यदि संसद के किसी सदन का या ऐसे किसी राज्य के विधान-मण्डल के किसी सदन का कोई सदस्य राज्यपाल नियुक्त हो जाता है तो यह समझा जाएगा कि उसने उस सदन में अपना स्थान राज्यपाल के रूप में अपने पद ग्रहण की तारीख से रिक्त कर दिया है ।
(2) राज्यपाल अन्य कोई लाभ का पद धारण नहीं करेगा ।
(3) राज्यपाल, बिना किराया दिए, अपने शासकीय निवासों के उपयोग का हकदार होगा और ऐसी उपलब्धियों, भत्तों और विशेषाधिकारों का भी, जो संसद, विधि द्वारा, अवधारित करे और जब तक इस निमित्त इस प्रकार उपबन्ध नहीं किया जाता है तब तक ऐसी उपलब्धियों, भत्तों और विशेषाधिकारों का, जो दूसरी अनुसूची में विनिर्दिष्ट हैं, हकदार होगा ।
(3क) जहां एक ही व्यक्ति को दो या अधिक राज्यों का राज्यपाल नियुक्त किया जाता है वहाॅ उस राज्यपाल को संदेय उपलब्धियाॅं और भत्ते उन राज्यों के बीच ऐसे अनुपात में आवण्टित किये जायेंगे जो राष्ट्रपति आदेश द्वारा अवधारित करे ।
(4) राज्यपाल की उपलब्धियाॅं और भत्ते उसकी पदावधि के दौरान कम नहीं किए जायेंगे ।
अनुच्छेद 159 –
राज्यपाल द्वारा शपथ या प्रतिज्ञान: प्रत्येक राज्यपाल और प्रत्येक व्यक्ति, जो राज्यपाल के कृत्यों का निर्वहन कर रहा है, अपना पद ग्रहण करने से पहले उस राज्य के सम्बन्ध में अधिकारिता का प्रयोग करने वाले उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति या उसकी अनुपस्थिति में उस न्यायालय के उपलब्ध ज्येष्ठतम न्यायाधीश के समक्ष निम्नलिखित प्ररूप में शपथ लेगा या प्रतिज्ञान करेगा और उस पर अपने हस्ताक्षर करेगा, अर्थात्:
”मैं अमुक………. , ईश्वर की शपथ लेता हॅूं /सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान करता हॅंू कि मैं श्रद्धापूर्वक ……………. (राज्य का नाम) के राज्यपाल के पद का कार्यपालन (अथवा राज्यपाल के कृत्यों का निर्वहन) करूॅंगा तथा अपनी पूरी योग्यता से संविधान और विधि का परिरक्षण, संरक्षण और प्रतिरक्षण करूॅंगा और मैं …………… (राज्य का नाम) की जनता की सेवा और कल्याण में निरत रहॅंूगा ।”
अनुच्छेद 160 –
कुछ आकस्मिकताओं में राज्यपाल के कृत्यों का निर्वहन: राष्ट्रपति ऐसे किसी आकस्मिकता में, जो इस अध्याय में उपबन्धित नहीं है, राज्य के राज्यपाल के कृत्यों के निर्वहन के लिए ऐसा उपबंध कर सकेगा जो वह ठीक समझता है ।
अनुच्छेद 161 –
क्षमा आदि की और कुछ मामलों में दंडादेश के निलम्बन, परिहार या लघुकरण की राज्यपाल की शक्ति: किसी राज्य के राज्यपाल को उस विषय संबंधी, जिस विषय पर उस राज्य की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार है, किसी विधि के विरुद्ध किसी अपराध के लिए सिद्धदोष ठहराये गये किसी व्यक्ति के दंड को क्षमा, उसका प्रविलम्बन, विराम या परिहार करने की अथवा दंडादेश के निलम्बन, परिहार या लघुकरण की शक्ति होगी ।
अनुच्छेद 163-
राज्यपाल को सहायता और सलाह देने के लिए मंत्रि-परिषद्:
(1) जिन बातों में इस संविधान द्वारा या इसके अधीन राज्यपाल से यह अपेक्षित है कि वह अपने कृत्यों या उनमें से किसी को अपने विवेकानुसार करे, उन बातों को छोड़कर राज्यपाल को अपने कृत्यों का प्रयोग करने में सहायता और सलाह देने के लिए एक मंत्रि-परिषद् होगी जिसका प्रधान, मुख्यमंत्री होगा ।
(2) यदि कोई प्र्रश्न उठता है कि कोई विषय ऐसा है या नहीं, जिसके सम्बन्ध में इस संविधान द्वारा या इसके अधीन राज्यपाल से यह अपेक्षित है कि वह अपने विवेकानुसार कार्य करे तो राज्यपाल का अपने विवेकानुसार किया गया विनिश्चय अंन्तिम होगा और राज्यपाल द्वारा की गयी किसी बात की विधिमान्यता इस आधार पर प्र्रश्नगत नहीं की जाएगी कि उसे अपने विवेकानुसार कार्य करना चाहिए था या नहीं ।
(3) इस प्रश्न की किसी न्यायालय में जाॅंच नहीं की जाएगी कि क्या मंत्रियों ने राज्यपाल को कोई सलाह दी, और यदि दी तो क्या दी।
अनुच्छेद 164-
मंत्रियों के बारे में अन्य उपबन्ध:
(1) मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल करेगा और अन्य मंत्रियों की नियुक्ति राज्यपाल, मुख्यमंत्री की सलाह पर करेगा तथा मंत्री, राज्यपाल के प्रसादपर्यन्त अपने पद धारण करेंगे । परन्तु (छत्तीसगढ़, झारखण्ड), मध्य प्रदेश और (उड़ीसा) राज्यों में जनजातियों के कल्याण का भारसाधक एक मंत्री होगा जो साथ ही अनुसूचित जातियों और पिछड़े वर्गों के कल्याण का या किसी अन्य कार्य का भी भारसाधक हो सकेगा ।
(1क) किसी राज्य की मंत्रि-परिषद में, मुख्यमंत्री सहित मंत्रियों की कुल संख्या उस राज्य की विधान सभा के सदस्यों की कुल संख्या के पन्द्रह प्रतिशत से अधिक नहीं होगी । परन्तु किसी राज्य में मुख्यमंत्री सहित मंत्रियों की संख्या बारह से कम नहीं होगी । परन्तु यह और कि जहां संविधान (इक्यानबेवां संशोधन) अधिनियम, 2003 के प्रारम्भ पर किसी राज्य की मंत्रि-परिषद में मुख्यमंत्री सहित की कुल संख्या, यथास्थिति, उक्त पन्द्रह प्रतिशत या पहले परन्तुक में विनिर्दिष्ट संख्या से अधिक है वहां उस राज्य मंत्रियों की कुल संख्या ऐसी तारीख से जो राष्ट्रपति लोक अधिसूचना द्वारा नियत करे, छह मास के भीतर इस खण्ड के उपबन्धों के अनुरूप लाई जाएगी ।
(1ख) किसी राजनीतिक दल का किसी राज्य की विधान सभा या किसी राज्य के विधान-मण्डल के किसी सदन का जिसमें विधान परिषद् हैं, कोई सदस्य जो दसवीं अनुसूची के पैरा 2 के अधीन उस सदन का सदस्य होने के लिए निरर्हित है, अपनी निरर्हता की तारीख से प्रारम्भ होने वाली और उस तारीख तक जिसको ऐसे सदस्य के रूप में उसकी पदावधि समाप्त होगी या जहां वह, ऐसी अवधि की समाप्ति के पूर्व यथास्थिति, किसी राज्य की विधान सभा के लिए या विधान परिषद् वाले किसी राज्य के विधान-मण्डल के किसी सदन के लिए कोई निर्वाचन लड़ता है, उस तारीख तक जिसको वह निर्वाचित घोषित किया जाता है, इनमें से जो भी पूर्वतर हो, की अवधि के दौरान, खण्ड (1) के अधीन मंत्री के रूप में नियुक्त किये जाने के लिए भी निरर्हित होगा ।
(2) मंत्रि-परिषद राज्य की विधान सभा के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी होगी ।
(3) किसी मंत्री द्वारा अपना पद ग्रहण करने से पहले, राज्यपाल तीसरी अनुसूची में इस प्रयोजन के लिए दिये गये प्ररूपों के अनुसार उसको पद की और गोपनीयता की शपथ दिलाएगा ।
(4) कोई मंत्री, जो निरन्तर छह मास की किसी अवधि तक राज्य के विधान मण्डल का सदस्य नहीं है, उस अवधि की समाप्ति पर मंत्री नहीं रहेगा ।
(5) मंत्रियों के वेतन और भत्ते ऐसे होंगे जो उस राज्य का विधान-मण्डल, विधि द्वारा, समय-समय पर अवधारित करे और जब तक उस राज्य का विधान-मण्डल इस प्रकार अवधारित नहीं करता है तब तक ऐसे होंगे जो दूसरी अनुसूची में विर्निदिष्ट हैं ।
अनुच्छेद 165 –
राज्य का महाधिवक्ता:
(1) प्रत्येक राज्य का राज्यपाल, उच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त होने के लिए अर्हित किसी व्यक्ति को राज्य का महाधिवक्ता नियुक्त करेगा ।
(2) महाधिवक्ता का यह कत्र्तव्य होगा कि वह उस राज्य की सरकार को विधि संबंधी ऐसे विषयों पर सलाह दे और विधिक स्वरूप के ऐसे अन्य कत्र्तव्यों का पालन करे जो राज्यपाल उसको समय-समय पर निर्देशित करे या सौंपे और उन कृत्यों का निर्वहन करे जो उसको इस संविधान अथवा तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि द्वारा या उसके अधीन प्रदान किये गये हों ।
(3) महाधिवक्ता, राज्यपाल के प्रसादपर्यन्त पद धारण करेगा और ऐसा पारिश्रमिक प्राप्त करेगा जो राज्यपाल अवधारित करे ।
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